I. वन-लाइनर प्रश्न (One-Liner Questions) (30)
राजस्थानी चित्रकला शैली का विकास किस शताब्दी से किस शताब्दी के मध्य हुआ? सोलहवीं शताब्दी के मध्य से उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभ के मध्य।
आनंद कुमारस्वामी ने 1916 में राजस्थानी चित्रकला को क्या नाम दिया था? राजपूत चित्रकला।
आनंद कुमारस्वामी ने किस शैली को राजपूत शैली के अंतर्गत रखा था? मालवा शैली और पहाड़ी शैली को।
चित्रों का निर्माण सामान्यतया किस पर किया जाता था? वसली पर।
वसली बनाने के लिए कागज़ के पतले पन्नों को किससे चिपकाया जाता था? गोंद से।
चित्रों में रेखांकन किस रंग से किया जाता था? काले या भूरे रंग से।
चित्रों में रंग मुख्य रूप से किससे बनाए जाते थे? प्रकृति से प्राप्त खनिज पदार्थों व बहुमूल्य धातुओं (सोना, चाँदी) से।
चित्रों में ब्रुश बनाने के लिए किस जानवर के बालों का प्रयोग किया जाता था? ऊँट या गिलहरी के बालों का।
चित्रण कार्य पूर्ण होने पर चित्र की सतह को चमकदार बनाने के लिए किससे रगड़ा जाता था? अगेट पत्थर से (घुटाई करना)।
राम और कृष्ण से संबंधित कौन सा संप्रदाय 16वीं शताब्दी तक लोकप्रिय हो चुका था? वैष्णव संप्रदाय (भक्ति आंदोलन)।
'गीत गोविंद' की रचना किस कवि ने की थी? जयदेव ने।
जयदेव किस राजा के दरबारी कवि थे? बंगाल के राजा लक्ष्मण सेन के।
'गीत गोविंद' किस भाषा का काव्य है? संस्कृत का।
'रसमंजरी' के रचनाकार कौन थे? भानुदत्त।
'रसमंजरी' का अर्थ क्या है? आनंद का गुलदस्ता।
'रसिकप्रिया' के रचनाकार कौन थे? केशवदास।
केशवदास किस राजा के दरबारी कवि थे? ओरछा के राजा मधुकर शाह के।
'रसिकप्रिया' किस भाषा में रचित है? ब्रजभाषा में।
केशवदास द्वारा राय परबीन के सम्मान में रचित अन्य काव्य का नाम क्या है? कविप्रिया।
'बारहमासा' नामक प्रकरण किस काव्य के दसवें अध्याय में है? कविप्रिया में।
'बिहारी सतसई' के रचनाकार कौन हैं? बिहारीलाल।
बिहारीलाल किस राजा के राजदरबार में कार्य कर रहे थे? जयपुर के मिर्जा राजा जय सिंह के।
'रागमाला' चित्रकला किसकी चित्रात्मक अभिव्यक्ति है? रागों और रागिनियों की।
रागमाला चित्रकला में सामान्यतया कितने चित्रित पृष्ठ होते हैं? 36 या 42।
छह मुख्य रागों में से किन्हीं दो के नाम बताएँ। भैरव, मालकोस, हिंडोल, दीपक, मेघ, श्री।
मालवा शैली में चित्रित अमरू शतक का समय क्या है? 1652 ई.।
मेवाड़ चित्रकला शैली की उत्पत्ति सामान्यतया किस वर्ष में निसारदीन द्वारा चित्रित रागमाला से मानी जाती है? 1605 ई. में।
मेवाड़ शैली में किस शासक के काल में चित्रों में परिष्कार आया? राजा जगत सिंह (1628-52) के शासन काल में।
बूँदी रागमाला का चित्रण किस शासक के शासन काल में हुआ? हाड़ा राजपूत शासक भोज सिंह (1585-1607) के शासन काल में।
किशनगढ़ चित्रकला शैली की पहचान किन विशेषताओं से होती है? धनुषाकार भौहों से बने चेहरे, कमल की पंखुड़ी के समान आँख, नुकीली नाक और पतले होंठ जैसी शैलीकृत विशेषताओं से।
II. अति लघुत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Questions) (30)
राजस्थानी चित्रकला शैली का तात्पर्य क्या है? उत्तर: राजस्थानी चित्रकला शैली का तात्पर्य चित्रकला की उस शैली से है जो मुख्य रूप से राजस्थान एवं वर्तमान समय के मध्य प्रदेश के कुछ शाही राज्यों एवं ठिकानों में फैली थी।
आनंद कुमारस्वामी ने 'राजपूत चित्रकला' नाम क्यों दिया था? उत्तर: उन्होंने यह नामकरण इन चित्रों को उस समय की मुगल चित्रकला शैली से अलग दिखाने के लिए किया, क्योंकि इन राज्यों के अधिकांश शासक एवं संरक्षक राजपूत थे।
भारतीय चित्रकला के बारे में शोध के बाद 'राजपूत शैली' शब्द का प्रयोग क्यों समाप्त हो गया? उत्तर: समय के साथ और अधिक शोध होने पर 'राजपूत शैली' शब्द का प्रयोग समाप्त हो गया और उसके स्थान पर राजस्थानी शैली और पहाड़ी शैली शब्दों का प्रयोग किया जाने लगा।
वसली कैसे तैयार की जाती थी? उत्तर: वसली बनाने के लिए कागज़ के पतले पन्नों को गोंद से चिपकाकर आवश्यक मोटाई की वसली तैयार की जाती थी।
चित्रों को चमकीला और ओजपूर्ण बनाने की प्रक्रिया को क्या कहते थे और कैसे करते थे? उत्तर: इस प्रक्रिया को 'घुटाई' कहते थे, जिसमें चित्रण कार्य पूर्ण होने पर अगेट पत्थर से चित्र को रगड़ा जाता था।
चित्रकला का कार्य एक सामूहिक कार्य क्यों होता था? उत्तर: क्योंकि एक कुशल कलाकार आरंभिक रेखांकन करता था, और उसके शिष्य एवं दक्ष कलाकार रंग, छवि चित्रण, वास्तु, भू-दृश्य व पशु-पक्षी बनाने में अपना-अपना कार्य पूरा करते थे।
