प्रागैतिहासिक चित्रकला

 

प्रागैतिहासिक चित्रकला भारत की सबसे प्राचीन कला परंपराओं में से एक है, जो हमें पाषाण युग के मनुष्यों के जीवन, विचारों और कलात्मक कौशल को समझने में मदद करती है।


प्रागैतिहासिक चित्रकला: एक परिचय

‘प्रागैतिहासिक’ (Prehistory) शब्द उस सुदूर अतीत को संदर्भित करता है जब कागज, भाषा या लिखित शब्द का कोई अस्तित्व नहीं था, और इसलिए कोई किताबें या लिखित दस्तावेज भी नहीं थे। पेंटिंग और ड्राइंग मानव द्वारा स्वयं को अभिव्यक्त करने के लिए उपयोग की जाने वाली सबसे पुरानी कलाकृतियाँ थीं, जिसमें गुफा की दीवारों को कैनवास के रूप में इस्तेमाल किया गया।

भारत में, सबसे शुरुआती पेंटिंग उच्च पुरापाषाण काल से मिलती हैं। ये चित्र हमें प्रारंभिक मनुष्यों, उनकी जीवनशैली, भोजन की आदतों, दैनिक गतिविधियों और सबसे महत्वपूर्ण बात, उनके सोचने के तरीके को समझने में मदद करते हैं।


भारत में प्रागैतिहासिक शैल चित्रों की खोज

  • भारत में शैल चित्रों की पहली खोज 1867-68 में पुरातत्वविद् आर्किबोल्ड कार्लाइल ने की थी, जो स्पेन के अल्तामीरा की खोज से बारह साल पहले हुई थी।

  • कॉकबर्न, एंडरसन, मित्रा और घोष जैसे प्रारंभिक पुरातत्वविदों ने भारतीय उपमहाद्वीप में बड़ी संख्या में स्थलों की खोज की।

  • शैल चित्रों के अवशेष मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और बिहार के कई जिलों में स्थित गुफाओं की दीवारों पर मिले हैं।

  • उत्तराखंड में कुमाऊँ की पहाड़ियों से भी कुछ चित्र मिले हैं। अल्मोड़ा-बरेछिना रोड पर लगभग बीस किलोमीटर दूर सुयाल नदी के तट पर लखुडियार में ये प्रागैतिहासिक चित्र पाए जाते हैं। लखुडियार का शाब्दिक अर्थ है 'एक लाख गुफाएँ'।

    • यहां के चित्रों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है: मानव, पशु और ज्यामितीय पैटर्न, जो सफेद, काले और लाल गेरू रंग में हैं।

    • मानवों को स्टिक जैसी आकृतियों में दर्शाया गया है।

    • एक लंबी थूथन वाला जानवर, एक लोमड़ी और एक बहु-पैर वाली छिपकली मुख्य पशु रूपांकन हैं।

    • लहरदार रेखाएँ, आयताकार ज्यामितीय डिज़ाइन और बिंदुओं के समूह भी यहाँ देखे जा सकते हैं।

    • यहां दर्शाए गए दिलचस्प दृश्यों में से एक हाथ पकड़े नृत्य करते मानव आकृतियाँ हैं।

  • कर्नाटक और आंध्र प्रदेश की ग्रेनाइट चट्टानों ने नवपाषाण कालीन मनुष्य को अपनी पेंटिंग के लिए उपयुक्त कैनवास प्रदान किए। इनमें से कुपगल्लू, पिक्लीहाल और टेक्कलकोटा अधिक प्रसिद्ध हैं।


प्रागैतिहासिक चित्रों का विकास

प्रागैतिहासिक काल को मुख्य रूप से तीन चरणों में विभाजित किया गया है, और प्रत्येक चरण में चित्रकला की अपनी विशिष्टताएँ हैं:

1. उच्च पुरापाषाण काल (Upper Palaeolithic Period)

  • विशेषताएँ: इस चरण की पेंटिंग रैखिक निरूपण हैं, जो हरे और गहरे लाल रंग में हैं।

  • विषय: विशाल पशु आकृतियाँ जैसे बायसन, हाथी, बाघ, गैंडे और सूअर, साथ ही स्टिक जैसी मानव आकृतियाँ

