अध्याय 02: सिंधु घाटी की कलाएँ: प्रश्नोत्तर
यहाँ "सिंधु घाटी की कलाएँ" अध्याय पर आधारित प्रश्नोत्तर दिए गए हैं, जो आपको इस विषय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे।
1. एक-पंक्ति वाले प्रश्न (20) - उत्तर सहित
सिंधु घाटी सभ्यता की कलाएँ किस अवधि में उभरीं?
उत्तर: तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के उत्तरार्ध में।
सिंधु घाटी सभ्यता के दो प्रमुख स्थल कौन से हैं?
उत्तर: हड़प्पा और मोहनजोदड़ो।
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो वर्तमान में किस देश में स्थित हैं?
उत्तर: पाकिस्तान में।
मोहनजोदड़ो से मिली लाल बलुआ पत्थर की मूर्ति क्या कहलाती है?
उत्तर: पुरुष धड़ (Male Torso)।
‘नर्तकी’ की प्रसिद्ध कांस्य मूर्ति कहाँ से मिली है?
उत्तर: मोहनजोदड़ो से।
कांस्य ढलाई के लिए सिंधु घाटी के लोग किस तकनीक का उपयोग करते थे?
उत्तर: लुप्त मोम (Lost Wax) तकनीक का।
टेराकोटा की मूर्तियों में सबसे महत्वपूर्ण पहचान किसकी है?
उत्तर: मातृ देवी की।
सिंधु घाटी की मुहरें मुख्य रूप से किस सामग्री से बनी होती थीं?
उत्तर: स्टेटाइट से।
मुहरों पर उत्कीर्ण लिपि को क्या कहा जाता है?
उत्तर: चित्रमय लिपि (Pictographic Script)।
पशुपति मुहर पर कौन सी आकृति दर्शाई गई है?
उत्तर: पालथी मारकर बैठी एक मानव आकृति।
सिंधु घाटी में अधिकांश मिट्टी के बर्तन किस विधि से बनाए जाते थे?
उत्तर: चाक-निर्मित (Wheel-made)।
चित्रित बर्तनों पर सामान्यतः कौन से डिज़ाइन होते थे?
उत्तर: ज्यामितीय और पशु डिज़ाइन।
छिद्रित बर्तनों का उपयोग किस उद्देश्य के लिए किया जाता था?
उत्तर: पेय पदार्थों को छानने के लिए।
हड़प्पा के लोग आभूषण बनाने के लिए किन सामग्रियों का उपयोग करते थे?
उत्तर: बहुमूल्य धातुओं, रत्नों, हड्डी, और पकी हुई मिट्टी का।
मनका उद्योग के कारखाने कहाँ पाए गए हैं?
उत्तर: चन्हुदड़ो और लोथल में।
हड़प्पा के पुरुषों और महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली दो अलग-अलग पोशाकें किसके समान थीं?
उत्तर: धोती और शॉल के समान।
किस सौंदर्य प्रसाधन का उपयोग सिंदूर के रूप में किया जाता था?
उत्तर: सिनाबार का।
धोलावीरा में किस निर्माण सामग्री का उपयोग पाया गया है?
उत्तर: पत्थर का।
नर्तकी की मूर्ति में उसके बाएँ हाथ पर क्या पहना है?
उत्तर: चूड़ियाँ।
कालीबंगा से कौन सी कांस्य आकृति मिली है?
उत्तर: एक बैल की कांस्य आकृति।
2. अति लघूत्तर प्रश्न (20) - उत्तर सहित
सिंधु घाटी सभ्यता की कला में किस प्रकार का यथार्थवाद पाया जाता है?
उत्तर: मानव और पशु आकृतियों के चित्रण में उच्च यथार्थवाद, जिसमें अद्वितीय शारीरिक विवरण और टेराकोटा में सावधानीपूर्वक मॉडलिंग शामिल है।
सिंधु घाटी सभ्यता के नियोजन में क्या विशेषता थी?
उत्तर: इसमें ग्रिड जैसी व्यवस्था में घर, बाजार, भंडारण सुविधाएँ, कार्यालय, सार्वजनिक स्नानागार आदि थे और एक अत्यधिक विकसित जल निकासी प्रणाली थी।
मोहनजोदड़ो से मिली दाढ़ी वाले व्यक्ति की मूर्ति किस पत्थर से बनी है?