चित्रकला में सुलेखक की क्या भूमिका होती थी? उत्तर: सुलेखक निर्धारित स्थान पर संबंधित श्लोक या पद लिखता था।
सोलहवीं शताब्दी तक कौन सा धार्मिक संप्रदाय भारत में लोकप्रिय हो चुका था और क्यों? उत्तर: राम और कृष्ण से संबंधित वैष्णव संप्रदाय भक्ति आंदोलन के रूप में लोकप्रिय हो चुका था, जिसमें कृष्ण विशेष रूप से लोकप्रिय हुए।
कृष्ण की उपासना किस रूप में की जाने लगी थी? उत्तर: उनकी उपासना केवल ईश्वर के रूप में ही नहीं, बल्कि एक आदर्श प्रेमी के रूप में भी की जाने लगी।
गीत गोविंद में राधा और कृष्ण किसका प्रतीक हैं? उत्तर: गीत गोविंद में कृष्ण सृष्टिकर्ता माने गए जिनसे सारी सृष्टि की रचना हुई और राधा, मानवीय आत्मा की प्रतीक, अपने को उनमें समाहित होने को उद्दत हैं।
'रसमंजरी' ग्रंथ में किन-किन का विवरण मिलता है? उत्तर: 'रसमंजरी' में रसों के वर्णन के साथ-साथ नायक एवं नायिकाओं के भेद का भी विवरण मिलता है, जैसे उम्र के अनुसार चाल, आंगिक विशेषताओं और भावगत विशेषताओं के अनुसार।
'रसिकप्रिया' काव्य की क्या विशेषता थी? उत्तर: यह जटिल काव्यगत विवेचनों से परिपूर्ण है और इसकी रचना अभिजात्य दरबारियों के सौंदर्यबोध के उद्दीपन के लिए की गई थी।
'कविप्रिया' का दसवाँ अध्याय किस नाम से जाना जाता है और उसमें क्या है? उत्तर: यह 'बारहमासा' नामक प्रकरण है, जिसमें साल के बारह महीनों के जलवायु या मौसम का सटीक वर्णन हुआ है।
'बिहारी सतसई' का चित्रण किस शैली में अधिक हुआ है? उत्तर: बिहारी सतसई का चित्रण मेवाड़ में अधिक हुआ है, साथ ही साथ पहाड़ी शैली में भी इसका चित्रण हुआ है।
रागमाला चित्रकला में रागों को किस रूप में देखा गया? उत्तर: रागों को प्रेम एवं भक्ति के प्रसंगों में, दैवीय या मानवीय रूप में देखा गया।
रागमाला चित्रकला में प्रत्येक राग को किससे जोड़ा गया है? उत्तर: प्रत्येक राग को एक विशेष अवस्था, दिन के प्रहर (समय) और ऋतु से जोड़ा गया है।
मालवा शैली की द्वि-आयामी सपाट एवं सरल भाषा किस शैली से विकसित हुई थी? उत्तर: जैन पांडुलिपियों से चौरपंचाशिका पांडुलिपि चित्रों की शैलीगत विकास की पूर्णता की परिणति है।
मालवा शैली किसी एक निश्चित क्षेत्र में उत्पन्न क्यों नहीं हुई? उत्तर: यह मध्य भारत के बड़े भू-भाग में फैली, और वहाँ यह छिट-पुट रूप में मांडू, नुसरतगढ़ और नरस्यंग सहर में व्यक्त हुई।
मालवा शैली में राजकीय संरक्षकों एवं छवि चित्रण का अभाव क्या दर्शाता है? उत्तर: यह इस अवधारणा का प्रमाण है कि दतिया के राजाओं ने इन चित्रों को घुमंतू कलाकारों से खरीदा होगा।
मेवाड़ चित्रकला शैली को राजस्थानी चित्रकला का प्रारंभिक महत्वपूर्ण केंद्र क्यों माना जाता है? उत्तर: क्योंकि यहाँ से हमें चित्रकला की एक सतत शैलीगत परंपरा देखने को मिलती है।
राजा जगत सिंह के शासन काल में मेवाड़ चित्रों में परिष्कार किन कलाकारों के कारण आया? उत्तर: प्रतिभा संपन्न कलाकारों, साहिबदीन और मनोहर के कारण।
साहिबदीन द्वारा चित्रित रामायण युद्धकांड में कौन सी नवीन चित्रमय युक्ति प्रयोग की गई? उत्तर: संयोजन तिर्यक रेखीय परिप्रेक्ष्य।
मेवाड़ चित्रकला में 18वीं शताब्दी में चित्रकला का विषय किस ओर स्थानांतरित हो गया? उत्तर: साहित्य से दरबारी क्रियाकलापों एवं शाही मनोरंजन की ओर।
नाथद्वारा में किस भगवान के बड़े-बड़े चित्र कपड़े पर चित्रित होते थे और उन्हें क्या कहा जाता था? उत्तर: भगवान श्रीनाथ जी के, जिन्हें 'पिछवाई' कहा जाता था।
बूँदी चित्रकला शैली किस लिए उल्लेखनीय है? उत्तर: अपनी उत्तम रंग योजना और उत्कृष्ट औपचारिक अभिकल्प के लिए।
बूँदी और कोटा चित्रकला की एक प्रमुख विशेषता क्या है? उत्तर: सघन वनस्पतियाँ, सुरम्य भू-दृश्य के साथ विविध पेड़-पौधों, जंगली जीवन, पशु-पक्षियों, पहाड़ियों व झरनों का मनोहारी चित्रण।
बीकानेर में चित्रशालाएँ किस नाम से प्रचलित थीं और उनका क्या कार्य था? उत्तर: 'मंडी' के नाम से, जहाँ कलाकारों का समूह मुख्य चित्रकार के निर्देशन में चित्र रचना करते थे।
बीकानेर शैली के कलाकारों को किस नाम से पुकारा जाता था और क्यों? उत्तर: 'उस्तास' या 'उस्ताद', क्योंकि उनके छबि चित्रणों की प्रथा अद्वितीय थी और उनमें से बहुत-से चित्रणों में उनकी वंशावली की जानकारी भी शामिल थी।
