1. परिचय
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महाराष्ट्र की प्रसिद्ध जनजातीय चित्रकला।
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वार्ली जनजाति → मुंबई के उत्तरी बाहरी इलाकों में।
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शहरीकरण का असर नहीं पड़ा।
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1970 के दशक में प्रसिद्ध हुई।
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उत्पत्ति: लिखित प्रमाण नहीं, पर संकेत 10वीं सदी ई.पू.।
2. स्वरूप
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महिलाएं मुख्य चित्रकार।
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सामाजिक जीवन, खेती, नृत्य, शिकार, पशु-पक्षी आदि का चित्रण।
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पौराणिक देवताओं को नहीं दर्शाया जाता।
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चित्र कच्ची मिट्टी की दीवारों पर बनाए जाते।
3. शैली
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साधारण, सरल रेखाचित्र।
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मिट्टी की पृष्ठभूमि + सफेद रंग (चावल का चूर्ण)।
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कभी-कभी लाल और पीले बिंदु।
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रेखाएं → सीधे नहीं, बल्कि बिंदुओं व डैश से मिलकर।
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विषय – प्रतीकात्मक व आवृत्ति पूर्ण।
4. धार्मिक व सामाजिक महत्त्व
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विवाह चित्र में दूल्हा-दुल्हन घोड़े पर → अत्यंत पवित्र।
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विवाह इन चित्रों के बिना पूर्ण नहीं।
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चित्र भगवान की शक्ति आह्वान का साधन।
5. आधुनिक परिवर्तन
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अब पुरुष भी चित्र बनाने लगे।
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कागज व कपड़े पर भी चित्र।
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विषयों में साइकिल आदि आधुनिक उपकरण भी।
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बाजार में लोकप्रियता → बिक्री पूरे भारत में।
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भित्ति चित्र अभी भी सबसे सुंदर माने जाते हैं।
🎯 Short Tricks / Mnemonics
🔑 Trick 1: “वा-मा-सा-शि-आ”
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वा → वार्ली जनजाति (महाराष्ट्र)
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मा → महिलाएं करती चित्रकारी
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सा → साधारण शैली (मिट्टी + सफेद चावल का रंग)
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शि → शिकार, शादी, सामाजिक जीवन
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आ → आज → कागज/कपड़े पर भी (आधुनिक रूप)
🔑 Trick 2: विवाह का घोड़ा
👉 याद रखो – “घोड़े पर बिना दूल्हा-दुल्हन = शादी अधूरी”
(इससे धार्मिक महत्व तुरंत याद रहेगा)
🔑 Trick 3: रंगों की पहचान
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सफेद = चावल
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लाल = मिट्टी
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पीला = हल्दी
🔑 Trick 4: रेखा
👉 “वार्ली = बिंदु और डैश से रेखा, सीधे नहीं।”
(जैसे बच्चों की Drawing copy में dotted line connect करना।)
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