उत्तर: मोम पत्थर (सोपस्टोन) से।
दाढ़ी वाले व्यक्ति की मूर्ति पर शॉल पर कौन सा पैटर्न सजाया गया है?
उत्तर: तिपतिया घास (Trefoil) पैटर्न।
कांस्य ढलाई में 'लुप्त मोम' तकनीक कैसे काम करती थी?
उत्तर: पहले मोम की आकृति को मिट्टी से ढका जाता था, फिर मोम को पिघलाकर निकाल दिया जाता था, और खाली साँचे में पिघली धातु भर दी जाती थी।
कालीबंगा से मिली कांस्य बैल की आकृति किस दृष्टि से महत्वपूर्ण है?
उत्तर: यह हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की मानव आकृतियों से किसी भी तरह कम नहीं मानी जाती, जो धातु ढलाई की निरंतर परंपरा को दर्शाती है।
सिंधु घाटी की टेराकोटा कलाकृतियाँ पत्थर और कांस्य की तुलना में कैसी थीं?
उत्तर: सिंधु घाटी में टेराकोटा की मानव आकृतियाँ पत्थर और कांस्य की मूर्तियों की तुलना में अधिक कच्ची (crude) थीं, हालांकि गुजरात और कालीबंगा में अधिक यथार्थवादी मिली हैं।
टेराकोटा में मिली दाढ़ी वाले पुरुषों की आकृतियों को देवता क्यों माना जाता है?
उत्तर: उनकी एक ही कठोर, सीधी मुद्रा में बार-बार पुनरावृत्ति से यह संकेत मिलता है कि वे एक देवता थे।
सिंधु घाटी की मुहरों का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर: मुख्य रूप से वाणिज्यिक और तावीज़ के रूप में।
पशुपति मुहर पर दर्शाए गए जानवर कौन से हैं?
उत्तर: दाहिनी ओर हाथी और बाघ, बाईं ओर गैंडा और भैंस, तथा आसन के नीचे दो मृग।
क्या सिंधु घाटी की मुहरों पर बनी लिपि पढ़ी जा चुकी है?
उत्तर: नहीं, यह अभी तक गूढ़ (undeciphered) है।
काले रंग से चित्रित मिट्टी के बर्तनों की क्या खासियत थी?
उत्तर: इन पर लाल स्लिप की एक महीन परत होती थी जिस पर चमकदार काले रंग से ज्यामितीय और पशु डिज़ाइन बनाए जाते थे।
सिंधु घाटी में पाए जाने वाले बर्तनों के आकार की सामान्य विशेषता क्या थी?
उत्तर: सीधी और कोणीय आकृतियाँ अपवाद थीं, जबकि सुंदर वक्र सामान्य नियम थे।
हड़प्पा के लोग आभूषणों के लिए किन महंगी सामग्रियों का उपयोग करते थे?
उत्तर: सोना, अर्ध-कीमती पत्थर, कार्नेलियन, नीलम, फ़िरोज़ा, लैपिस लाजुली आदि।
हड़प्पा के घरों में तकलियों और तकली के घुमक्कड़ों की बड़ी संख्या क्या दर्शाती है?
उत्तर: कपास और ऊन की कताई बहुत आम थी।
हड़प्पा के लोग किस कॉस्मेटिक का उपयोग करते थे और कौन से सौंदर्य उत्पाद उन्हें ज्ञात थे?
उत्तर: सिनाबार का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन के रूप में, और फेस पेंट, लिपस्टिक और कोहल (आईलाइनर) भी उन्हें ज्ञात थे।
नर्तकी की मूर्ति में उसके बाल कैसे बंधे हैं?
उत्तर: उसके लंबे बाल एक जूड़े में बंधे हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के पास कौन सी उन्नत नागरिक सुविधा थी?
उत्तर: एक अत्यधिक विकसित जल निकासी प्रणाली।
हड़प्पा से प्राप्त पुरुष धड़ में गर्दन और कंधों में छेद क्यों हैं?
उत्तर: सिर और भुजाओं को जोड़ने के लिए सॉकेट छेद थे।
किस स्थल पर मृत शरीर आभूषणों के साथ दफनाए गए पाए गए हैं?