किशनगढ़ शैली की 'नायिका' की शैलीगत विशेषताएँ क्या हैं? उत्तर: धनुषाकार भौहों से बने चेहरे, कमल की पंखुड़ी के समान हलकी गुलाबी रंग की आँख, झुकी पलकें, एक सुगठित नुकीली नाक और पतले होंठ।
जोधपुर चित्रकला शैली में कौन सी प्रथा उन्नीसवीं शताब्दी तक विशिष्ट एकाधिकार रही? उत्तर: छवि चित्रण एवं दरबारी जीवन को प्रदर्शित करने वाले दस्तावेज़ी चित्रों की प्रथा।
III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions) (20)
आपके विचार में किस प्रकार से पश्चिमी भारतीय पांडुलिपि चित्रकला परंपरा ने राजस्थान लघु चित्रकला परंपराओं के विकास को दिशा निर्देश दिए? उत्तर: पाठ में सीधे तौर पर पश्चिमी भारतीय पांडुलिपि चित्रकला परंपरा (जैसे जैन पांडुलिपियाँ) के राजस्थान लघु चित्रकला पर प्रभाव का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, लेकिन मालवा शैली के विवरण में यह बताया गया है कि मालवा शैली की द्वि-आयामी सपाट एवं सरल भाषा, जैन पांडुलिपियों से चौरपंचाशिका पांडुलिपि चित्रों की शैलीगत विकास की पूर्णता की परिणति है। इससे यह संकेत मिलता है कि जैन पांडुलिपि चित्रकला, जो पश्चिमी भारत में प्रचलित थी, ने राजस्थानी शैली की एक शाखा (मालवा) की प्रारंभिक शैलीगत नींव रखी। यह प्रभाव मुख्यतः सपाट अंकन, सरल रेखांकन और निश्चित रंग योजना में देखा जा सकता है, जिसने बाद में राजस्थानी शैलियों को अपनी विशिष्ट पहचान बनाने में मदद की।
राजपूत शैली शब्द का प्रयोग क्यों समाप्त हो गया और इसके स्थान पर किन शब्दों का प्रयोग किया जाने लगा? उत्तर: कलाविद् आनंद कुमारस्वामी ने 1916 में इन चित्रों को 'राजपूत चित्रकला' नाम दिया था ताकि इन्हें मुगल शैली से अलग किया जा सके। उन्होंने मालवा और पहाड़ी शैलियों को भी इसके अंतर्गत रखा। हालांकि, बाद में भारतीय चित्रकला पर काफी शोध हुए। इन शोधों से यह स्पष्ट हुआ कि भले ही ये शैलियाँ राजपूत शासकों के संरक्षण में विकसित हुईं, लेकिन इनकी अपनी स्वतंत्र भौगोलिक और शैलीगत पहचान थी। इसलिए, समय के साथ 'राजपूत शैली' शब्द का प्रयोग समाप्त हो गया और इसके स्थान पर अधिक सटीक शब्दों जैसे 'राजस्थानी शैली' और 'पहाड़ी शैली' का प्रयोग किया जाने लगा, जो इनकी भौगोलिक उत्पत्ति को भी दर्शाते हैं।
राजस्थानी चित्रकला की विभिन्न शैलियों में उनकी उत्पत्ति, विकास और शैली में क्या अंतर परिलक्षित होता है? उत्तर: यद्यपि इन शैलियों में भौगोलिक दूरी कम है, फिर भी उनकी उत्पत्ति, विकास व शैली में पर्याप्त अंतर है। यह अंतर सशक्त रेखांकन, रंगों की वरीयता (चमकदार और सौम्य), तथा संयोजन के तत्वों जैसे- वास्तु, मानवाकृतियाँ, प्रकृति, अंकन की तकनीक, प्रकृतिवाद के लिए आकर्षण और वर्णन विधि आदि में स्पष्ट होता है। इन्हीं विशेषताओं से वे एक-दूसरे से अलग अपनी पहचान बनाती हैं।
राजस्थानी चित्रकला में रंगों के निर्माण और ब्रुश के प्रयोग के बारे में बताएँ। उत्तर: राजस्थानी चित्रकला में रंग मुख्य रूप से प्रकृति से प्राप्त खनिज पदार्थों (जैसे गेरू, हरताल, लाजवर्द) और बहुमूल्य धातुओं जैसे सोना व चाँदी से बनाए जाते थे। इन रंगों को चिपकाने के लिए गोंद में मिलाया जाता था। ब्रुश बनाने के लिए ऊँट या गिलहरी के बालों का प्रयोग किया जाता था, जो बारीक और सटीक रेखांकन व रंग भरने में मदद करते थे।
चित्रकला में 'घुटाई' प्रक्रिया का क्या महत्व था? उत्तर: चित्रण कार्य पूर्ण होने पर चित्र की ऊपरी सतह को अगेट पत्थर से रगड़ा जाता था, जिसे 'घुटाई' कहते थे। इस प्रक्रिया से चित्र की सतह समतल, चमकदार और ओजपूर्ण हो जाती थी, जिससे रंगों की चमक बढ़ती थी और चित्र की सुंदरता में वृद्धि होती थी।
वैष्णव संप्रदाय और कृष्ण की उपासना ने राजस्थानी चित्रकला के विषयों को कैसे प्रभावित किया? उत्तर: 16वीं शताब्दी तक वैष्णव संप्रदाय और कृष्ण भक्ति आंदोलन पूरे भारत में लोकप्रिय हो चुका था। कृष्ण को केवल ईश्वर के रूप में ही नहीं, बल्कि एक आदर्श प्रेमी के रूप में भी पूजा जाने लगा। इस 'प्रेम की धारणा' को धार्मिक विषय के रूप में पोषित किया गया, जहाँ भावना और रहस्यवाद का समन्वय था। इसी कारण 'गीत गोविंद', 'रसिकप्रिया' जैसे ग्रंथ, जिनमें राधा-कृष्ण के प्रेम और भक्ति का चित्रण है, राजस्थानी चित्रकला के केंद्रीय विषय बन गए।
