सौंदर्यशास्त्र (Aesthetics): परिचय और परिभाषा
मूल: यूनानी भाषा के शब्द 'एस्थेसिस' से 'एस्थेटिक' शब्द बना है।
एस्थेसिस का अर्थ: 'ऐंद्रिय सुख की चेतना'।
परिभाषा: सौंदर्यशास्त्र दर्शनशास्त्र की एक शाखा है जो कला, सौंदर्य और स्वाद के अध्ययन से संबंधित है।
पाश्चात्य सौंदर्यशास्त्र:
जन्मदाता: जर्मन दार्शनिक अलेक्जेंडर बामगार्टन (1714-1762)।
पुस्तक: उन्होंने अपनी पुस्तक 'एस्थेटिका' (1750 ई.) में पहली बार 'एस्थेटिक' शब्द का उपयोग किया, इसे 'ऐंद्रिय संवेदनाओं का विज्ञान' कहा।
फादर ऑफ एस्थेटिक: बामगार्टन को 'फादर ऑफ एस्थेटिक' कहा जाता है। उन्होंने फिलॉसफी को लॉजिक, एथिक्स और एस्थेटिक्स में विभाजित किया।
भारतीय सौंदर्यशास्त्र:
प्रथम दार्शनिक: भरतमुनि।
भारतीय सौंदर्यशास्त्र: रस सिद्धांत
प्रवर्तक: भरतमुनि।
ग्रंथ: 'नाट्यशास्त्र' (प्रथम शताब्दी ई.पू.)। यह संस्कृत में लिखा गया है और इसमें 36 अध्याय तथा 6000 श्लोक हैं।
रस का वर्णन: नाट्यशास्त्र के छठे और सातवें अध्याय में रस का वर्णन है।
भाव: भरतमुनि ने 49 भावों का विवेचन किया है (8 स्थायी, 33 संचारी और 8 सात्विक)।
रस की संख्या: भरतमुनि ने मूल रूप से आठ रसों की बात कही थी, लेकिन बाद में अभिनव गुप्त ने 'शांत रस' को नौवां रस माना।
सिद्धांत: भरतमुनि ने 'निष्पत्तिवाद' सिद्धांत दिया।
रस का अर्थ: दर्शक के मन में उत्पन्न आनंद की अनुभूति।
अभिनव गुप्त का योगदान
ग्रंथ: उन्होंने नाट्यशास्त्र पर 'अभिनव भारती' नामक टीका लिखी।
सिद्धांत: उन्होंने 'अभिव्यक्तिवाद' सिद्धांत दिया और रस सिद्धांत की मनोवैज्ञानिक व्याख्या की।
प्रमुख कथन: "रस कला की आत्मा है" और रस की प्रतीति में विघ्न की बात कही।
शांत रस: अभिनव गुप्त ने शांत रस को नौवां रस माना और इसकी पहली बार प्रस्तुति दी।
प्रमुख दार्शनिकों के विचार
प्लेटो (428-347 ई.पू.):
गुरु: सुकरात।
विचार: "कला सत्य की अनुकृति (नकल) है"। उनका मानना था कि कला यथार्थ (सत्य) की अनुकृति की भी अनुकृति है, इसलिए वह सत्य से दोहरी दूर रहती है।
सुकरात (470-399 ई.पू.):
कथन: "मैं यह जानता हूँ कि मैं कुछ नहीं जानता।"
विचार: "कला अनुकरण है और सत्य से दोहरी दूर रहती है।"
अरस्तू:
सिद्धांत: 'विरेचन का सिद्धांत' (कैथार्सिस) और 'द डार्क चैंबर'।
विचार: "कला प्रकृति की अनुकृति (नकल) करती है"। उनके अनुसार, कला के माध्यम से दूषित मनोविकारों का शुद्धिकरण होता है।
इमैनुअल कांट (1724-1804):