उत्तर: हरियाणा के फरमाना में।
3. लघूत्तर प्रश्न (10) - उत्तर सहित
सिंधु घाटी सभ्यता की कला में यथार्थवाद और कल्पना का संगम कैसे दिखाई देता है? उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर: सिंधु घाटी के कलाकारों में यथार्थवाद और एक जीवंत कल्पना का अद्भुत मिश्रण था। मानव और पशु आकृतियों का उनका चित्रण अत्यधिक यथार्थवादी था, विशेष रूप से शारीरिक विवरणों में, जैसे कि दाढ़ी वाले पुजारी की मूर्ति में नाक, आँखें और दाढ़ी का सटीक चित्रण। वहीं, उनकी कल्पना मुहरों पर दर्शाए गए पौराणिक 'यूनिकॉर्न बुल' जैसे राक्षसों या जटिल ज्यामितीय पैटर्नों में दिखती है। नर्तकी की मूर्ति में शारीरिक ऊर्जा और अभिव्यक्ति का यथार्थवादी चित्रण भी उनके उच्च कलात्मक संवेदनशीलता को दर्शाता है।
कांस्य ढलाई के लिए 'लुप्त मोम' तकनीक का वर्णन करें और सिंधु घाटी में इसके महत्व पर प्रकाश डालें।
उत्तर: 'लुप्त मोम' (Lost Wax) तकनीक सिंधु घाटी सभ्यता में कांस्य ढलाई के लिए व्यापक रूप से उपयोग की जाती थी और यह एक जटिल प्रक्रिया थी। इसमें पहले मोम की एक आकृति बनाई जाती थी, जिसे फिर मिट्टी की परत से ढका जाता था और सूखने दिया जाता था। सूखने के बाद, मिट्टी के साँचे को गर्म किया जाता था, जिससे मोम पिघलकर एक छोटे से छेद से बाहर निकल जाता था, जिससे एक खोखला साँचा बन जाता था। इस साँचे में फिर पिघली हुई धातु (कांस्य) भरी जाती थी। धातु के ठंडा होने के बाद, मिट्टी का आवरण तोड़ दिया जाता था, जिससे मूल मोम की आकृति का एक सटीक धातु का प्रतिकृति प्राप्त होती थी। 'नर्तकी' और कांस्य बैल जैसी उत्कृष्ट कलाकृतियाँ इस तकनीक में हड़प्पावासियों की निपुणता को दर्शाती हैं, जो इस कला रूप के व्यापक पैमाने पर अभ्यास और निरंतर परंपरा का प्रमाण है।
सिंधु घाटी की मातृ देवी की मूर्तियों की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं और वे किस बात का प्रतिनिधित्व करती हैं?
उत्तर: सिंधु घाटी की मातृ देवी की मूर्तियाँ टेराकोटा में बनाई गई सबसे महत्वपूर्ण आकृतियाँ हैं। वे आमतौर पर खड़ी हुई, कच्ची (crude) महिला आकृतियाँ होती हैं, जो प्रमुख स्तनों, लटकते हारों, लंगोटी और कमरबंद से सजी होती हैं। उनकी सबसे विशिष्ट सजावटी विशेषता एक पंखे के आकार की सिर-पोशाक है जिसके प्रत्येक तरफ कप जैसी प्रक्षेपण होती है। उनकी आँखें गोली जैसी, नाक चोंच जैसी और मुँह एक चीरे से इंगित होता है, जो उन्हें एक विशिष्ट, आदिम रूप देता है। यह माना जाता है कि ये आकृतियाँ प्रजनन क्षमता और जीवन शक्ति से संबंधित किसी प्रकार की देवी का प्रतिनिधित्व करती थीं, जो तत्कालीन समाज के धार्मिक विश्वासों का एक महत्वपूर्ण पहलू थीं।
सिंधु घाटी की मुहरों का क्या महत्व था? उनकी सामग्री और उन पर अंकित प्रतीकों का संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर: सिंधु घाटी की मुहरें सिंधु सभ्यता की सबसे विशिष्ट कलाकृतियों में से हैं और इनका अत्यधिक महत्व था।
सामग्री: ये मुख्य रूप से स्टेटाइट से बनी होती थीं, लेकिन अगेट, चर्ट, तांबा, फ़ायेंस और टेराकोटा से भी मिलती हैं। कुछ मुहरें हाथीदाँत में भी पाई गई हैं।
उद्देश्य: उनका प्राथमिक उद्देश्य वाणिज्यिक था, संभवतः व्यापारिक वस्तुओं को चिह्नित करने के लिए। वे तावीज़ के रूप में भी कार्य करती थीं, शायद पहचान पत्र के रूप में व्यक्तियों द्वारा पहनी जाती थीं।
