अध्याय 05: परवर्ती भित्ति चित्र परंपराएँ: अभ्यास प्रश्न और उत्तर

 

अध्याय 05: परवर्ती भित्ति चित्र परंपराएँ: अभ्यास प्रश्न और उत्तर


20 वन-लाइनर प्रश्न

  1. प्रश्न: बादामी किस राजवंश की राजधानी थी? उत्तर: प्रारंभिक चालुक्य वंश।

  2. प्रश्न: बादामी की गुफा संख्या 4 में किस देवता की छवि का समर्पण है? उत्तर: विष्णु।

  3. प्रश्न: पल्लव राजा महेंद्रवर्मन प्रथम को 'चित्रकारपुली' क्यों कहा जाता था? उत्तर: कला गतिविधियों में उनकी गहरी रुचि के कारण।

  4. प्रश्न: पांड्य काल के चित्र किस प्रसिद्ध जैन गुफा में पाए जाते हैं? उत्तर: सित्तनवासल।

  5. प्रश्न: सित्तनवासल के चित्रों में आकृतियों के समोच्च किस रंग से रंगे गए हैं? उत्तर: सिंदूरी लाल।

  6. प्रश्न: चोल कला और वास्तुकला की उत्कृष्ट कृतियाँ किस शताब्दी में सामने आईं? उत्तर: ग्यारहवीं शताब्दी।

  7. प्रश्न: तंजावुर में बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण किस चोल राजा के शासनकाल में हुआ? उत्तर: राजराजा चोल।

  8. प्रश्न: बृहदेश्वर मंदिर में चित्रों की कितनी परतें पाई गईं? उत्तर: दो।

  9. प्रश्न: विजयनगर राजवंश की राजधानी क्या थी? उत्तर: हम्पी।

  10. प्रश्न: हम्पी के विरुपाक्ष मंदिर के चित्रों में कौन से महाकाव्य प्रसंग मिलते हैं? उत्तर: रामायण और महाभारत।

  11. प्रश्न: लेपाक्षी के चित्रों में चेहरे किस मुद्रा में दिखाए गए हैं? उत्तर: पार्श्व चित्र (profile)।

  12. प्रश्न: नायक वंश के चित्र किन शताब्दियों में पाए जाते हैं? उत्तर: सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी।

  13. प्रश्न: तिरुपरकुंद्रम में नायक काल के चित्र किन विषयों पर आधारित हैं? उत्तर: महावीर के जीवन, महाभारत, रामायण और कृष्ण-लीला के प्रसंगों पर।

  14. प्रश्न: केरल के चित्रकारों ने किस नृत्य परंपरा से प्रेरणा ली? उत्तर: कथकली।

  15. प्रश्न: 'कलाम एजुथु' किस राज्य की अनुष्ठानिक फर्श चित्रकला है? उत्तर: केरल।

  16. प्रश्न: केरल के चित्रकला में मानव आकृतियों को किस रूप में दर्शाया गया है? उत्तर: त्रि-आयामीता (three-dimensionality) में।

  17. प्रश्न: केरल में कौन से तीन महल भित्ति चित्रों के लिए जाने जाते हैं? उत्तर: डच महल (कोच्चि), कृष्णपुरम महल (कायमकुलम), और पद्मनाभपुरम महल।

  18. प्रश्न: राजस्थान और गुजरात के कुछ हिस्सों में किस पारंपरिक भित्ति चित्रकला का अभ्यास किया जाता है? उत्तर: पिथोरो।

  19. प्रश्न: उत्तरी बिहार के मिथिला क्षेत्र में कौन सी प्रसिद्ध चित्रकला शैली है? उत्तर: मिथिला चित्रकला।

  20. प्रश्न: महाराष्ट्र में प्रचलित एक ग्रामीण भित्ति चित्रकला का नाम बताइए। उत्तर: वारली चित्रकला।


20 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

  1. प्रश्न: बादामी की गुफा संख्या 4 के उत्खनन को किसने संरक्षण दिया? उत्तर: चालुक्य राजा मंगलेश ने।

  2. प्रश्न: बादामी के चित्रों में राजा और रानी के चेहरे की कौन सी विशेषता अजंता शैली की याद दिलाती है? उत्तर: उनके सुंदर ढंग से खींचे गए चेहरे और मॉडलिंग की शैली अजंता से मिलती-जुलती है, जहाँ आँखें आधी बंद और होंठ बाहर निकले हुए होते हैं।

  3. प्रश्न: पल्लव राजा महेंद्रवर्मन प्रथम को मिली तीन उपाधियाँ क्या थीं जो कला में उनकी रुचि दर्शाती हैं? उत्तर: विचित्रचित्त (उत्सुक मन वाला), चित्रकारपुली (कलाकारों में बाघ), और चैत्यकारी (मंदिर निर्माता)।

