ईसा पूर्व छठी शताब्दी में बौद्ध और जैन धर्मों के उदय के साथ भारत में नए धार्मिक और सामाजिक आंदोलन शुरू हुए। ईसा पूर्व चौथी से तीसरी शताब्दी तक, मौर्य साम्राज्य का विस्तार हुआ, और सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म की श्रमण परंपरा को संरक्षण दिया। मौर्यकालीन कला में हमें तीन मुख्य रूप देखने को मिलते हैं: स्तंभ, मूर्तियाँ और शैलकृत स्थापत्य।
1. स्तंभ
मौर्यकाल में पत्थर के विशाल, अखंड स्तंभ बनाए गए, जो मूर्तिकला के कौशल को दर्शाते हैं। ये स्तंभ पूरे मौर्य साम्राज्य में स्थापित किए गए थे। इन पर चमकदार पॉलिश की जाती थी और इनकी चोटी पर शेर, हाथी या बैल जैसी जानवरों की आकृतियाँ उकेरी जाती थीं।
प्रमुख उदाहरण:
सारनाथ का सिंह स्तंभ: इसे मौर्यकालीन कला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है।
भाग: इसके मूल रूप से पाँच भाग थे: स्तंभ का धड़, एक कमल घंटिका, एक ढोल, चार सिंहों की आकृतियाँ और एक धर्मचक्र।
राष्ट्रीय प्रतीक: भारत ने इस सिंह शीर्ष को, चक्र और कमल आधार के बिना, अपने राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया है।
अन्य स्थल: ये स्तंभ बिहार में बसराह-बखिरा, लौरिया-नंदनगढ़ और उत्तर प्रदेश में सनकिसा जैसे स्थानों पर आज भी देखे जा सकते हैं।
2. मूर्तियाँ
इस काल में विशालकाय यक्ष और यक्षिणी की मूर्तियाँ बनाई गईं, जो लोक पूजा का हिस्सा थीं। ये मूर्तियाँ आमतौर पर खड़ी अवस्था में हैं, जिनमें सपाट सतह और अंग-प्रत्यंगों का सौंदर्य दिखाई देता है।
प्रमुख उदाहरण:
दीदारगंज की यक्षिणी: यह पटना में पाई गई है और यक्षिणी प्रतिमा का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
धौली का हाथी: ओडिशा के धौली में चट्टान को काटकर एक विशाल हाथी की आकृति बनाई गई है।
3. स्तूप और शैलकृत गुफाएँ
मौर्यकाल में स्तूपों का निर्माण बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए हुआ।
स्तूप: ये स्तूप बुद्ध और बौद्ध संतों के अवशेषों पर बनाए गए थे। इनमें से कुछ प्रमुख स्तूपों के स्थल हैं:
सांची का महान स्तूप: यह अशोक काल का एक महत्वपूर्ण स्मारक है।
अन्य स्थल: बिहार में राजगृह, नेपाल में कपिलवस्तु और उत्तर प्रदेश में पिप्पलिवन।
शैलकृत गुफाएँ:
लोमश ऋषि गुफा: बिहार में बारबार पहाड़ियों में स्थित यह गुफा एक चट्टान को काटकर बनाई गई है। यह गुफा सम्राट अशोक द्वारा आजीविक पंथ को समर्पित थी। इसका प्रवेश द्वार लकड़ी के स्थापत्य जैसा दिखता है।
धार्मिक संदर्भ
यक्ष पूजा बौद्ध धर्म से पहले भी लोकप्रिय थी और बाद में यह बौद्ध तथा जैन धर्मों में समाहित हो गई।
इस काल में सनातन धर्म के देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी बनाई गई थीं।
ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी तक बुद्ध की प्रतिमाएँ नहीं मिली हैं। बुद्ध को प्रतीकों, जैसे कि स्तूप, कमल सिंहासन, और धर्मचक्र के रूप में दर्शाया जाता था।
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