प्रतीक और चित्रण: मुहरों पर जानवरों की सुंदर और यथार्थवादी आकृतियाँ उत्कीर्ण होती थीं, जैसे यूनिकॉर्न बुल, गैंडा, बाघ, हाथी, बाइसन, बकरी और भैंस। कुछ पर पेड़ या मानव आकृतियाँ भी थीं। सबसे उल्लेखनीय पशुपति मुहर है, जिस पर पालथी मारकर बैठी एक मानव आकृति के चारों ओर जानवर चित्रित हैं। मुहरों पर एक चित्रमय लिपि भी उत्कीर्ण है जिसे अभी तक समझा नहीं जा सका है, जो सिंधु सभ्यता की लेखन प्रणाली का प्रमाण है।
सिंधु घाटी की मिट्टी के बर्तनों की प्रमुख विशेषताएँ और उनके विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर: सिंधु घाटी के स्थलों से बड़ी मात्रा में मिट्टी के बर्तन मिले हैं, जो उनकी कला और दैनिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा थे।
प्रमुख विशेषताएँ: अधिकांश बर्तन चाक-निर्मित (wheel-made) और बहुत महीन गुणवत्ता के थे, जबकि हाथ से बने बर्तन कम थे।
प्रकार:
सादे मिट्टी के बर्तन: सबसे आम थे, आमतौर पर लाल मिट्टी के बने होते थे, जिन पर लाल या भूरे रंग की स्लिप हो भी सकती थी और नहीं भी। इनमें गुंबदाकार बर्तन भी शामिल थे।
काले रंग से चित्रित बर्तन: इन पर लाल स्लिप की एक महीन परत होती थी जिस पर ज्यामितीय और पशु डिज़ाइन चमकदार काले रंग से चित्रित होते थे।
बहुरंगी मिट्टी के बर्तन: दुर्लभ थे, छोटे फूलदानों के रूप में होते थे जिन पर लाल, काले और हरे (शायद ही कभी सफेद और पीले) रंग में ज्यामितीय पैटर्न होते थे।
उत्कीर्णित बर्तन: ये भी दुर्लभ थे, और उत्कीर्णन केवल पैन के आधार या प्रसाद के बर्तनों तक सीमित था।
छिद्रित बर्तन: नीचे एक बड़ा छेद और दीवारों पर छोटे छेद होते थे, संभवतः पेय पदार्थों को छानने के लिए उपयोग किए जाते थे।
आकार और उपयोगिता: घरेलू उपयोग के लिए बर्तन विभिन्न आकारों और साइज़ में पाए जाते थे, जो उनकी दैनिक व्यावहारिक आवश्यकताओं के लिए डिज़ाइन किए गए थे। सीधी आकृतियाँ कम थीं, जबकि सुंदर वक्र सामान्य थे। लघु बर्तन उनकी उत्कृष्ट शिल्प कौशल का प्रमाण हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के आभूषणों और मनका उद्योग पर प्रकाश डालें।
उत्तर: सिंधु घाटी सभ्यता के लोग अपनी सज्जा के प्रति सचेत थे और आभूषणों का व्यापक उपयोग करते थे।
आभूषणों की विविधता: पुरुष और महिलाएँ दोनों ही विभिन्न प्रकार के आभूषण पहनते थे, जिनमें हार, बाजूबंद, अंगूठियाँ शामिल थीं, जबकि महिलाएँ कमरबंद, झुमके और पायल भी पहनती थीं।
सामग्री: आभूषण बनाने के लिए बहुमूल्य धातुओं (सोना), रत्नों (अर्ध-कीमती पत्थर, कार्नेलियन, नीलम, फ़िरोज़ा, लैपिस लाजुली), हड्डी, पकी हुई मिट्टी, तांबा, कांस्य और खोल जैसी विभिन्न सामग्रियों का उपयोग किया जाता था।
मनका उद्योग: मनका उद्योग विशेष रूप से विकसित था, जिसके कारखाने चन्हुदड़ो और लोथल जैसे स्थलों पर पाए गए हैं। मनके डिस्क के आकार के, बेलनाकार, गोलाकार, बैरल के आकार के और खंडित होते थे। कुछ मनके दो या दो से अधिक पत्थरों को एक साथ सीमेंट करके बनाए जाते थे, और कुछ पर सोने का आवरण होता था। उत्कीर्णन, चित्रकला या नक्काशी द्वारा उन्हें सजाया भी जाता था। यह तकनीकी कौशल को दर्शाता है कि वे कितनी बारीकी से काम करते थे।
सिंधु घाटी सभ्यता के लोग कैसे कपड़े पहनते थे और उनके फैशन के प्रति जागरूकता के क्या प्रमाण हैं?