  • अधिकांश पेंटिंग में ज्यामितीय पैटर्न होते हैं।

  • हरे रंग की पेंटिंग नर्तकियों की हैं और लाल रंग की शिकारियों की।

  • सबसे समृद्ध चित्र: इस अवधि के सबसे समृद्ध चित्र मध्य प्रदेश की विंध्य पर्वतमाला और उत्तर प्रदेश में उनके कैमूरियन विस्तार से मिले हैं।

  • सबसे बड़ा और शानदार शैल आश्रय: मध्य प्रदेश के भीमबेटका में विंध्य पहाड़ियों में स्थित है।

    • भीमबेटका की गुफाओं की खोज 1957-58 में प्रख्यात पुरातत्वविद् एस. वाकणकर ने की थी।

    • यहां पाए गए चित्रों के विषय बहुत विविध हैं, जो उस समय के दैनिक जीवन की साधारण घटनाओं से लेकर पवित्र और शाही छवियों तक हैं।

2. मध्यपाषाण काल (Mesolithic Period)

  • भारत में खोजे गए सबसे बड़े प्रागैतिहासिक चित्र इसी काल के हैं।

  • इस अवधि के दौरान विषयों की संख्या बढ़ती है, लेकिन पेंटिंग आकार में छोटी होती हैं।

  • शिकार के दृश्य प्रमुख हैं, जिनमें लोग समूह में शिकार करते हुए, कांटेदार भाले, नुकीली छड़ें, तीर और धनुष से लैस दिखाए गए हैं।

  • कुछ चित्रों में ये आदिम मनुष्य जालों और फंदों के साथ दिखाए गए हैं, शायद जानवरों को पकड़ने के लिए।

  • शिकारियों को साधारण कपड़े और आभूषण पहने हुए दिखाया गया है।

  • कुछ चित्रों में पुरुषों को विस्तृत सिर के आभूषण पहने हुए, और कभी-कभी सिर के मास्क के साथ भी चित्रित किया गया है।

  • हाथी, बायसन, बाघ, सूअर, हिरण, मृग, तेंदुआ, राइनोसेरोस, मछली, मेंढक, छिपकली, गिलहरी और कभी-कभी पक्षी भी चित्रित हैं।

  • पशुओं को प्राकृतिक शैली में चित्रित किया गया था, जबकि मनुष्यों को एक शैलीगत तरीके से दर्शाया गया था।

  • प्रमुख मध्यपाषाण स्थल जहाँ चित्र पाए गए हैं: गुजरात में लांघनाज, मध्य प्रदेश में भीमबेटका और आदमगढ़, कर्नाटक में संगनकल्लू

3. ताम्रपाषाण काल (Chalcolithic Period)

  • इस अवधि के चित्र गुफा निवासियों और मालवा के मैदानों के बसे हुए कृषि समुदायों के बीच संबंध, संपर्क और आवश्यकताओं के आपसी आदान-प्रदान को दर्शाते हैं।

  • कई बार ताम्रपाषाण कालीन मिट्टी के बर्तनों और शैल चित्रों में सामान्य रूपांकन होते हैं। उदाहरण: क्रॉस-हैच्ड वर्ग, जाली, मिट्टी के बर्तन और धातु के औजार भी दिखाए गए हैं।

  • यह ध्यान देने योग्य है कि इन चित्रों से पहले की अवधियों की जीवंतता और ओजस्विता गायब हो जाती है।

  • इस अवधि के कलाकारों ने कई रंगों का इस्तेमाल किया, जिनमें सफेद, पीला, नारंगी, लाल गेरू, बैंगनी, भूरा, हरा और काला के विभिन्न शेड शामिल थे।

    • लाल रंग हेमेटाइट (भारत में गेरू के नाम से जाना जाता है) से प्राप्त किया गया था।

    • हरा रंग चैलसेडोनी नामक पत्थर की हरी किस्म से आया था।

    • सफेद चूना पत्थर से बनाया गया हो सकता है।


प्रागैतिहासिक चित्रों की तकनीक और सामग्री

  • रंग बनाना: खनिज को पहले पीसकर पाउडर बनाया जाता था। इसे फिर पानी और किसी गाढ़े या चिपचिपे पदार्थ जैसे पशु वसा या पेड़ों से प्राप्त गोंद या राल के साथ मिलाया जाता था।