'रसमंजरी' और 'रसिकप्रिया' ग्रंथों ने राजस्थानी चित्रकला के लिए क्या सामग्री प्रदान की? उत्तर: 'रसमंजरी' (भानुदत्त) ने रसों के वर्णन के साथ-साथ नायक एवं नायिकाओं के विभिन्न भेदों (जैसे उम्र, आंगिक और भावगत विशेषताओं) का विस्तृत विवरण दिया। भले ही इसमें कृष्ण का उल्लेख नहीं था, चित्रकारों ने उन्हें आदर्श प्रेमी के रूप में चित्रित किया। 'रसिकप्रिया' (केशवदास) ने प्रेम, मिलन, वियोग, ईर्ष्या, विवाद और प्रेमी-प्रेमिकाओं में होने वाली अनबन जैसी जटिल काव्यगत विवेचनों को दर्शाया, जिसे राधा-कृष्ण के माध्यम से चित्रित किया गया। इन दोनों ग्रंथों ने कलाकारों को मानवीय भावनाओं और प्रेम के विविध पहलुओं को चित्रित करने के लिए समृद्ध विषय वस्तु प्रदान की।
रागमाला चित्रकला क्या है और इसकी संरचना कैसी होती है? उत्तर: रागमाला चित्रकला रागों और रागिनियों की चित्रात्मक अभिव्यक्ति है। इसमें संगीतज्ञों एवं कवियों द्वारा परंपरागत रूप से रागों को प्रेम एवं भक्ति के प्रसंगों में, दैवीय या मानवीय रूप में देखा गया। प्रत्येक राग एक विशेष अवस्था, दिन के प्रहर (समय) और ऋतु से जोड़ा गया है। रागमाला चित्रकला में सामान्यतया 36 या 42 चित्रित पृष्ठ होते हैं, जिन्हें एक परिवार के रूप में दिखाया गया है, जिसमें प्रत्येक परिवार का मुखिया एक पुरुष राग होता है और स्त्री के रूप में छह रागिनियाँ होती हैं।
मेवाड़ चित्रकला शैली की प्रारंभिक विशेषताएँ और राजा जगत सिंह के काल में आए परिष्कार का वर्णन करें। उत्तर: मेवाड़ शैली की उत्पत्ति 1605 ई. में निसारदीन द्वारा चित्रित रागमाला से मानी जाती है। इसकी प्रारंभिक विशेषताएँ थीं - प्रत्यक्ष उपागम, सरल संयोजन, छिट-पुट आलंकारिक विवरण और चटक रंगों का प्रयोग। राजा जगत सिंह (1628-52) के शासन काल में इसमें परिष्कार आया, जिसका श्रेय प्रतिभाशाली कलाकार साहिबदीन और मनोहर को जाता है। उन्होंने रागमाला, रसिकप्रिया, भागवतपुराण और रामायण जैसे ग्रंथों का चित्रण कर मेवाड़ चित्रकला को जीवंतता प्रदान की।
बूंदी और कोटा चित्रकला शैली की प्रमुख साझा विशेषताएँ क्या हैं? उत्तर: बूंदी और कोटा चित्रकला की एक प्रमुख विशेषता सघन वनस्पतियों; सुरम्य भू-दृश्य के साथ विविध पेड़-पौधों, जंगली जीवन, पशु-पक्षियों, पहाड़ियों व झरनों का मनोहारी चित्रण है। इसके साथ-साथ, दोनों शैलियों में जीवंत घुड़सवारों और हाथियों का अद्वितीय चित्रण भी हुआ है, जो इनकी पहचान है।
बीकानेर चित्रकला शैली पर मुगल शैली का क्या प्रभाव पड़ा? उत्तर: बीकानेर के शासकों की लंबे समय तक मुगलों से संगति के परिणामस्वरूप बीकानेर में एक विशेष चित्रकला भाषा का विकास हुआ। यह शैली मुगल शैली के लालित्य और रंग पट्टिका से प्रभावित थी। मुगल शिल्प के मुख्य कलाकार 17वीं शताब्दी में बीकानेर आए और वहाँ काम किया, जिससे यह प्रभाव और गहरा हुआ।
किशनगढ़ चित्रकला शैली की नायिका की विशिष्ट शैलीगत विशेषताएँ क्या हैं? उत्तर: किशनगढ़ शैली के चित्र अपनी उत्कृष्ट बनावट और धनुषाकार भौहों से बने चेहरे, कमल की पंखुड़ी के समान हलकी गुलाबी रंग की आँख, झुकी पलकें, एक सुगठित नुकीली नाक और पतले होंठ जैसी शैलीगत विशेषताओं से अपनी विशिष्ट पहचान बनाते हैं। ये विशेषताएँ यहाँ की नायिकाओं के चित्रण में विशेष रूप से देखी जाती हैं।
जोधपुर चित्रकला शैली में 'दस्तावेज़ी चित्रों' की प्रथा का क्या महत्व था? उत्तर: जोधपुर शैली में महाराजा जसवंत सिंह (1638-78) के काल में छवि चित्रण एवं दरबारी जीवन को प्रदर्शित करने वाले दस्तावेज़ी चित्रों की प्रथा 1640 में शुरू हुई। यह उन्नीसवीं शताब्दी में छायाचित्रों के आगमन तक एकमात्र विशिष्ट एकाधिकार रही और चित्रों के अभिलेख वृत्तांत का पर्याय बन गई। इन चित्रों से उस काल के शासकों, दरबारी जीवन और ऐतिहासिक घटनाओं का महत्वपूर्ण दस्तावेजीकरण हुआ।
जयपुर चित्रकला शैली पर मुगल प्रभाव क्यों था और सवाई प्रताप सिंह के समय इसमें क्या बदलाव आया? उत्तर: जयपुर (पहले आमेर) की निकटता मुगल राजधानियों (आगरा और दिल्ली) से थी और जयपुर के शासकों ने मुगल सम्राटों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखे। इससे जयपुर की कलात्मकता पर मुगल शैली का गहरा प्रभाव पड़ा। हालांकि, 18वीं शताब्दी में सवाई प्रताप सिंह (1779-1803) की इच्छानुसार मुगल प्रभाव कम हुआ और जयपुर शैली पुनर्निर्मित सौंदर्यशास्त्र के साथ, मुगल और स्वदेशी शैलीगत विशेषताओं का मिश्रण बनी।
राजस्थान लघु चित्रकारी के लिए सामग्री और विषय प्रदान करने वाले किन्हीं चार ग्रंथों के नाम लिखिए। उत्तर:
गीत गोविंद: जयदेव द्वारा रचित, राधा-कृष्ण के आध्यात्मिक प्रेम पर आधारित।
रसिकप्रिया: केशवदास द्वारा रचित, प्रेम और मानवीय भावनाओं के विभिन्न पहलुओं पर।
बिहारी सतसई: बिहारीलाल द्वारा रचित, सूक्ति और नैतिक हाजिरजवाबी पर।
भागवतपुराण: कृष्ण लीलाओं और भक्ति पर आधारित।
मालवा शैली में कौन से विषय अधिक प्रचलित थे? उत्तर: रामायण, भागवतपुराण, अमरू शतक, रसिकप्रिया, रागमाला और बारहमासा आदि।
मेवाड़ शैली में 18वीं शताब्दी में चित्रकला के किन नए विषयों ने लोकप्रियता हासिल की? उत्तर: धर्मनिरपेक्ष एवं दरबारी विषय जैसे बृहदाकार एवं आकर्षक दरबारी दृश्यों, शिकार के अभियान, उत्सव, अंतःपुर के दृश्य, खेल आदि।
बूंदी चित्रकला में 'बारहमासा' क्या था? उत्तर: 'बारहमासा' बूंदी चित्रकला का एक लोकप्रिय विषय था, जो केशवदास की पुस्तक कविप्रिया के दसवें अध्याय का भाग है। इसमें साल के बारह महीनों के जलवायु या मौसम का सटीक वर्णन होता था।
बीकानेर शैली में 'उस्ताद' किसे कहते थे और क्यों? उत्तर: बीकानेर शैली के कलाकारों को 'उस्ताद' कहते थे, क्योंकि उनके छवि चित्रणों की प्रथा अद्वितीय थी और उनमें से बहुत-से चित्रणों में उनकी वंशावली की जानकारी भी शामिल थी, जो उनकी विशेषज्ञता को दर्शाता था।
जोधपुर शैली में मानसिंह के शासनकाल की प्रमुख चित्र संग्रह कौन से थे? उत्तर: रामायण (1804), ढोला-मारू, पंचतंत्र (1804) और शिवपुराण।
IV. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions) (20)
राजस्थानी चित्रकला शैली की भौगोलिक व्याप्ति और उसके नामकरण के इतिहास पर प्रकाश डालिए। उत्तर: राजस्थानी चित्रकला शैली मुख्य रूप से 16वीं से 19वीं शताब्दी के मध्य राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ शाही राज्यों जैसे मेवाड़, बूँदी, कोटा, जयपुर, बीकानेर, किशनगढ़, जोधपुर, मालवा आदि में फैली। 1916 में आनंद कुमारस्वामी ने इसे 'राजपूत चित्रकला' नाम दिया, क्योंकि अधिकतर शासक राजपूत थे, और इसे मुगल शैली से अलग करना चाहते थे। उन्होंने मालवा और पहाड़ी शैलियों को भी इसमें शामिल किया। हालांकि, बाद में हुए शोधों ने भौगोलिक और शैलीगत भिन्नताओं को स्पष्ट किया, जिसके परिणामस्वरूप 'राजपूत शैली' शब्द का प्रयोग समाप्त हो गया और इसके स्थान पर 'राजस्थानी शैली' और 'पहाड़ी शैली' का प्रयोग होने लगा।
राजस्थानी चित्रकला में चित्रों के निर्माण की प्रक्रिया (तकनीक) का वर्णन करें। उत्तर: राजस्थानी चित्रकला में चित्र सामान्यतया 'वसली' पर बनाए जाते थे, जो कागज़ के पतले पन्नों को गोंद से चिपकाकर तैयार की जाती थी। इस पर पहले काले या भूरे रंग से रेखांकन किया जाता था। रंग मुख्यतः प्रकृति से प्राप्त खनिज पदार्थों और बहुमूल्य धातुओं (सोना, चाँदी) से बनाए जाते थे और गोंद में मिलाकर लगाए जाते थे। ऊँट या गिलहरी के बालों से बने ब्रुश का प्रयोग होता था। चित्रण पूरा होने पर चित्र को अगेट पत्थर से 'घुटाई' की जाती थी, जिससे सतह समतल, चमकदार और ओजपूर्ण हो जाती थी। यह एक सामूहिक कार्य था जिसका नेतृत्व एक कुशल कलाकार करता था, और शिष्य व दक्ष कलाकार अपने-अपने कार्य पूरा करते थे।
राजस्थानी चित्रकला के विषयों की विविधता पर एक संक्षिप्त समीक्षा प्रस्तुत करें। उत्तर: राजस्थानी चित्रकला के विषय अत्यंत विविध थे। 16वीं शताब्दी से राम और कृष्ण से संबंधित वैष्णव भक्ति विशेष रूप से लोकप्रिय हुई, जिससे 'गीत गोविंद', 'रसिकप्रिया' और 'भागवतपुराण' जैसे ग्रंथ चित्रों के मुख्य आधार बने। रागमाला चित्रकला (रागों और रागिनियों का चित्रात्मक रूप) भी महत्वपूर्ण थी। इसके अतिरिक्त, 'ढोलामारू', 'सोनी-महिवाल' जैसे प्रेमाख्यान तथा 'रामायण', 'महाभारत', 'देवी महात्म्य' जैसे महाकाव्य भी चित्रित किए गए। दरबारी जीवन के दृश्य जैसे शिकार, युद्ध, उत्सव, नृत्य, संगीत, राजाओं के छवि चित्रण और शहरी जीवन भी प्रमुखता से चित्रित हुए।
गीत गोविंद, रसमंजरी और रसिकप्रिया का राजस्थानी चित्रकला में योगदान स्पष्ट करें। उत्तर: इन तीनों ग्रंथों ने राजस्थानी चित्रकला के लिए अत्यंत समृद्ध विषय वस्तु प्रदान की। गीत गोविंद (जयदेव) ने राधा-कृष्ण के आध्यात्मिक प्रेम को मानवीय रूप में चित्रित करने का आधार दिया, जहाँ आत्मा (राधा) परमात्मा (कृष्ण) में विलीन होने को उत्सुक है। रसमंजरी (भानुदत्त) ने नायक-नायिकाओं के विभिन्न भेदों और रसों का विस्तृत वर्णन दिया, जिससे कलाकारों को मानवीय भावनाओं और सौंदर्य को गहराई से चित्रित करने की प्रेरणा मिली। रसिकप्रिया (केशवदास) ने प्रेम, वियोग, ईर्ष्या आदि की जटिल काव्यगत अवस्थाओं को राधा-कृष्ण के माध्यम से दर्शाया, जिससे मानवीय संबंधों की सूक्ष्म भावनाओं का चित्रण संभव हुआ।