  4. प्रश्न: कांचीपुरम मंदिर में पल्लव काल के कौन से चित्र बचे हुए हैं? उत्तर: सोमास्कंद (शिव, उमा और स्कंद के साथ) को दर्शाने वाले चित्रों के निशान।

  5. प्रश्न: सित्तनवासल के चित्रों में कौन सी नृत्य करती हुई आकृतियाँ देखी जाती हैं? उत्तर: आकाशीय अप्सराओं (celestial nymphs) की नृत्य करती हुई आकृतियाँ।

  6. प्रश्न: सित्तनवासल के चित्रों में आकृतियों की आँखों की एक विशिष्ट विशेषता क्या है? उत्तर: आँखें थोड़ी लंबी हैं और कभी-कभी चेहरे से बाहर निकली हुई दिखाई देती हैं।

  7. प्रश्न: चोल काल में तंजावुर, गंगैकोंडा चोलपुरम और दरासुरम के मंदिरों का निर्माण किसने करवाया था? उत्तर: राजराजा चोल, उनके पुत्र राजेंद्र चोल, और राजराजा चोल द्वितीय ने करवाया था।

  8. प्रश्न: बृहदेश्वर मंदिर में चित्रों की ऊपरी परत किस काल की है और किसने इसे चित्रित किया? उत्तर: ऊपरी परत नायक काल की (सोलहवीं शताब्दी) है।

  9. प्रश्न: बृहदेश्वर मंदिर के चित्रों की विषय-वस्तु में भगवान शिव के कौन से रूप शामिल हैं? उत्तर: कैलाश में शिव, त्रिपुरांतक के रूप में शिव, और नटराज के रूप में शिव।

  10. प्रश्न: विजयनगर काल में हम्पी के विरुपाक्ष मंदिर के चित्रों की विषय-वस्तु क्या है? उत्तर: राजवंश के इतिहास की घटनाओं और रामायण तथा महाभारत के प्रसंगों का वर्णन।

  11. प्रश्न: लेपाक्षी के विजयनगर चित्रों में आकृतियों को किस प्रकार दर्शाया गया है? उत्तर: चेहरे पार्श्व चित्र में, और आकृतियाँ तथा वस्तुएँ द्वि-आयामी रूप से प्रस्तुत की गई हैं।

  12. प्रश्न: नायक काल के चित्रों में पुरुष आकृतियों की शारीरिक बनावट कैसी थी? उत्तर: पुरुष आकृतियाँ पतली कमर वाली होती थीं लेकिन विजयनगर की तुलना में पेट कम भारी होता था।

  13. प्रश्न: तिरुपरकुंद्रम में किस काल के चित्र पाए जाते हैं? उत्तर: चौदहवीं और सत्रहवीं शताब्दी के दो अलग-अलग कालों के चित्र।

  14. प्रश्न: नायक चित्रों में रामायण की कहानी को दर्शाने वाले 60 पैनल किस मंदिर में पाए जाते हैं? उत्तर: आर्कोट जिले के चेंगन में स्थित श्री कृष्ण मंदिर में।

  15. प्रश्न: केरल के चित्रकारों ने चित्रों में किस प्रकार के रंगों का उपयोग किया? उत्तर: जीवंत और चमकदार (vibrant and luminous) रंगों का उपयोग किया।

  16. प्रश्न: केरल के भित्ति चित्रों की विषय-वस्तु का मुख्य स्रोत क्या है? उत्तर: हिंदू पौराणिक कथाओं के वे प्रसंग जो केरल में लोकप्रिय थे, साथ ही मौखिक परंपराएँ और रामायण व महाभारत के स्थानीय संस्करण।

  17. प्रश्न: केरल में भित्ति चित्रों वाले किन्हीं दो महलों के नाम बताइए। उत्तर: कोच्चि में डच महल और कायमकुलम में कृष्णपुरम महल।

  18. प्रश्न: केरल में भित्ति चित्रकला परंपरा के परिपक्व चरण के दो स्थल कौन से हैं? उत्तर: पुंडरीकपुरम कृष्ण मंदिर और पानायनारकावु।

  19. प्रश्न: आज भी ग्रामीण घरों में भित्ति चित्रकला कौन करता है? उत्तर: आमतौर पर महिलाएँ।

  20. प्रश्न: ओडिशा या बंगाल के गाँवों में दीवारों पर की जाने वाली चित्रकला किस उद्देश्य से की जाती है? उत्तर: समारोहों या त्योहारों के समय, या दीवारों को साफ करने और सजाने की दिनचर्या के रूप में।


