मध्ययुगीन कला का परिचय
मध्ययुगीन काल में, प्राचीन ग्रीक-रोमन सभ्यता का तर्क-आधारित दृष्टिकोण धीरे-धीरे समाप्त हो गया और पूर्वी धर्मों, जैसे यहूदी, ईसाई और इस्लाम, का प्रभाव बढ़ने लगा। इन धर्मों में, ईसाई धर्म सबसे शक्तिशाली बनकर उभरा, जिसने यूरोप के आध्यात्मिक जीवन को गहराई से प्रभावित किया। विद्वानों का मानना है कि भारतीय संस्कृति, विशेषकर बौद्ध धर्म की करुणा की भावना, ने ईसाई धर्म को प्रेरित किया।
ईसाई कला को इसके कालखंड के अनुसार निम्नलिखित प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है:
आरंभिक ईसाई कला (Early Christian Art): 100-525 ईस्वी।
बीजान्टिन कला (Byzantine Art): 330-1453 ईस्वी।
रोमनस्क कला (Romanesque Art): 1100-1300 ईस्वी।
गोथिक कला (Gothic Art): 1135-1400 ईस्वी।
आरंभिक ईसाई कला (Early Christian Art)
समयकाल: 100-525 ईस्वी।
उद्गम: यह कला मुख्य रूप से रोम, इटली में विकसित हुई।
प्रमुख स्थल: इस कला के सबसे पुराने चित्र रोम के भूमिगत समाधि गृहों (Catacombs) की दीवारों पर मिलते हैं।
मुख्य विशेषताएँ
प्रतीकात्मकता (Symbolism): आरंभिक ईसाई कला में प्रतीकात्मक चित्रों का बहुत उपयोग हुआ।
मछली: ईसा मसीह के शुरुआती प्रतीकों में से एक।
कबूतर (कपोत): जीवात्मा का प्रतीक।
मोर (मयूर): ईसा मसीह के अमरत्व का प्रतीक।
अच्छे गड़रिये (Good Shepherd): ईसा मसीह को एक गड़रिये के रूप में चित्रित किया गया, जो अपने झुंड (लोगों) की देखभाल करता है।
कला का उद्देश्य: इस कला का मुख्य उद्देश्य धर्म का प्रचार करना और धार्मिक कहानियों को सरल और प्रतीकात्मक रूप में प्रस्तुत करना था।
प्रमुख उदाहरण:
प्रिस्किल्ला की समाधि गृह: यहाँ से कुमारी मैरी और शिशु ईसा का सबसे प्राचीन चित्र प्राप्त हुआ है।
सांता मारिया मौगियोर चर्च: रोम का पहला चर्च जो वर्जिन मैरी को समर्पित था। इसमें मणिकुट्टिम (Mosaic) विधि से चित्र बनाए गए हैं।
बाइबिल का प्रभाव: आरंभिक ईसाई कला में बाइबिल की कहानियों और दृश्यों को चित्रित किया गया था, विशेषकर संगमरमर के ताबूतों और समाधि गुफाओं की दीवारों पर। बाइबिल के दो मुख्य भाग हैं:
ओल्ड टेस्टामेंट: यहूदियों के इतिहास और विचारों का विवरण।
न्यू टेस्टामेंट: ईसा मसीह के जीवन और उपदेशों का विवरण।
यह कला शैली गोथिक और पुनर्जागरण कला के विपरीत थी, क्योंकि इसका ध्यान यथार्थवादी चित्रण की बजाय प्रतीकात्मक और धार्मिक संदेशों पर केंद्रित था।
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