मालवा चित्रकला शैली की प्रमुख विशेषताएँ और इसकी उत्पत्ति का भौगोलिक संदर्भ समझाएँ। उत्तर: मालवा शैली 16वीं-17वीं शताब्दी में हिंदू राजपूत दरबारों का प्रतिनिधित्व करती थी। इसकी प्रमुख विशेषताएँ द्वि-आयामी सपाट एवं सरल भाषा थीं, जो जैन पांडुलिपियों की चौरपंचाशिका शैली से प्रभावित थीं। यह शैली किसी एक निश्चित क्षेत्र में उत्पन्न नहीं हुई, बल्कि मध्य भारत के बड़े भू-भाग (मांडू, नुसरतगढ़, नरस्यंग सहर) में फैली थी। इसमें राजकीय संरक्षकों और छवि चित्रण का अभाव देखा जाता है, जो यह दर्शाता है कि यहाँ घुमंतू कलाकारों द्वारा रामायण, भागवतपुराण, अमरू शतक, रसिकप्रिया आदि सामान्य जन में प्रचलित विषयों पर चित्र बनाए जाते थे।
मेवाड़ चित्रकला शैली के विकास में राजा जगत सिंह और साहिबदीन जैसे कलाकारों का क्या योगदान था? उत्तर: मेवाड़ को राजस्थानी चित्रकला का प्रारंभिक केंद्र माना जाता है। निसारदीन द्वारा 1605 की रागमाला इसकी उत्पत्ति मानी जाती है। राजा जगत सिंह (1628-52) के शासन काल में मेवाड़ चित्रकला में उल्लेखनीय परिष्कार आया। इसका श्रेय साहिबदीन और मनोहर जैसे प्रतिभाशाली कलाकारों को जाता है। साहिबदीन ने रागमाला, रसिकप्रिया, भागवतपुराण और रामायण (युद्धकांड में तिर्यक रेखीय परिप्रेक्ष्य) का चित्रण कर शैली को जीवंतता दी, जबकि मनोहर ने रामायण का बालकांड चित्रित किया। इन कलाकारों ने मेवाड़ी चित्रकला की परिभाषा गढ़ी और इसे नई ऊँचाईयों पर पहुँचाया।
बूंदी चित्रकला शैली की विशिष्टताएँ और उसके विकास में शासकों का योगदान समझाएँ। उत्तर: बूंदी शैली 17वीं शताब्दी में अपनी उत्तम रंग योजना और उत्कृष्ट औपचारिक अभिकल्प के लिए उल्लेखनीय थी। बूंदी रागमाला (1591) इसकी आरंभिक कृति मानी जाती है। इसका विकास मुख्य रूप से राव छत्रसाल और उनके पुत्र राव भाओ सिंह के संरक्षण में हुआ, जिन्होंने इसे काफी प्रोत्साहन दिया। राजा उमेद सिंह के शासन काल में चित्रण कार्य चरम सीमा पर पहुंचा, जहाँ सूक्ष्म विवरणों पर जोर दिया गया। बूंदी शैली की प्रमुख विशेषता सघन वनस्पतियों, सुरम्य भू-दृश्यों और जंगली जीवन का मनोहारी चित्रण है, साथ ही जीवंत घुड़सवारों और हाथियों का अद्वितीय अंकन।
कोटा चित्रकला शैली किस विशेषता के लिए उत्कृष्ट थी और यह बूंदी से कैसे अलग हुई? उत्तर: कोटा चित्रकला शैली विशेष रूप से शिकार के दृश्यों को चित्रित करने में उत्कृष्ट थी, जिसमें पशुओं के शिकार के असाधारण उत्साह एवं जुनून को प्रकट किया जाता था। बूंदी और कोटा 1625 तक एक ही राज्य थे। जहाँगीर द्वारा बूंदी साम्राज्य को विभाजित कर कोटा को राव रतन सिंह के पुत्र मधु सिंह को पुरस्कारस्वरूप देने पर यह बूंदी से अलग हुआ। 1660 में जगत सिंह के शासन काल में कोटा में अपनी अलग शैली की शुरुआत हुई। हालाँकि आरंभिक काल में दोनों शैलियों में अंतर करना कठिन था, कोटा ने धीरे-धीरे अपनी विशिष्ट पहचान बनाई, जिसमें सहज अंकन, सुलेखन पर जोर और पशुओं व युद्धों के प्रतिपादन में उत्कृष्टता प्रमुख थी।
बीकानेर चित्रकला शैली की मुगल प्रभाव और अभिलेखन प्रथा का वर्णन करें। उत्तर: बीकानेर शैली मुगल दरबारों के साथ लंबे संपर्क के कारण मुगल शैली के लालित्य और रंग पट्टिका से गहराई से प्रभावित थी। 17वीं शताब्दी में मुगल शिल्प के मुख्य कलाकार (जैसे उस्ताद अली रजा) बीकानेर आए और यहाँ काम किया। रुकनुद्दीन जैसे कलाकारों की शैली में देशी, दक्कनी और मुगल परंपरा का मिश्रण था। बीकानेर की एक अद्वितीय प्रथा चित्रशाला (मंडी) थी, जहाँ समूह में काम होता था। चित्र पूरा होने पर, दरबारी अभिलेखविद् मुख्य कलाकार का नाम और दिनांक चित्र के पीछे लिखते थे ('गुदराई' प्रथा), जिससे कलाकारों और उनकी वंशावली की जानकारी मिलती है।