10 लघु उत्तरीय प्रश्न

  1. प्रश्न: बादामी के चित्रों की शैलीगत विशेषताओं का वर्णन करें और यह अजंता की परंपरा का विस्तार कैसे है? उत्तर: बादामी के चित्र, विशेष रूप से गुफा संख्या 4 में पाए गए, अजंता की भित्ति चित्रकला परंपरा का एक महत्वपूर्ण विस्तार दर्शाते हैं। यहाँ की चित्रकलाएँ घुमावदार खींची गई रेखाओं, तरल रूपों और सुगठित रचनाओं से युक्त हैं, जो छठी शताब्दी ईस्वी में कलाकारों की प्रवीणता और परिपक्वता को दर्शाती हैं। राजा और रानी के चेहरे अजंता की मॉडलिंग शैली की याद दिलाते हैं, जहाँ आँखों के गड्ढे बड़े, आँखें आधी बंद और होंठ बाहर निकले हुए होते हैं। कलाकार सरल रेखा उपचार के माध्यम से ही आयतन बनाने में सक्षम थे, जिससे चेहरे की उभरी हुई संरचनाएँ उभर कर आती थीं। यह अजंता की कलात्मक विरासत को दक्षिण भारत तक ले जाने का प्रमाण है।

  2. प्रश्न: पल्लव राजा महेंद्रवर्मन प्रथम का कला के प्रति क्या योगदान था? उसके समय की चित्रकला की मुख्य विशेषताएँ क्या थीं? उत्तर: पल्लव राजा महेंद्रवर्मन प्रथम (सातवीं शताब्दी) कला के महान संरक्षक थे। उन्होंने पनमलै, मंडगपट्टु और कांचीपुरम में मंदिरों का निर्माण करवाया। मंडगपट्टु शिलालेख में उन्हें 'विचित्रचित्त', 'चित्रकारपुली' और 'चैत्यकारी' जैसी उपाधियाँ दी गई हैं, जो कला में उनकी गहरी रुचि को दर्शाती हैं। उनके पहल पर इन मंदिरों में चित्रकलाएँ भी की गईं, हालाँकि उनके केवल खंड ही बचे हैं। पनमलै में एक स्त्री देवता की आकृति को सुंदर ढंग से खींचा गया है। कांचीपुरम में बचे सोमास्कंद के चित्रों में चेहरे गोल और बड़े हैं, और रेखाएँ लयबद्ध हैं, जिनमें पिछली अवधियों की तुलना में अलंकरण बढ़ा हुआ है। धड़ का चित्रण मूर्तिकला परंपरा जैसा ही है, लेकिन यह अधिक लंबा है।

  3. प्रश्न: सित्तनवासल के पांड्य काल के चित्रों की प्रमुख शैलीगत विशेषताओं पर प्रकाश डालें। उत्तर: सित्तनवासल के चित्र पांड्य कला परंपरा के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं, जो मंदिरों के गर्भगृहों की छतों, बरामदों और ब्रैकेटों पर देखे जा सकते हैं। इन चित्रों में आकृतियों के समोच्च दृढ़ता से खींचे गए हैं और हल्के पृष्ठभूमि पर सिंदूरी लाल रंग में रंगे गए हैं। शरीर को पीले रंग में सूक्ष्म मॉडलिंग के साथ प्रस्तुत किया गया है। नर्तकियों के लचीले अंग, चेहरों पर भाव और झूलते हुए आंदोलन में लय कलाकारों की रचनात्मक कल्पना और स्थापत्य संदर्भ में रूपों की कल्पना करने के कौशल को दर्शाते हैं। एक विशिष्ट विशेषता यह है कि उनकी आँखें थोड़ी लंबी होती हैं और कभी-कभी चेहरे से बाहर निकली हुई दिखाई देती हैं, जो दक्कन और दक्षिण भारत के कई परवर्ती चित्रों में भी पाई जाती है।

  4. प्रश्न: चोल काल में बृहदेश्वर मंदिर के चित्रों की खोज और उनके महत्व पर चर्चा करें। उत्तर: चोल काल की चित्रकलाएँ, विशेष रूप से तंजावुर के बृहदेश्वर मंदिर में, अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। ये चित्र मंदिर के गर्भगृह के चारों ओर के संकरे गलियारे की दीवारों पर निष्पादित किए गए थे। जब इन्हें खोजा गया, तो चित्रों की दो परतें पाई गईं: ऊपरी परत नायक काल (सोलहवीं शताब्दी) की थी, जबकि निचली परत चोल काल की थी। सतह के चित्र की सफाई के बाद चोल काल के महान चित्रकला परंपरा के उदाहरण सामने आए। इन चित्रों में भगवान शिव से संबंधित आख्यान (जैसे कैलाश में शिव, त्रिपुरांतक, नटराज), संरक्षक राजराजा और उनके गुरु कुरुवर के चित्र, और नृत्य करती हुई आकृतियाँ शामिल हैं। ये चित्र कलाकारों द्वारा वर्षों से विकसित की गई शैलीगत परिपक्वता को दर्शाते हैं।