उत्तर: सिंधु घाटी सभ्यता के लोग कपड़े और फैशन के प्रति सचेत थे। पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि कपास और ऊन की कताई बहुत आम थी, जैसा कि बड़ी संख्या में तकलियों और तकली के घुमक्कड़ों की खोज से सिद्ध होता है। पुरुष और महिलाएँ दो अलग-अलग पोशाकें पहनते थे, जो आधुनिक धोती और शॉल के समान थीं। शॉल बाएँ कंधे को ढँकते हुए दाहिने कंधे के नीचे से गुजरती थी।
फैशन के प्रमाण: विभिन्न केशविन्यास प्रचलन में थे, और दाढ़ी रखना सभी के बीच लोकप्रिय था। सौंदर्य प्रसाधनों का भी उपयोग होता था; सिनाबार (सिंदूर) का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन के रूप में किया जाता था, और फेस पेंट, लिपस्टिक और कोहल (आईलाइनर) भी उन्हें ज्ञात थे। यह सब उनकी सामाजिक चेतना और फैशन के प्रति रुचि को दर्शाता है।
सिंधु घाटी सभ्यता के कलाकारों और शिल्पकारों की बहुमुखी प्रतिभा और कौशल को किन कला रूपों में देखा जा सकता है?
उत्तर: सिंधु घाटी सभ्यता के कलाकार और शिल्पकार विभिन्न शिल्पों में अत्यंत कुशल और बहुमुखी थे:
धातु ढलाई: 'लुप्त मोम' तकनीक का उपयोग करके कांस्य और तांबे की उत्कृष्ट मूर्तियाँ बनाना, जैसे 'नर्तकी' और बैल की आकृतियाँ।
पत्थर की नक्काशी: दाढ़ी वाले पुजारी की मूर्ति और पुरुष धड़ जैसी पत्थर की मूर्तियों में त्रि-आयामी आयतन और शारीरिक विवरण को संभालने में निपुणता।
मिट्टी के बर्तन बनाना और पेंट करना: चाक-निर्मित, महीन और विभिन्न आकारों के बर्तन बनाना, जिन पर ज्यामितीय और पशु डिज़ाइन चित्रित होते थे।
टेराकोटा की छवियाँ बनाना: मातृ देवी और अन्य आकृतियाँ, साथ ही खिलौने और दैनिक उपयोग की वस्तुएँ बनाना, जिसमें जानवरों, पौधों और पक्षियों के सरलीकृत रूपांकनों का उपयोग किया जाता था।
मुहरें और मनके: मुहरों पर जटिल उत्कीर्णन और मनकों के निर्माण में प्रयुक्त तकनीकी कौशल (विभिन्न आकृतियाँ, पत्थरों का जोड़, नक्काशी) उनकी विशेषज्ञता को दर्शाता है। यह बहुमुखी प्रतिभा और उच्च गुणवत्ता का शिल्प कौशल सिंधु घाटी कला को भारतीय उपमहाद्वीप की प्रारंभिक कला में एक अनूठा स्थान दिलाता है।
सिंधु घाटी की कलाकृतियाँ हमें तत्कालीन समाज और संस्कृति के बारे में क्या जानकारी देती हैं?