  • ब्रश: पौधों के रेशों से बने होते थे।

  • रंगों का स्थायित्व: माना जाता है कि चट्टानों की सतह पर मौजूद ऑक्साइड की रासायनिक प्रतिक्रिया के कारण रंग बरकरार रहे।

  • चित्रों का उद्देश्य: आदिम कलाकारों में कहानी कहने का एक सहज जुनून था। ये चित्र नाटकीय रूप से पुरुषों और जानवरों को अस्तित्व के संघर्ष में लगे हुए दर्शाते हैं।

  • व्यक्तिगत जानवरों के चित्र आदिम कलाकार के इन रूपों को खींचने के कौशल में महारत दिखाते हैं। उनमें अनुपात और टोनल प्रभाव दोनों को यथार्थवादी रूप से बनाए रखा गया है।


भारत के प्रमुख प्रागैतिहासिक गुफा चित्र स्थल

मध्य प्रदेश के प्रागैतिहासिक काल के चित्र

  1. पंचमढ़ी:

    • खोज: 1932 में जी.आर. हंटर ने सर्वप्रथम इन गुफाओं को देखा।

    • स्थान: महादेव पर्वत माला में स्थित हैं, जो पांडवों का निवास स्थान मानी जाती हैं, इसलिए इन्हें पंचमढ़ी नाम से जाना जाता है।

    • प्रमुख चित्र: इमली खोह में सांभर, बैल, महिष का चित्र; मंडा देव की गुफा में शेर का आखेट का दृश्य; बाजार केव में विशालकाय बकरी का दृश्य; जम्मू दीप से शाही के आखेट का दृश्य।

    • चित्रों के स्तर: पंचमढ़ी में चित्रों के तीन स्तर मिले हैं - आखेट, संगीत, सामाजिक जीवन, सैनिक आदि विषय से संबंधित चित्रण।

  2. भीमबेटका:

    • खोज: उज्जैन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्रीधर विष्णु वाकणकर (1958) ने की थी।

    • गुफाएँ: कुल 600 गुफाएँ हैं, जिनमें से 275 में चित्र प्राप्त होते हैं (NCERT के अनुसार 750 गुफाएँ)।

    • चित्रों के स्तर: यहाँ से चित्रों के 2 स्तर प्राप्त होते हैं:

      • पहला स्तर: शिकार, नृत्य और जंगली जानवरों का चित्रण।

      • दूसरा स्तर: जानवरों को मानव सहचर के रूप में दिखाया गया है।

    • यूनेस्को धरोहर: 2003 में यूनेस्को ने इसे अपनी धरोहर सूची में शामिल किया।

  3. मंदसौर (सांकेतिक चित्र):

    • स्थान: मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में मोरी नामक स्थान पर लगभग 30 गुफाएँ प्राप्त हुई हैं।

    • चित्रण: प्रतीकात्मक चित्रण, जिनमें स्वास्तिक, सूर्य चक्र, अनंत कमल समूह, पीपल की पत्तियों का प्रतीकात्मक चित्रण एवं देहाती बांस की गाड़ी की झलक है।

  4. होशंगाबाद (आदमगढ़):

    • खोज: पंचमढ़ी से 45 मील दूर नर्मदा नदी के तट पर कुछ गुफाओं की खोज मनोरंजन घोष ने 1922 ईस्वी में की।

    • चित्र: आखेट के दृश्यों के अतिरिक्त जिराफ समूह, हाथी, विशालकाय महिष और जंगली मोर आदि के चित्र मिले हैं।

    • विशेषता: अश्वधारी सैनिकों के चित्र स्टैंसिल विधि से बने हैं।

    • प्रसिद्ध चित्र: यहाँ से छलांग लगाता हुआ बारहसिंघा का प्रसिद्ध चित्र प्राप्त हुआ है।

  5. सिंघनपुर:

    • स्थान: मांढ नदी के किनारे 50 प्रतिबिंब गुफाएँ मिली हैं।

    • खोज: 1910 में डब्लू एंडरसन ने की। बाद में अमरनाथ दत्त (1913) और पारसी ब्रूक (1917) ने इन गुफा चित्रों का सचित्र पुन: प्रकाशन किया।

