प्राचीन मृदभांड, कलाकृति के रूप में एवं मानव सभ्यता का इतिहास

 प्राचीन मृदभांड (क्ले पॉटरी) मानव सभ्यता के विकास और सांस्कृतिक विरासत के महत्वपूर्ण प्रतीकों में से एक है। ये कलाकृतियाँ सिर्फ दैनिक उपयोग की वस्तुएँ नहीं थीं, बल्कि मानव सभ्यता के कला, धर्म, और सामाजिक जीवन के प्रतीक के रूप में भी देखी जाती हैं।


मृदभांड कला का उदय नवपाषाण युग में माना जाता है, जब मनुष्य ने स्थायी जीवन शैली अपनाई और खेती के लिए बसना शुरू किया। इस कला में मिट्टी को आकार देकर उसे आग में पकाकर मजबूत बर्तन बनाना शामिल था। इन बर्तनों को खाना पकाने, पानी संग्रह करने और अनाज रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। समय के साथ, मृदभांड कला ने कलात्मक और सजावटी रूप धारण कर लिया।

हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसी प्राचीन भारतीय सभ्यताओं में मृदभांड कला के उत्कृष्ट उदाहरण मिलते हैं। हड़प्पा सभ्यता में बनाई गई पॉटरी पर जटिल और सुन्दर डिज़ाइन होते थे, जिनमें ज्यामितीय आकार, वनस्पतियों और पशु आकृतियों का चित्रण होता था। इन डिज़ाइनों ने न केवल उनकी कलात्मक दृष्टि को दर्शाया, बल्कि उनके धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं का भी परिचय दिया।

मिस्र, मेसोपोटामिया, चीन और ग्रीस जैसी अन्य प्राचीन सभ्यताओं में भी मृदभांड कला का महत्व रहा है। मिस्र में पॉटरी पर चित्रित देवताओं और राजाओं के चित्र धार्मिक अनुष्ठानों और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक थे। चीनी मिंग वंश के दौरान, नीले और सफेद चीनी मिट्टी की बर्तनों में नई तकनीकें और सजावट के तरीकों का विकास हुआ, जो आज भी दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं।

प्राचीन मृदभांड कला से हमें यह समझ में आता है कि ये सिर्फ घरेलू वस्तुएँ नहीं थीं, बल्कि इनसे मानव सभ्यता का इतिहास, तकनीकी प्रगति, धार्मिक आस्थाएँ, और सांस्कृतिक विविधता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती हैं।

जम्मू कश्मीर के बुर्जहोम से खुदाई में मिला 5000 वर्ष पुराना चित्रित मृदभांड

जम्मू-कश्मीर के बुर्जहोम में खुदाई के दौरान मिले 5000 वर्ष पुराने चित्रित मृदभांड (क्ले पॉटरी) भारतीय पुरातत्त्व के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण खोज है। इस मृदभांड पर चित्रित डिज़ाइन और प्रतीक उस समय की सांस्कृतिक और सामाजिक जीवनशैली का परिचय देते हैं।

बुर्जहोम स्थल में मिले इन मृदभांडों पर ज्यामितीय आकृतियों, शिकार और पशु-पक्षियों के चित्रों का चित्रण मिलता है, जो इस क्षेत्र के लोगों के जीवन और उनके विश्वासों को दर्शाते हैं। विशेष रूप से, शिकार दृश्य और जानवरों की आकृतियाँ दर्शाती हैं कि यहाँ के लोग शिकारी जीवन शैली का अनुसरण करते थे और उनका परिवेश प्रकृति पर आधारित था।

यह पॉटरी न केवल कलात्मक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह उस समय की तकनीकी कुशलता को भी दर्शाता है। इन मृदभांडों का निर्माण करते समय मिट्टी को बहुत ही सटीकता से आकार दिया गया था, और इन्हें आग में पकाकर मजबूत किया गया था ताकि ये लंबे समय तक टिक सकें। बुर्जहोम की यह पॉटरी उस समय के लोगों के कुम्हारी कला में निपुण होने का प्रमाण है।

इस प्रकार के मृदभांड से हमें उस समय की धार्मिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक धरोहर के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती हैं। यह पॉटरी आज भी भारतीय इतिहास और प्राचीन सभ्यता के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है, जिससे हमें मानव जीवन की प्रारंभिक अवस्था के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।

चित्र साभार फेसबुक 
जम्मू कश्मीर के बुर्जहोम से खुदाई में मिला 5000 वर्ष पुराना चित्रित मृदभांड

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