  5. प्रश्न: विजयनगर भित्ति चित्रों की प्रमुख विशेषताएँ क्या थीं और वे पिछली शैलियों से कैसे भिन्न थे? उत्तर: विजयनगर भित्ति चित्र (चौदहवीं-सोलहवीं शताब्दी) एक विशिष्ट चित्रात्मक भाषा विकसित करते हैं। हम्पी के विरुपाक्ष मंदिर और लेपाक्षी के शिव मंदिर में इसके बेहतरीन उदाहरण मिलते हैं। इन चित्रों में चेहरे पार्श्व चित्र (profile) में दिखाए जाते हैं, और आकृतियाँ तथा वस्तुएँ द्वि-आयामी होती हैं। रेखाएँ स्थिर लेकिन तरल होती हैं, और रचनाएँ रेखीय डिब्बों में दिखाई देती हैं। आकृतियों की कमर संकीर्ण होती है और आँखें बड़ी व सामने की ओर होती हैं। यह पिछली शैलियों से अलग था, जहाँ त्रि-आयामीता और यथार्थवाद पर अधिक जोर दिया जाता था। विजयनगर शैली में कथात्मक सरलता और विशिष्ट प्रतीकात्मकता अधिक प्रमुख थी।

  6. प्रश्न: नायक वंश के चित्रों की विषय-वस्तु और शैलीगत विशेषताओं का वर्णन करें। उत्तर: नायक वंश के चित्र (सत्रहवीं-अठारहवीं शताब्दी) मुख्य रूप से तिरुपरकुंद्रम, श्रीरंगम और तिरुवरूर जैसे तमिलनाडु के स्थलों पर पाए जाते हैं। इनकी विषय-वस्तु में महाभारत और रामायण के प्रसंग, साथ ही कृष्ण-लीला के दृश्य शामिल हैं। कुछ स्थानों पर महावीर के जीवन और शिव-विष्णु से संबंधित कहानियाँ भी मिलती हैं (जैसे चिदंबरम में भिक्षाटन मूर्ति और मोहिनी)। शैलीगत रूप से, नायक चित्र विजयनगर शैली का ही विस्तार हैं, लेकिन इनमें कुछ छोटे क्षेत्रीय संशोधन हैं। आकृतियाँ अधिकतर पार्श्व चित्र में होती हैं और एक सपाट पृष्ठभूमि पर स्थापित होती हैं। पुरुष आकृतियाँ पतली कमर वाली होती हैं लेकिन विजयनगर की तुलना में पेट कम भारी होता है। कलाकार गति को बढ़ाने और स्थान को गतिशील बनाने का प्रयास करते हैं।

  7. प्रश्न: केरल के भित्ति चित्रकला परंपरा की विशिष्टताएँ क्या हैं? ये अन्य दक्षिण भारतीय शैलियों से कैसे भिन्न हैं? उत्तर: केरल के चित्रकारों (सोलहवीं से अठारहवीं शताब्दी) ने अपनी एक विशिष्ट चित्रात्मक भाषा और तकनीक विकसित की, जिसमें उन्होंने नायक और विजयनगर शैलियों से कुछ तत्वों को अपनाया, लेकिन उन्हें अपने स्थानीय संदर्भ में ढाला। उन्होंने समकालीन परंपराओं जैसे कथकली और कलाम एजुथु (केरल की अनुष्ठानिक फर्श चित्रकला) से प्रेरणा ली। वे जीवंत और चमकदार रंगों का उपयोग करते हैं और मानव आकृतियों को त्रि-आयामीता में प्रस्तुत करते हैं। विषय-वस्तु के रूप में, केरल के चित्र हिंदू पौराणिक कथाओं के उन प्रसंगों पर आधारित हैं जो विशेष रूप से केरल में लोकप्रिय थे, और कलाकार ने अक्सर मौखिक परंपराओं तथा रामायण व महाभारत के स्थानीय संस्करणों से प्रेरणा ली। यह स्थानीयकरण और जीवंत रंग योजना उन्हें अन्य दक्षिण भारतीय शैलियों से अलग करती है।

