पटचित्र चित्रकारी

 परिचय:

  • उत्पत्ति: ओडिशा की सबसे प्राचीन और लोकप्रिय कला।

  • शब्द का अर्थ: संस्कृत शब्द 'पट' (कैनवास) + 'चित्र' (तस्वीर) से बना है।

  • विशेषताएँ: चमकीले रंगों का प्रयोग, सरल विषय, और पौराणिक कहानियों पर आधारित।

मुख्य विषय:

  • थिया बादिया: जगन्नाथ मंदिर का चित्रण।

  • कृष्णलीला: भगवान कृष्ण के बाल रूप की शक्तियाँ।

  • दशावतार पति: भगवान विष्णु के दस अवतार।

  • पंचमुखी: पाँच सिरों वाले गणेश जी।


बनाने की प्रक्रिया:

  1. कैनवास तैयार करना (इसमें 5 दिन लगते हैं):

    • पेस्ट: इमली के बीजों को 3 दिन पानी में भिगोकर पीसकर पेस्ट बनाया जाता है, जिसे 'निर्यास कल्प' कहते हैं।

    • कपड़ा: दो कपड़े पेस्ट से जोड़कर कच्ची मिट्टी का लेप किया जाता है।

    • पॉलिश: सूखने के बाद खुरदरी मिट्टी से पॉलिश करके चिकना किया जाता है।

  2. रंग तैयार करना:

    • आधार: केथा वृक्ष का गोंद मुख्य सामग्री है।

    • रंग: प्राकृतिक कच्चे माल से बनते हैं (जैसे सफेद के लिए शंख, काले के लिए काजल)।

  3. ब्रश तैयार करना:

    • साधारण ब्रश: किया पौधे की जड़ से।

    • बारीक ब्रश: चूहे के बालों से।


कला की विशेषताएँ:

  • अनुशासित कला: कलाकार रंग और पैटर्न के प्रयोग में सख्त नियमों का पालन करते हैं।

  • रंगों का प्रयोग: केवल एक ही संगत वाले रंगों का उपयोग किया जाता है; विविध शेड्स का प्रयोग नहीं होता।

  • भावों की अभिव्यक्ति: आकृतियों के भावों को सुंदरता से दर्शाना इस कला का सबसे सुंदर पक्ष है।


आधुनिकता और भविष्य:

  • क्रांति: कलाकारों ने अब टसर सिल्क और ताड़ के पत्तों पर भी चित्रकारी शुरू कर दी है।

  • परंपरा का निर्वाह: आधुनिक बदलावों के बावजूद, पारंपरिक आकृतियों और रंगों का प्रयोग अभी भी जारी है।

  • कलाकारों की निष्ठा: कलाकारों की समर्पण भावना ने इस कला की प्रतिष्ठा को बनाए रखा है।

  • लोकप्रियता: ओडिशा में स्थापित विशेष केंद्र इस कला की लोकप्रियता को दर्शाते हैं।

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