किशनगढ़ चित्रकला शैली की कलात्मक विशेषताएँ और उसके विकास में सावंत सिंह का योगदान समझाएँ। उत्तर: किशनगढ़ शैली अपनी उत्कृष्ट बनावट और नायिका के विशिष्ट चेहरे की विशेषताओं के लिए जानी जाती है, जैसे धनुषाकार भौहें, कमल की पंखुड़ी जैसी आँखें, नुकीली नाक और पतले होंठ। राज सिंह के काल में 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में यह शैली विकसित हुई, जिसमें लंबी मानवाकृतियाँ, हरे रंग का प्रचुर प्रयोग और मनोरम दृश्य थे। सावंत सिंह (और उनके कवि हृदय) के समय में, निहालचंद जैसे उत्कृष्ट कलाकार ने उनके लिए 1735-57 तक कार्य किया। निहालचंद ने सावंत सिंह की कविताओं पर आधारित राधा-कृष्ण के दिव्य युगल के चित्रों को विशाल मनोरम परिदृश्यों में छोटी आकृतियों के रूप में अत्यंत बारीकी से चित्रित किया, जिससे यह शैली अपने चरम पर पहुँची।
V. निबंधात्मक प्रश्न (Essay Questions) (10)
राजस्थानी चित्रकला शैली के उद्भव और विकास का विस्तृत वर्णन करें। इसमें आनंद कुमारस्वामी के नामकरण और उसके बाद के परिवर्तनों को भी समझाएँ। उत्तर: (यहाँ उत्तर में राजस्थानी चित्रकला शैली का परिचय, 16वीं-19वीं शताब्दी का समय, भौगोलिक विस्तार, आनंद कुमारस्वामी का 'राजपूत चित्रकला' नामकरण, इसके पीछे का कारण (मुगल शैली से भिन्नता, स्वदेशी परंपरा), मालवा और पहाड़ी शैलियों का इसमें समावेश, तथा बाद में 'राजपूत शैली' शब्द के समाप्त होकर 'राजस्थानी' और 'पहाड़ी' शैलियों के रूप में विशिष्ट पहचान प्राप्त करने की पूरी प्रक्रिया का विस्तृत विश्लेषण शामिल होगा। इसमें शैलीगत भिन्नताओं, जैसे रेखांकन, रंगों और संयोजन तत्वों के अंतर को भी समझाना होगा।)
राजस्थानी चित्रकला में चित्रों के निर्माण की संपूर्ण प्रक्रिया, प्रयुक्त सामग्री और कला सामूहिक कार्य के रूप में कैसे होती थी, का विस्तृत वर्णन करें। उत्तर: (इस प्रश्न के उत्तर में वसली बनाने की विधि, उस पर रेखांकन (काले/भूरे रंग से), प्रकृति से प्राप्त खनिज व धातु रंगों का प्रयोग, गोंद का उपयोग, ऊँट/गिलहरी के बालों के ब्रुश, और अंतिम 'घुटाई' प्रक्रिया का विस्तृत विवरण दिया जाएगा। साथ ही, यह भी बताया जाएगा कि कैसे एक प्रधान कलाकार के नेतृत्व में शिष्य और अन्य दक्ष कलाकार रंग भरने, छवि चित्रण, वास्तु, भू-दृश्य और पशु-पक्षी बनाने में अपना-अपना कार्य करते थे, और सुलेखक की भूमिका क्या थी।)
भारतीय भक्ति आंदोलन, विशेषकर कृष्ण भक्ति, ने राजस्थानी चित्रकला के विषयों को किस प्रकार प्रभावित किया? 'गीत गोविंद', 'रसमंजरी' और 'रसिकप्रिया' जैसे प्रमुख ग्रंथों का उदाहरण देते हुए समझाएँ। उत्तर: (यह उत्तर 16वीं शताब्दी में भक्ति आंदोलन, विशेषकर वैष्णव संप्रदाय और कृष्ण की ईश्वर व आदर्श प्रेमी के रूप में उपासना के विस्तार पर केंद्रित होगा। बताया जाएगा कि कैसे प्रेम, भावना और रहस्यवाद की अवधारणा चित्रों के विषय बनी। 'गीत गोविंद' के माध्यम से राधा-कृष्ण के आध्यात्मिक प्रेम का चित्रण, 'रसमंजरी' से नायक-नायिकाओं के भेद और रसों का समावेश, तथा 'रसिकप्रिया' से प्रेम की विभिन्न भावनात्मक अवस्थाओं का राधा-कृष्ण के माध्यम से चित्रण कैसे किया गया, इसका विस्तृत विश्लेषण किया जाएगा।)
रागमाला चित्रकला क्या है? राजस्थानी चित्रकला की विभिन्न शैलियों (जैसे मेवाड़, बूँदी, बीकानेर) से रागमाला चित्रों के उदाहरण देते हुए इसकी अवधारणा और चित्रात्मक अभिव्यक्ति को समझाएँ। उत्तर: (इस प्रश्न में रागमाला की परिभाषा, संगीतज्ञों और कवियों द्वारा रागों को दैवीय/मानवीय रूप में देखने की परंपरा, प्रत्येक राग का अवस्था/समय/ऋतु से जुड़ाव और 36 या 42 चित्रित पृष्ठों की संरचना का वर्णन किया जाएगा। फिर, विभिन्न शैलियों में रागमाला के चित्रण का उल्लेख किया जाएगा, जैसे मेवाड़ में निसारदीन द्वारा रागमाला (1605), बूँदी में बूँदी रागमाला (1591), और बीकानेर में रुकनुद्दीन द्वारा रागमाला चित्रण। चित्रों में इन अवधारणाओं को कैसे दर्शाया जाता था, इसका भी विश्लेषण होगा।)
राजस्थानी चित्रकला शैली की प्रमुख विशेषताओं की चर्चा करें और यह कैसे मुगल शैली से भिन्न है? उत्तर: (इस उत्तर में राजस्थानी चित्रकला की सामान्य विशेषताओं जैसे सशक्त रेखांकन, चटक रंगों का प्रयोग, मानवाकृतियों का अंकन, प्रकृतिवाद का आकर्षण, धार्मिक (विशेषकर वैष्णव) और दरबारी विषयों की प्रधानता पर प्रकाश डाला जाएगा। साथ ही, इसकी तुलना मुगल शैली से की जाएगी, जहाँ मुगल शैली अधिक यथार्थवादी, दरबारी और ऐतिहासिक घटनाओं पर केंद्रित थी, जबकि राजस्थानी शैली में धार्मिक, लोककथात्मक और भावनात्मक पहलुओं पर अधिक जोर था, और इसकी अपनी स्वदेशी शैलीगत पहचान थी, जो आनंद कुमारस्वामी द्वारा 'राजपूत चित्रकला' नाम दिए जाने के मूल उद्देश्य को भी दर्शाती है।)