  8. प्रश्न: भारतीय कला के इतिहास में बादामी, पल्लव और पांड्य काल के भित्ति चित्रों का क्या महत्व है? उत्तर: बादामी, पल्लव और पांड्य काल के भित्ति चित्र भारतीय कला इतिहास में एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं, क्योंकि ये अजंता के बाद चित्रकला परंपरा की निरंतरता और विकास को दर्शाते हैं। बादामी के चित्र अजंता शैली का दक्षिण भारत में विस्तार दिखाते हैं। पल्लव काल के चित्र, विशेषकर महेंद्रवर्मन प्रथम के संरक्षण में, कला के प्रति शाही रुचि को दर्शाते हैं और धार्मिक व दरबारी दृश्यों को चित्रित करते हैं। पांड्य काल के सित्तनवासल के चित्र अपनी विशिष्ट शैली (लाल समोच्च, पीला शरीर, लंबी आँखें) और जैन विषयों के चित्रण के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये सभी चित्रकलाएँ दक्षिणी भारत में एक समृद्ध और विकसित भित्ति चित्रकला परंपरा के अस्तित्व को प्रमाणित करती हैं, जो बाद में चोल और विजयनगर शैलियों के लिए आधार बनी।

  9. प्रश्न: अजंता के बाद भी चित्रकला परंपरा के पुनर्निर्माण के लिए बचे हुए स्थलों का क्या महत्व है? उत्तर: अजंता के बाद बहुत कम स्थल ऐसे हैं जहाँ चित्रकलाएँ बची हुई हैं। इन स्थलों, जैसे बादामी, पनमलै, सित्तनवासल, बृहदेश्वर, विरुपाक्ष (हम्पी), लेपाक्षी, और केरल के मंदिरों/महलों, का महत्व इस बात में निहित है कि वे भारतीय चित्रकला की निरंतर विकसित होती हुई परंपरा के मूल्यवान साक्ष्य प्रदान करते हैं। ये हमें यह समझने में मदद करते हैं कि कैसे विभिन्न क्षेत्रीय शैलियाँ, राजनीतिक संरक्षण और धार्मिक विषय-वस्तुओं ने चित्रकला को आकार दिया। ये स्थल अजंता से आगे की तकनीकों, शैलीगत परिवर्तनों, और क्षेत्रीय विशिष्टताओं को दर्शाते हैं, जिससे भारतीय भित्ति चित्रकला के विस्तृत इतिहास को पुनर्गठित करना संभव होता है।

  10. प्रश्न: समकालीन ग्रामीण और हवेलियों की भित्ति चित्रकला परंपरा का संक्षिप्त विवरण दें। उत्तर: आज भी भारत के विभिन्न हिस्सों में गाँवों या हवेलियों में घरों की आंतरिक और बाहरी दीवारों पर भित्ति चित्रकला की एक जीवंत परंपरा प्रचलित है। ये चित्रकलाएँ आमतौर पर महिलाओं द्वारा की जाती हैं, या तो विशेष समारोहों और त्योहारों के दौरान, या दीवारों को साफ करने और सजाने की दिनचर्या के रूप में। इन पारंपरिक रूपों में राजस्थान और गुजरात के कुछ हिस्सों में 'पिथोरो', उत्तरी बिहार के मिथिला क्षेत्र में 'मिथिला चित्रकला', महाराष्ट्र में 'वारली चित्रकलाएँ', या ओडिशा, बंगाल, मध्य प्रदेश या छत्तीसगढ़ के गाँवों में दीवारों पर सामान्य चित्रकलाएँ शामिल हैं। ये चित्रकलाएँ स्थानीय लोक कथाओं, धार्मिक विश्वासों और दैनिक जीवन के दृश्यों को दर्शाती हैं, जो एक निरंतर और जीवंत कलात्मक विरासत का प्रतिनिधित्व करती हैं।


10 निबंधात्मक प्रश्न

  1. प्रश्न: बादामी से केरल तक दक्षिण भारत में भित्ति चित्रकला परंपरा के विकास का विस्तृत विश्लेषण करें, जिसमें प्रत्येक राजवंश (चालुक्य, पल्लव, पांड्य, चोल, विजयनगर, नायक, केरल) के योगदान और शैलीगत विशेषताओं पर प्रकाश डाला जाए। उत्तर: इस निबंध में दक्षिण भारत में भित्ति चित्रकला के विकास को एक क्रमिक प्रक्रिया के रूप में दर्शाएँ। बादामी (चालुक्य) से शुरुआत करें, अजंता परंपरा के विस्तार और प्रारंभिक दक्षिण भारतीय विशेषताओं पर चर्चा करें। फिर पल्लवों (महेंद्रवर्मन प्रथम की रुचि, पनमलै, कांचीपुरम), पांड्यों (सित्तनवासल की विशिष्ट शैली, आँखों का बाहर निकलना) के योगदान को उजागर करें। चोल काल को चरमोत्कर्ष के रूप में वर्णित करें, विशेष रूप से बृहदेश्वर मंदिर के छिपे हुए चित्रों और उनकी कथात्मक व शैलीगत परिपक्वता पर जोर दें। विजयनगर (हम्पी, लेपाक्षी) और नायक (तिरुपारकुंद्रम, तिरुवरूर) काल की विशिष्ट चित्रात्मक भाषा (पार्श्व चित्र, द्वि-आयामी प्रस्तुति, रेखीय रचनाएँ) और उनके विषय-वस्तु का विश्लेषण करें। अंत में, केरल के भित्ति चित्रों की अनूठी शैली, स्थानीय प्रभावों (कथकली, कलाम एजुथु), और जीवंत रंगों पर प्रकाश डालें, और यह दर्शाएँ कि कैसे प्रत्येक राजवंश ने इस परंपरा में अपना विशिष्ट योगदान दिया।

