सिंधु घाटी सभ्यता की कलाएँ

सिंधु घाटी की कला ईसा पूर्व तीसरी सहस्राब्दी में विकसित हुई। इस सभ्यता के प्रमुख स्थल, जैसे हड़प्पा और मोहनजोदड़ो, वर्तमान पाकिस्तान में स्थित हैं, जबकि लोथल, धोलावीरा (गुजरात), राखीगढ़ी (हरियाणा), रोपड़ (पंजाब) और कालीबंगा (राजस्थान) भारत में स्थित हैं। यहाँ की कलाकृतियों में मूर्तियाँ, मुहरें, मिट्टी के बर्तन और आभूषण प्रमुख हैं।

1. पत्थर की मूर्तियाँ

  • लाल बलुआ पत्थर का पुरुष धड़: हड़प्पा से मिली यह मूर्ति यथार्थवाद का उत्कृष्ट उदाहरण है।

  • दाढ़ी वाले पुरुष का धड़: मोहनजोदड़ो से मिली यह प्रतिमा सेलखड़ी से बनी है, जिसमें दाढ़ी और मूंछों का बारीक काम है।

2. कांसे की ढलाई

  • सिंधु घाटी के लोग कांस्य ढलाई में कुशल थे। वे लुप्त मोम तकनीक (Lost-wax technique) का प्रयोग करते थे।

  • नर्तकी (Dancing Girl): मोहनजोदड़ो से मिली यह कांसे की मूर्ति मानव प्रतिभा का उत्कृष्ट उदाहरण है।

  • अन्य मूर्तियाँ: भैंस, बकरी और ताँबे के कुत्ते की मूर्तियाँ भी मिली हैं।

3. मृण्मूर्तियाँ (टेराकोटा)

  • ये मिट्टी से बनी मूर्तियाँ थीं, जो पत्थर और कांसे की मूर्तियों जितनी उत्कृष्ट नहीं थीं।

  • मातृदेवी की प्रतिमाएँ: ये सबसे अधिक उल्लेखनीय हैं। कालीबंगा और लोथल की नारी मूर्तियाँ मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की मूर्तियों से अलग हैं।

  • अन्य: दाढ़ी-मूंछ वाले पुरुषों, एक सींग वाले देवता, बैलगाड़ियाँ और खिलौने भी मिले हैं।


4. मुहरें (मुद्राएँ)

  • सामग्री: ये मुहरें सेलखड़ी, गोमेद, तांबे और मिट्टी से बनी थीं।

  • उद्देश्य: इनका मुख्य उद्देश्य वाणिज्यिक था।

  • विषय-वस्तु: मुहरों पर जानवरों (एक-श्रृंगी पशु, भैंस, बाघ, बकरी) और मानव आकृतियों की सुंदर नक्काशी है।

  • पशुपति की मुहर: एक उल्लेखनीय मुहर में केंद्र में एक मानव आकृति (जिसे 'पशुपति' कहा जाता है) है, जिसके चारों ओर कई जानवर बने हैं।

  • लिपि: प्रत्येक मुहर पर एक चित्रात्मक लिपि खुदी है, जिसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।

5. मृद्भांड (मिट्टी के बर्तन)

  • सिंधु घाटी के बर्तन कुम्हार के चाक से बनाए गए थे और विभिन्न आकारों में उपलब्ध थे।

  • रंग: ये बर्तन आमतौर पर सादे लाल रंग के होते थे, जिन पर काले रंग की ज्यामितीय और पशुओं की डिज़ाइनें बनी होती थीं। बहुरंगी और छिद्रित बर्तन भी मिले हैं।

6. आभूषण और फैशन

  • गहने: पुरुष और महिलाएँ दोनों ही सोने, ताँबे, हड्डी और टेराकोटा से बने गहने पहनते थे, जैसे हार, बाजूबंद और अंगूठियाँ।

  • मनके (Beads): मनके बनाने का उद्योग चन्हुदड़ो और लोथल में बहुत विकसित था।

  • कपड़े: यहाँ सुई-धागे और तकुए मिले हैं, जो यह दर्शाते हैं कि यहाँ कपड़े और ऊन की कताई प्रचलित थी।

  • श्रृंगार: सिंधु घाटी के लोग श्रृंगार पसंद थे। महिलाएँ सिंदूर, काजल और चेहरे पर लेप लगाती थीं, जबकि पुरुष दाढ़ी-मूंछ रखते थे।


निष्कर्ष

सिंधु घाटी के लोग कुशल कारीगर थे जो धातु ढलाई, पत्थर तराशने, मिट्टी के बर्तन बनाने और टेराकोटा की कला में निपुण थे। उनकी कलाएँ उनके जीवन, धर्म और समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा थीं।

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