19वीं शताब्दी के मध्य में, ब्रिटिश शासन ने भारत में कला शिक्षा की नींव रखी। 1854 में कलकत्ता में 'इंडस्ट्रियल आर्ट सोसाइटी' की स्थापना हुई, जो बाद में 'कलकत्ता गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट' बन गया। 1857 में ब्रिटिश क्राउन के सत्ता संभालने के बाद, इसी तरह के संस्थान बॉम्बे में 'सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट' और मद्रास में 'गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स' के रूप में स्थापित किए गए।
इन अकादमियों की स्थापना से पहले, पारंपरिक भारतीय कला में पेंटिंग, मूर्तिकला, संगीत और नृत्य जैसे कला रूप आपस में जुड़े हुए थे। लेकिन इन नए संस्थानों ने इस परंपरा को बदल दिया।
पश्चिमी कला का प्रभाव
इन अकादमियों के पाठ्यक्रम में पश्चिमी कला शैलियों पर जोर दिया गया। जहाँ पारंपरिक भारतीय कला अक्सर वैचारिक और अमूर्त होती थी, वहीं इन संस्थानों ने यथार्थवादी चित्रण (illusionistic-realism) सिखाया।
प्रमुख बदलावों में ये शामिल थे:
तेल पेंटिंग और क्ले मॉडलिंग पर विशेष ध्यान।
व्यक्ति चित्रण, परिदृश्य और स्टिल-लाइफ जैसे विषयों को महत्व दिया गया।
पारंपरिक फ्लैट रंगों के बजाय छायांकन (chiaroscuro), टोनालिटी (tonality) और परिप्रेक्ष्य (perspective) जैसी पश्चिमी तकनीकों का उपयोग करना सिखाया गया।
भले ही यह शिक्षा भारतीय कला की मूल सोच से अलग थी, लेकिन इन अकादमियों ने भारतीय कला के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इसे एक नया आयाम प्रदान किया।
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