  2. प्रश्न: अजंता की चित्रकला परंपरा का बादामी और सित्तनवासल में कैसे विस्तार हुआ? दोनों स्थलों के चित्रों की प्रमुख शैलीगत समानताओं और भिन्नताओं की तुलना करें। उत्तर: इस निबंध में अजंता को भित्ति चित्रकला के आधार के रूप में स्थापित करें। बादामी के चित्रों (राजा और रानी के चेहरे, तरल रूप, घुमावदार रेखाएँ) पर चर्चा करें और दिखाएँ कि कैसे उन्होंने अजंता की मॉडलिंग शैली को बरकरार रखा लेकिन इसे दक्षिण भारत में ले गए। सित्तनवासल के चित्रों पर विस्तार से बात करें, जिसमें उनके विशिष्ट लाल समोच्च, पीले शरीर, और लंबी, कभी-कभी चेहरे से निकली हुई आँखों की विशेषता शामिल है। समानताओं में कथात्मक शैली, धार्मिक विषय-वस्तु और आकृतियों को चित्रित करने में महारत शामिल हो सकती है। भिन्नताओं में बादामी में अजंता के अधिक प्रत्यक्ष संबंध बनाम सित्तनवासल में क्षेत्रीय अनुकूलन और शैलीगत विशिष्टताएँ (जैसे आँखों की बनावट) शामिल होंगी। निष्कर्ष में, इन स्थलों को अजंता परंपरा के महत्वपूर्ण उत्तराधिकारी के रूप में प्रस्तुत करें जो क्षेत्रीय नवाचारों के साथ विकसित हुए।

  3. प्रश्न: चोल काल की चित्रकला भारतीय कला के इतिहास में क्यों महत्वपूर्ण है? बृहदेश्वर मंदिर के चित्रों के संदर्भ में विस्तार से व्याख्या करें। उत्तर: इस निबंध में चोल काल को दक्षिण भारतीय कला के एक महत्वपूर्ण चरण के रूप में प्रस्तुत करें। बृहदेश्वर मंदिर (तंजावुर) के चित्रों को चोल चित्रकला का सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण मानें। इन चित्रों की खोज और उनके दो परतों में पाए जाने के महत्व (नायक और चोल काल) पर प्रकाश डालें। चोल काल के चित्रों की विषय-वस्तु (भगवान शिव के विभिन्न रूप, राजराजा और गुरु कुरुवर के चित्र, नृत्य करते हुए आकृतियाँ) का विस्तृत वर्णन करें। उनकी शैलीगत परिपक्वता पर जोर दें: घुमावदार रेखाओं का प्रवाह, आकृतियों का सुडौल प्रतिरूपण, और शारीरिक विशेषताओं का लंबापन। समझाएँ कि कैसे ये चित्र चोल कलाकारों द्वारा प्राप्त पूर्णता और कलात्मक संक्रमण के चरण का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो उन्हें भारतीय कला इतिहास में एक अद्वितीय स्थान दिलाता है।

  4. प्रश्न: विजयनगर और नायक राजवंशों के अधीन दक्षिण भारतीय चित्रकला की विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन करें। इनमें कौन सी सामान्य शैलीगत परंपराएँ साझा की गईं और क्या क्षेत्रीय संशोधन किए गए? उत्तर: इस निबंध में विजयनगर (चौदहवीं-सोलहवीं शताब्दी) और नायक (सत्रहवीं-अठारहवीं शताब्दी) चित्रकला शैलियों का परिचय दें। विजयनगर चित्रों की मुख्य विशेषताओं (चेहरे पार्श्व चित्र में, बड़ी सामने की आँखें, संकीर्ण कमर, द्वि-आयामी प्रस्तुति, रेखीय रचनाएँ) पर चर्चा करें, हम्पी और लेपाक्षी के उदाहरणों का उपयोग करते हुए। फिर नायक चित्रों की विशेषताओं का वर्णन करें, यह दिखाते हुए कि वे विजयनगर शैली का ही विस्तार थे। सामान्य शैलीगत परंपराओं को उजागर करें, जैसे पार्श्व चित्र और सपाट पृष्ठभूमि। क्षेत्रीय संशोधनों पर चर्चा करें, जैसे नायक चित्रों में पुरुष आकृतियों का कम भारी पेट और गति को बढ़ाने का प्रयास। निष्कर्ष में, इन दोनों शैलियों के बीच के निरंतरता और सूक्ष्म विकास को स्पष्ट करें।

