तंजौर कला – संक्षिप्त नोट्स
1. परिचय
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तंजौर (Thanjavur) चित्रकला = कहानी और किस्से सुनाने की विस्मृत कला से जुड़ी।
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भारत के अन्य क्षेत्रों की तरह यह भी धार्मिक और पौराणिक कथाओं पर आधारित।
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हर चित्र = एक पूर्ण वृतांत और सांस्कृतिक झांकी।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
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उद्भव: तंजावुर (चेन्नई से 300 किमी दूर)।
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विकास: चोल साम्राज्य के समय (राजसी संरक्षण में)।
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आगे: अन्य शासकों के सहयोग से और समृद्ध हुई।
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शुरुआत: महलों की शोभा → बाद में घर-घर में लोकप्रिय।
3. विषय-वस्तु
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मुख्य विषय: हिन्दू देव-देवियाँ।
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प्रिय देवता: कृष्ण (जीवन की विभिन्न अवस्थाओं और मुद्राओं में चित्रित)।
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उद्देश्य: आध्यात्मिकता और भव्यता का प्रदर्शन।
4. मुख्य विशेषताएँ
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भव्य रंग संयोजन।
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रत्न, काँच और कीमती/अर्द्ध-कीमती पत्थरों का प्रयोग।
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स्वर्णपत्रक (Gold Foil) की सजावट – तंजौर कला की प्रमुख पहचान।
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चित्रों में इतना जीवन और चमक कि वे सजीव प्रतीत होते हैं।
5. वैभव और महत्व
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अतीत में: हीरे, माणिक्य, कीमती रत्न प्रयोग होते थे।
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वर्तमान में: अर्द्ध-मूल्यवान रत्न प्रयोग, पर स्वर्णपत्रक आज भी अनिवार्य।
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यह कला भारत की विश्वप्रसिद्ध पारंपरिक कला शैलियों में से एक।
तंजौर कला याद रखने की शॉर्ट ट्रिक
🔑 मुख्य कीवर्ड:
“तंजावर की रजत-स्वर्ण झांकी”
👉 इसमें ही सब छुपा है।
🪄 ट्रिक और विस्तार:
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त = तंजावुर (Thanjavur)
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स्थान याद: चेन्नई से 300 किमी दूर।
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शुरुआत: चोल साम्राज्य में।
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ंज = राजसी झांकी
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पहले राजमहलों की शोभा → बाद में घर-घर तक।
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हर चित्र = एक पूरा वृतांत (कहानी)।
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वा = वैभव (भव्यता)
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विषय: पौराणिक कथाएँ, खासकर भगवान कृष्ण।
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आध्यात्मिकता = कला का सार।
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र = रत्न और रंग
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कीमती पत्थर, कांच, अर्ध-मूल्यवान रत्न।
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गहरे, चमकीले रंगों का प्रयोग।
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की = कीमती स्वर्णपत्रक
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सोने की पन्नी (gold foil) मुख्य पहचान।
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आज भी स्वर्णपत्रक उपयोग में।
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रजत-स्वर्ण झांकी =
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रजत (रत्न/चाँदी जैसे चमकते) और स्वर्ण (gold foil) से सजे चित्र।
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यही उनकी भव्यता और विश्वप्रसिद्धि का कारण।
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आसान वाक्य :
“तंजावर की रजत-स्वर्ण झांकी कृष्ण को वैभव से रत्न और स्वर्णपत्रक में सजाती है।”
👉 इस एक वाक्य से स्थान, विषय, विशेषता और तकनीक सब याद हो जाएगा।
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