सिद्धांत: उनका सिद्धांत अन्तर्ज्ञान पर आधारित था।
कथन: "सौंदर्य उद्देश्य-विहीन है।"
क्रोचे:
सिद्धांत: 'अभिव्यंजना सिद्धांत' (Expressionist Theory) के प्रवर्तक।
विचार: "कला अंतःप्रज्ञा की अभिव्यक्ति है"। उन्होंने कला को तत्वतः भाषा माना और अभिव्यक्ति व सौंदर्य को एक ही अवधारणा माना।
प्रमुख कथन: "मैं अपने दिमाग से चित्र बनाता हूँ, हाथ से नहीं।" (यह कथन माइकेल एंजेलो का है, जिसका उल्लेख क्रोचे ने किया)।
रस्किन:
विचार: "मनुष्य अपने भावों को कला के द्वारा प्रकट करता है", यानी "कला एक अभिव्यक्ति है"।
पुस्तक: 'मॉडर्न पेंटर्स'।
इमरसन:
कथन: "सौंदर्य भगवान का हस्तलेख है।"
भारतीय कला और साहित्य
यशोधर पंडित:
ग्रंथ: 'जयमंगला'।
योगदान: कामसूत्र की टीका में 'षडंग' (भारतीय चित्रकला के छह अंग) का विस्तृत विवरण दिया।
अवनींद्रनाथ टैगोर:
योगदान: यशोधर के चित्र-षडांग की पुनर्व्याख्या की।
पुस्तक: 'भारत शिल्प के षडांग'।
विष्णु-धर्मोत्तर पुराण:
लेखक: मार्कण्डेय मुनि।
काल: गुप्त काल (छठी शताब्दी)।
विशेषता: यह चित्रकला, मूर्तिकला और वास्तुकला से संबंधित है। इसके 'चित्रसूत्र' में 9 रसों का वर्णन है।
कालिदास:
रचनाएँ: 'अभिज्ञानशाकुंतलम', 'मेघदूत'। 'मेघदूत' में यक्ष ने धातु रंग से यक्षिणी का चित्र बनाया था।
वात्स्यायन:
ग्रंथ: 'कामसूत्र'। इसमें 64 प्रकार की कलाओं का वर्णन है।
महाभारत:
एक कथा में सत्यवान द्वारा भित्ति-चित्र अंकित करने का प्रसंग है।
चित्रलेखा नामक चित्रकार का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने अनिरुद्ध का चित्र बनाया था।
अन्य पुस्तकें और लेखक:
'द पावर्टी ऑफ फिलॉसफी': कार्ल मार्क्स।
'मीनिंग ऑफ आर्ट': हरबर्ट रीड।
'द एनालिसिस ऑफ ब्यूटी': विलियम होगार्थ।
'द फिलॉसफी ऑफ फाइन आर्ट': हीगल।
'पद्मावत': मलिक मुहम्मद जायसी।
'द मर्चेन्ट ऑफ वेनिस': विलियम शेक्सपियर।
'रामायण': महर्षि वाल्मीकि।
विभिन्न कला सिद्धांत
रस सिद्धांत के व्याख्याकार:
आरोपवाद/उत्पत्तिवाद: भट्टलोलल
अनुमितिवाद: शंकुक
भुक्तिवाद: भट्टनायक
अभिव्यक्तिवाद: अभिनव गुप्त
अन्य सिद्धांत:
ध्वनि सिद्धांत: आनंदवर्धन।
अलंकार सिद्धांत: आचार्य भामह।
रीति सिद्धांत: आचार्य वामन।
औचित्य सिद्धांत: आचार्य क्षेमेन्द्र।
लिबिडो थ्योरी: सिगमंड फ्रायड।
समानुभूति: थियोडोर लिप्स।
हीगल का वर्गीकरण: हीगल ने ललित कलाओं को पाँच भागों में वर्गीकृत किया और काव्यकला को सर्वश्रेष्ठ माना।
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