उत्तर: सिंधु घाटी की कलाकृतियाँ हमें तत्कालीन समाज और संस्कृति के बारे में बहुमूल्य जानकारी देती हैं:
कलात्मक विकास: वे उच्च कलात्मक संवेदनशीलता और परिष्कृत शिल्प कौशल को दर्शाती हैं, जो एक विकसित सभ्यता का संकेत है।
धार्मिक विश्वास: मातृ देवी की आकृतियाँ और पशुपति मुहर जैसी कलाकृतियाँ प्रजनन क्षमता, प्रकृति पूजा और शायद कुछ देवताओं के अस्तित्व से जुड़े धार्मिक विश्वासों का संकेत देती हैं।
आर्थिक गतिविधि: मुहरों का मुख्य रूप से वाणिज्यिक उपयोग व्यापारिक गतिविधियों और एक संगठित आर्थिक प्रणाली की उपस्थिति को दर्शाता है।
सामाजिक संरचना: आभूषणों की विविधता और विभिन्न सामग्रियों का उपयोग सामाजिक स्तरीकरण का सुझाव दे सकता है।
दैनिक जीवन: मिट्टी के बर्तन (घरेलू उपयोग), खिलौने, कताई के उपकरण, और सौंदर्य प्रसाधन का उपयोग दैनिक जीवन की आदतों और प्रौद्योगिकियों में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
शारीरिक और सौंदर्य बोध: दाढ़ी वाले पुजारी और नर्तकी जैसी आकृतियाँ शरीर के प्रति जागरूकता और सौंदर्य मानकों को दर्शाती हैं। कुल मिलाकर, ये कलाकृतियाँ एक शहरी, सुव्यवस्थित और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध समाज का चित्र प्रस्तुत करती हैं।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त 'नर्तकी' की मूर्ति के कलात्मक और सांस्कृतिक महत्व पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: मोहनजोदड़ो से प्राप्त लगभग चार इंच ऊँची 'नर्तकी' की कांस्य मूर्ति सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे प्रसिद्ध और आकर्षक कलाकृतियों में से एक है। यह अपनी कलात्मक गुणवत्ता और सांस्कृतिक महत्व के लिए अत्यधिक मूल्यवान है।
कलात्मक विशेषताएँ:
तकनीक: यह मूर्ति 'लुप्त मोम' तकनीक का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो उस समय के कलाकारों के धातु ढलाई के उन्नत कौशल को दर्शाती है।
अभिव्यक्ति और गतिशीलता: मूर्ति में एक युवती को उसकी दाहिनी हाथ कमर पर और बायाँ हाथ पारंपरिक भारतीय नृत्य मुद्रा में दिखाया गया है, जो उसमें अत्यधिक अभिव्यक्ति और शारीरिक ऊर्जा को दर्शाता है। उसकी भंगिमा में सहजता और गतिशीलता है।
शारीरिक विवरण: उसके लंबे बाल एक जूड़े में बंधे हैं, बाएँ हाथ पर चूड़ियाँ (लगभग 25), दाहिने हाथ पर एक कंगन और तावीज़/चूड़ी, और गर्दन के चारों ओर एक कौड़ी के खोल का हार है। उसकी बड़ी आँखें और सपाट नाक उसके चेहरे को एक विशिष्ट पहचान देती हैं।
सांस्कृतिक महत्व:
पेशेवर नर्तकी का चित्रण: कुछ विद्वानों का मानना है कि यह एक पेशेवर नर्तकी का प्रतिनिधित्व करती है, जो सिंधु समाज में नृत्य और कला के महत्व को दर्शाता है।
सामाजिक स्थिति: उसके आभूषण और मुद्रा तत्कालीन समाज में महिलाओं की भूमिका और उनकी सजावट की प्रथाओं पर प्रकाश डालती है।
धर्म या अनुष्ठान: यद्यपि स्पष्ट नहीं है, कुछ सिद्धांतों का सुझाव है कि यह मूर्ति धार्मिक या अनुष्ठानिक नृत्य से संबंधित हो सकती है।
निरंतर परंपरा: इसकी निर्माण तकनीक (लुप्त मोम) आज भी भारत के कुछ हिस्सों में प्रचलित है, जो एक प्राचीन कलात्मक परंपरा की निरंतरता को दर्शाती है। 'नर्तकी' की मूर्ति सिंधु घाटी के लोगों की कलात्मक संवेदनशीलता, उनके शिल्प कौशल और उनके समाज के सांस्कृतिक जीवन के बारे में अमूल्य जानकारी प्रदान करती है। यह केवल एक मूर्ति नहीं, बल्कि एक सभ्यता की आत्मा का प्रतीक है।
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