    • मुख्य चित्र: घायल भैंसा, असंयत गढ़न का कंगारू आदि।

    • वर्तमान स्थिति: वर्तमान में रायगढ़ जिला छत्तीसगढ़ में स्थित है।

    • अन्य स्थान: रायसेन, रीवा, पन्ना, छतरपुर, कटनी, नरसिंहपुर, ग्वालियर, उदयगिरि, धर्मपुरी, चंबल नदी घाटी में भी पाषाण कालीन चित्र मिले हैं।

उत्तर प्रदेश के प्रागैतिहासिक स्थल

  • मिर्जापुर:

    • खोज: सर्वप्रथम प्रागैतिहासिक चित्रों की खोज उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर नामक स्थान पर 1880 ईस्वी में कार्लाइल ने की।

    • स्थान: विंध्याचल पर्वत श्रेणी की कैमूर पहाड़ी पर सोन नदी के किनारे पर 100 से अधिक चित्र शिलाश्रय प्राप्त हुए हैं।

    • मुख्य विषय: आखेट के साथ-साथ घरेलू जनजीवन, जो यह दर्शाता है कि ये चित्र पाषाण काल के अंतिम चरण तक बनाए जाते रहे थे।

    • प्रमुख गुफाएँ: कोहबर, विजयगढ़, भालडरिया, लिखुनिया, बागापथरी, घोड़ाबंगर आदि।

    • प्रसिद्ध चित्र: घोड़ा मंगर से गैंडे के आखेट का दृश्य, मढ़रिया से ऊंट के आखेट का दृश्य, भालडरिया से सूअर के आखेट का दृश्य प्रसिद्ध है।

    • रंग: अधिकांश चित्र गेरू रंग से बने हैं।

  • बाँदा:

    • खोज: बांदा में प्रागैतिहासिक चित्रों की खोज 1907 में सिल्वर राट ने की।

    • चित्र: मानिकपुर के निकट प्राप्त एक शिलाश्रय से अश्वारोहियों का चित्र प्राप्त हुआ है। यहाँ से प्राप्त पहिया रहित छकड़ा गाड़ी का चित्र विशेष प्रसिद्ध है।

बिहार के गुहा चित्र

  • इस प्रदेश में चक्रधरपुर, शाहाबाद आदि स्थानों से लेटे हुए शिकारी, नृत्य करती हुई आकृतियाँ एवं प्रतीकात्मक चित्र प्राप्त हुए हैं।

  • नोट: बिहार के विभाजन के पश्चात चक्रधरपुर वर्तमान में झारखंड में पड़ता है। झारखंड में चक्रधरपुर रेलवे स्टेशन पर स्थानीय महिलाओं द्वारा सोहराई चित्र बनाए गए हैं, जो झारखंड की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं। यहाँ पर 15 से अधिक जनजातियाँ पाई जाती हैं जिनकी अलग-अलग कला विधाएँ हैं, परंतु वर्तमान में यह परंपरा किताबों और संग्रहालय तक सीमित है।

राजस्थान

  • स्थान: चंबल नदी घाटी, अलनिया, भरतपुर तथा गागरोन से कुछ प्रागैतिहासिक चित्र प्राप्त हुए हैं।

  • समय: लगभग 5000 ईसा पूर्व के आसपास का माना जाता है।

  • स्थानीय नाम: स्थानीय लोग अलनिया गुफा को सीता जी का मांडा भी कहते हैं।

दक्षिण भारत के प्रागैतिहासिक चित्रों के केंद्र

  1. बेल्लारी:

    • खोज: 1892 ईस्वी में एक अंग्रेज अधिकारी एफ. फासेन्ट ने की।

    • पूर्व खोज: इससे पहले ब्रूसफुट नामक विद्वान ने 1863 में पल्लावरम नामक स्थान से प्रस्तर उपकरणों की खोज की थी।

    • चित्रण: आखेट के अतिरिक्त प्रतीकात्मक चित्रों की बहुलता मिलती है। एक गुफा में षटकोण का चिन्ह भी प्राप्त हुआ है।

    • तुलना: पारसी ब्राउन ने इन चित्रों को स्पेन की कोगुल गुफा के समान माना है।

  2. बाईनाड के एडकल:

    • खोज: केरल-तमिलनाडु सीमा पर स्थित गुफाओं की खोज एफ. फासेन्ट ने 1901 में की।

    • साम्यता: यहाँ से भी बेल्लारी के समान चित्र प्राप्त हुए हैं।

  3. बील्लास रंगम:

    • यहां से पाषाण कालीन अवशेषों के अतिरिक्त प्रतीकात्मक चित्र भी प्राप्त हुए हैं।


प्रागैतिहासिक चित्रों की विशेषताएँ

  • चित्रण विषय:

    • प्रागैतिहासिक कालीन मानव का अधिकांश समय आखेट में व्यतीत होता था, इसलिए शिकार उनके विचारों और मस्तिष्क पर इतना हावी हो चुका था कि वे इनकी स्मृतियों को रेखाओं के माध्यम से पत्थरों पर उकेरते गए।

    • आदिम मानव पहले भयंकर जानवरों की शक्ति के सामने अपने को तुच्छ पाता था। जैसे-जैसे उसने अपने ज्ञान और विवेक से इन पर विजय प्राप्त की, वैसे ही उसके द्वारा बनाए गए चित्रों में जानवरों का आकार छोटा होता गया

    • मनुष्य की जीवनशैली में परिवर्तन के साथ ही विषयों में भी परिवर्तन आया। जिन पशुओं का वह आखेट करता था, उन्हें पालने लगा, उनकी सहायता से कृषि करने लगा।

    • कृषि के आविष्कार ने मनुष्य की दिनचर्या में व्यापक परिवर्तन किए, अब वह बस्तियों में स्थायी रूप से रहने लगा था। इस समय के चित्रों के उदाहरण भीमबेटका से प्राप्त ग्राम्य जीवन और पंचमढ़ी से संगीत का आनंद लेते हुए मिलते हैं।

  • चित्रण प्रविधि:

    • आदिम मानव ने लकड़ी या नरकुल को कूटकर ब्रश बनाया, जिसकी सहायता से रंग भरता था।

    • मुख्य रंग: लाल, पीले और काले

    • संरचनाओं का निर्माण: सबसे पहले एक पत्थर से आउटलाइन की जाती थी। इनमें रेखांकन गलत होने पर सुधार की संभावना न के बराबर थी।

    • रंगों का मिश्रण: जानवरों की हड्डियों व पत्थरों का उपयोग किया जाता था। रंगों में अक्सर जानवरों की चर्बी मिलाकर प्रयोग किया जाता था।


प्रागैतिहासिक काल से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदु

  1. चित्रों का उद्देश्य: विचारों को व्यक्त करना था।

  2. सभी प्रागैतिहासिक चित्र गुफाओं की छतों और दीवारों पर बने हैं।

  3. रंगों के स्रोत:

    • खनिज रंग: गेरू, रामराज, हिरौजी, चट्टानी पत्थर, खड़िया।

    • रासायनिक रंग: कोयला।

    • वानस्पतिक रंग: हरा रंग।

  4. चित्रों के अनेक स्तर मिले हैं, जो विभिन्न अवधियों के चित्रण को दर्शाते हैं।

  5. भारतीय प्रागैतिहासिक गुफाओं की तुलना स्पेन की प्रागैतिहासिक गुफाओं से की जाती है।

  6. पौराणिक कथाओं या मूर्तियों का विकास नवपाषाण युग काल के अंतिम समय में हुआ।

  7. प्रागैतिहासिक मानव द्वारा जादू-टोने में विश्वास के प्रतीक प्राप्त होते हैं, जैसे स्वास्तिक, चातुष्कोण आदि।

  8. चित्रों के निर्माण में सीधी, सरल एवं लयात्मक रेखाओं का उपयोग किया गया है।

  9. विभिन्न लोककलाओं और मंदिरों की कलाओं में प्रागैतिहासिक कला के समान कलाकृतियाँ आज भी प्राप्त होती हैं।

  10. विश्व स्तर पर सर्वप्रथम प्रागैतिहासिक चित्रों की खोज: 1879 ईस्वी में अल्तामीरा में और 1880 ईस्वी में भारत में मिर्जापुर नामक स्थान पर हुई।

  11. मध्य प्रदेश की कई गुफाओं में छेपांकन पद्धति या स्टैंसिल विधि द्वारा चित्रण हुआ है।


प्रमुख पुस्तकें

  • प्रीहिस्टोरिक इंडिया: स्टुअर्ट पीगाट

  • प्रागैतिहासिक काल की चित्रकला: जगदीश चंद्र गुप्त


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