  5. प्रश्न: केरल के भित्ति चित्र अन्य दक्षिण भारतीय चित्रकला शैलियों से किस प्रकार भिन्न हैं? उनकी विषय-वस्तु, तकनीक और कलात्मक प्रभावों का विस्तार से वर्णन करें। उत्तर: इस निबंध में केरल के भित्ति चित्रों (सोलहवीं-अठारहवीं शताब्दी) की विशिष्टता पर जोर दें। समझाएँ कि कैसे उन्होंने नायक और विजयनगर शैलियों से तत्व अपनाते हुए भी अपनी एक अनूठी चित्रात्मक भाषा विकसित की। उनकी कलात्मक प्रेरणा के स्रोतों पर चर्चा करें, जैसे कथकली और कलाम एजुथु। उनके उपयोग किए गए जीवंत और चमकदार रंगों, तथा मानव आकृतियों को त्रि-आयामीता में प्रस्तुत करने की तकनीक को उजागर करें। विषय-वस्तु के संदर्भ में, केरल के चित्रों का विशेष ध्यान स्थानीय रूप से लोकप्रिय हिंदू पौराणिक प्रसंगों, मौखिक परंपराओं, और रामायण व महाभारत के स्थानीय संस्करणों पर केंद्रित है। इस स्थानीयकरण और जीवंत रंग योजना को अन्य दक्षिण भारतीय शैलियों से उनकी भिन्नता का मुख्य कारण मानें।

  6. प्रश्न: भारतीय चित्रकला में अजंता के बाद के युग में कथात्मकता का विकास कैसे हुआ? विभिन्न स्थलों के उदाहरणों से समझाएँ। उत्तर: इस निबंध में अजंता में कथात्मकता (भूगोल द्वारा घटनाओं का समूहन) की नींव को संक्षेप में उल्लेख करें। फिर बादामी के चित्रों में महल के दृश्यों और नृत्य प्रसंगों की कथात्मक प्रस्तुति पर चर्चा करें। सित्तनवासल में जैन कथाओं और आकाशीय अप्सराओं के नृत्य दृश्यों में कथात्मक प्रवाह को उजागर करें। चोल काल के बृहदेश्वर मंदिर में शिव से संबंधित विस्तृत कथाओं (कैलाश में शिव, त्रिपुरांतक, नटराज) पर ध्यान केंद्रित करें। विजयनगर काल में रामायण, महाभारत और dynastic इतिहास के प्रसंगों को चित्रित करने में कथात्मकता के उपयोग (हम्पी, लेपाक्षी) को दर्शाएँ। नायक और केरल के चित्रों में कृष्ण-लीला, रामायण, महाभारत के स्थानीय संस्करणों और अन्य पौराणिक कथाओं के चित्रण के माध्यम से कथात्मकता की निरंतरता और विविधता पर प्रकाश डालें।

  7. प्रश्न: भारतीय चित्रकला के इतिहास में संरक्षक की भूमिका में आए बदलाव (सामूहिक सार्वजनिक से राजनीतिक) ने कला के विकास को कैसे प्रभावित किया? इस संदर्भ में मौर्योत्तर काल के बाद के चित्रों पर चर्चा करें। उत्तर: इस निबंध में संक्षेप में प्रारंभिक ऐतिहासिक काल में सार्वजनिक और सामूहिक संरक्षण (जैसे व्यापारी, शिल्पकार) की भूमिका का उल्लेख करें। फिर मौर्योत्तर काल के बाद, विशेषकर छठी शताब्दी ईस्वी के बाद, राजनीतिक संरक्षण (जैसे चालुक्य, पल्लव, चोल, विजयनगर, नायक शासक) के बढ़ते प्रभुत्व पर ध्यान केंद्रित करें। चर्चा करें कि इस बदलाव ने कला के विकास को कैसे प्रभावित किया: बड़े और भव्य शाही परियोजनाओं का उदय, शाही विषयों का अधिक चित्रण, कला में शासकों की शक्ति और धार्मिक संबद्धता का प्रतीक बनना, और कलात्मक शैलियों में एक निश्चित शाही स्वाद का समावेश। यह भी विचार करें कि क्या इस बदलाव ने कलात्मक स्वतंत्रता को किसी तरह से प्रभावित किया।