राजस्थानी चित्रकला में विभिन्न ग्रंथों और लोककथाओं ने किस प्रकार विषय वस्तु प्रदान की? उदाहरण सहित वर्णन कीजिए। उत्तर: (यह उत्तर उन विभिन्न साहित्यिक स्रोतों पर केंद्रित होगा जिन्होंने राजस्थानी लघु चित्रकारी के लिए विषय प्रदान किए। इसमें राम और कृष्ण से संबंधित वैष्णव संप्रदाय के ग्रंथों जैसे 'भागवतपुराण', 'गीत गोविंद', 'रसिकप्रिया' का विस्तार से उल्लेख होगा। इसके अलावा, केशवदास की 'कविप्रिया' (बारहमासा सहित) और बिहारीलाल की 'बिहारी सतसई' की भूमिका बताई जाएगी। 'ढोलामारू', 'सोनी-महिवाल', 'चौरपंचाशिका' और 'लौरचंदा' जैसे चारण एवं प्रेमाख्यानों के योगदान पर भी चर्चा की जाएगी। यह भी बताया जाएगा कि 'रामायण', 'महाभारत' और 'देवी महात्म्य' जैसे महाकाव्य भी पसंदीदा विषय थे।)
मेवाड़ चित्रकला शैली के उद्भव, विकास और 18वीं शताब्दी में इसमें आए परिवर्तनों का मूल्यांकन करें। उत्तर: (यह उत्तर मेवाड़ को राजस्थानी चित्रकला का प्रारंभिक और महत्वपूर्ण केंद्र माने जाने के कारणों पर प्रकाश डालेगा। निसारदीन द्वारा 1605 की रागमाला से शैली की उत्पत्ति, प्रारंभिक विशेषताओं (चटक रंग, सरल संयोजन) का वर्णन किया जाएगा। राजा जगत सिंह के काल में साहिबदीन और मनोहर जैसे कलाकारों के योगदान से आए परिष्कार (जैसे साहिबदीन का रामायण युद्धकांड में तिर्यक रेखीय परिप्रेक्ष्य) पर विस्तृत चर्चा होगी। अंत में, 18वीं शताब्दी में मेवाड़ चित्रकला का विषय साहित्य से दरबारी क्रियाकलापों और शाही मनोरंजन (शिकार, उत्सव, छवि चित्रण) की ओर कैसे स्थानांतरित हुआ और नाथद्वारा में पिछवाई चित्रों के विकास का भी उल्लेख किया जाएगा।)
बूँदी और कोटा चित्रकला शैलियों की तुलना करें और उनकी समानताएँ व भिन्नताएँ स्पष्ट करें, विशेष रूप से उनके चित्रण के विषयों और विशेषताओं के संदर्भ में। उत्तर: (यह उत्तर पहले बूँदी और कोटा के ऐतिहासिक संबंध (1625 तक एक ही राज्य) और फिर उनके अलग होने के बारे में बताएगा। दोनों शैलियों की साझा विशेषताओं पर जोर दिया जाएगा, जैसे सघन वनस्पतियाँ, सुरम्य भू-दृश्य, जंगली जीवन, पशु-पक्षी, और हाथियों का जीवंत चित्रण। फिर, उनकी भिन्नताओं पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा: बूँदी की उत्तम रंग योजना और औपचारिक अभिकल्प, तथा कोटा की शिकार के दृश्यों को चित्रित करने में उत्कृष्टता और पशुओं के प्रति जुनून। दोनों शैलियों में प्रमुख शासकों के योगदान और विशेष चित्र जैसे बूँदी रागमाला और कोटा में 'शतरंज के जुए' के चित्रण का भी उल्लेख किया जा सकता है।)
बीकानेर चित्रकला शैली पर मुगल प्रभाव और उसके अभिलेखन की विशिष्ट प्रथाओं का विस्तृत विश्लेषण करें। उत्तर: (इस उत्तर में बीकानेर शैली पर मुगल दरबारों के साथ लंबे संपर्क के कारण पड़े गहरे मुगल प्रभाव (लालित्य, रंग पट्टिका) का वर्णन होगा। मुगल कलाकारों (जैसे उस्ताद अली रजा) के बीकानेर में काम करने और रुकनुद्दीन जैसे स्थानीय कलाकारों की शैली में मुगल, दक्कनी और देशी मुहावरों के मिश्रण को समझाया जाएगा। बीकानेर की विशिष्ट 'मंडी' (चित्रशाला) प्रथा पर विस्तार से चर्चा होगी, जहाँ कलाकार समूह में काम करते थे। सबसे महत्वपूर्ण बिंदु 'अभिलेखन प्रथा' होगी, जिसमें दरबार के अभिलेखविद् द्वारा चित्र के पीछे कलाकार का नाम और दिनांक लिखने की परंपरा ('गुदराई' शब्द का प्रयोग) और इससे प्राप्त ऐतिहासिक जानकारी का महत्व बताया जाएगा।)
किशनगढ़, जोधपुर और जयपुर चित्रकला शैलियों की प्रमुख शैलीगत विशेषताएँ, विषय वस्तु और उनके विकास में शासकों के योगदान का तुलनात्मक अध्ययन करें। उत्तर: (इस प्रश्न का उत्तर तीनों शैलियों की अलग-अलग पहचान स्थापित करेगा। किशनगढ़ में नायिका के विशिष्ट चेहरे की विशेषताओं, लंबी मानवाकृतियों और राधा-कृष्ण के चित्रण पर निहालचंद के योगदान पर जोर दिया जाएगा। जोधपुर में दस्तावेज़ी चित्रों की प्रथा, मुगल प्रभाव (लेकिन स्वदेशी लोक शैली की प्रधानता), और मानसिंह के काल में नाथ संप्रदाय के प्रभाव का उल्लेख होगा। जयपुर में मुगल राजधानियों से निकटता के कारण प्रारंभिक मुगल प्रभाव, सवाई जय सिंह और सवाई प्रताप सिंह के संरक्षण में आया विकास, तथा मुगल और स्वदेशी शैलियों के मिश्रण पर चर्चा होगी। तीनों शैलियों में धार्मिक और दरबारी विषयों की प्रधानता और उनकी विशिष्ट चित्रण तकनीकों को तुलनात्मक रूप से प्रस्तुत किया जाएगा।)
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