  8. प्रश्न: भारतीय भित्ति चित्रकला में स्थानीय परंपराओं और लोक कला का क्या महत्व रहा है? समकालीन ग्रामीण भित्ति चित्रों के उदाहरणों के साथ समझाएँ। उत्तर: इस निबंध में भारतीय भित्ति चित्रकला में स्थानीय और लोक परंपराओं के गहरे प्रभाव को उजागर करें, जो केवल शाही या धार्मिक कला तक सीमित नहीं थी। चर्चा करें कि कैसे ये परंपराएँ सदियों से कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत रही हैं। समकालीन ग्रामीण भित्ति चित्रों के उदाहरणों पर विशेष ध्यान दें, जैसे राजस्थान/गुजरात का 'पिथोरो', बिहार का 'मिथिला', महाराष्ट्र की 'वारली' और ओडिशा/बंगाल के ग्रामीण चित्र। यह दर्शाएँ कि ये चित्रकलाएँ किस प्रकार स्थानीय लोककथाओं, रीति-रिवाजों, धार्मिक विश्वासों और दैनिक जीवन को दर्शाती हैं। यह भी उल्लेख करें कि कैसे ये चित्रकलाएँ अक्सर महिलाओं द्वारा की जाती हैं और उनका संबंध समारोहों, त्योहारों और घरों की सजावट से होता है, जिससे वे एक जीवंत और निरंतर कलात्मक विरासत का हिस्सा बन जाती हैं।

  9. प्रश्न: 'त्रिभंग' और 'पार्श्व चित्र' जैसी शारीरिक मुद्राओं का भारतीय चित्रकला में क्या महत्व रहा है? विभिन्न राजवंशों के चित्रों के उदाहरणों के साथ इन अवधारणाओं की व्याख्या करें। उत्तर: इस निबंध में 'त्रिभंग' (तीन मोड़ों वाली मुद्रा) और 'पार्श्व चित्र' (profile) जैसी शारीरिक मुद्राओं को भारतीय चित्रकला की शैलीगत विशेषता के रूप में परिभाषित करें। 'त्रिभंग' के महत्व पर चर्चा करें, जो आकृतियों में गति, अनुग्रह और जीवंतता प्रदान करता है, और सित्तनवासल जैसे स्थलों में इसके उपयोग को दर्शाएँ। फिर 'पार्श्व चित्र' के विकास पर ध्यान केंद्रित करें, जो विजयनगर और नायक काल के चित्रों की एक विशिष्ट विशेषता बन गई (उदा. हम्पी, लेपाक्षी)। समझाएँ कि कैसे ये मुद्राएँ केवल कलात्मक तकनीकें नहीं थीं बल्कि आकृतियों के चित्रण में भावनात्मकता, कथात्मकता और प्रतीकात्मकता को जोड़ने का साधन थीं। विभिन्न राजवंशों के चित्रों से उदाहरण लेकर यह दर्शाएँ कि कैसे इन मुद्राओं का उपयोग विकसित हुआ और क्षेत्रीय शैलियों में भिन्नताएँ आईं।

  10. प्रश्न: भारतीय भित्ति चित्रकला में रंग, रेखा और आयतन के चित्रण में समय के साथ क्या विकास हुआ? अजंता से लेकर नायक काल तक के उदाहरणों से समझाएँ। उत्तर: इस निबंध में अजंता के प्रारंभिक चित्रों से शुरुआत करें, जहाँ रंगों का उपयोग सीमित था और रेखाएँ स्पष्ट थीं लेकिन आयतन को मुख्य रूप से छायांकन के बजाय आकार के माध्यम से दर्शाया जाता था। बादामी में रेखाओं की तरलता और आयतन बनाने की विधि पर चर्चा करें। सित्तनवासल में रंगों के विशिष्ट उपयोग (सिंदूरी लाल समोच्च, पीला शरीर) और लंबी आँखों के माध्यम से भावों के चित्रण पर ध्यान दें। चोल काल में रेखाओं के प्रवाह और आकृतियों के सुडौल मॉडलिंग के माध्यम से प्राप्त परिपक्वता को उजागर करें। विजयनगर और नायक काल में रंगों के अपेक्षाकृत सपाट अनुप्रयोग, रेखाओं की स्थिरता और आकृतियों को द्वि-आयामी रूप से चित्रित करने पर चर्चा करें। यह दर्शाएँ कि कैसे कलाकारों ने समय के साथ रंगों, रेखाओं और आयतन के साथ प्रयोग किया, जिससे प्रत्येक काल और क्षेत्र की अपनी अनूठी चित्रात्मक पहचान बनी।

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