अवलोकन
स्थान: बाघ गुफाएँ मध्य प्रदेश के धार जिले में, इंदौर से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।
नदी: ये गुफाएँ बाघिनि नदी के किनारे स्थित हैं, जो नर्मदा की सहायक नदी है।
समयकाल: इनका समयकाल 200 ईसा पूर्व से 600 ईस्वी तक माना जाता है, जो इन्हें गुप्तकाल के समकालीन बनाता है। कई विद्वान इन्हें अजंता की गुफा संख्या 1 और 2 के समकालीन मानते हैं।
खोज: इनकी खोज 1818 में लेफ्टिनेंट डेंजरफील्ड ने की थी।
नामकरण: गुफा का नाम पास के बाघ गाँव के नाम पर रखा गया है।
स्थानीय नाम: स्थानीय लोग इसे 'पंचपांडु' भी कहते हैं।
राष्ट्रीय स्मारक: इसे 1951 में राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया।
गुफाओं की विशेषताएँ और चित्रण
कुल गुफाएँ: बाघ में कुल 9 गुफाएँ हैं।
उद्देश्य: इन गुफाओं का निर्माण बौद्ध भिक्षुओं के निवास, प्रवचन और ध्यान के लिए किया गया था। ये महायान बौद्ध धर्म से संबंधित हैं।
प्रमुख चित्रित गुफाएँ: मुख्य चित्र चौथी और पाँचवीं गुफा में हैं। चौथी गुफा को 'रंगमहल' कहा जाता है, जिसमें सर्वाधिक चित्र मौजूद हैं।
चित्रण तकनीक: यहाँ के चित्र टेम्परा तकनीक में बनाए गए हैं।
रंग-योजना: चित्रों में मुख्य रूप से लाल, पीले, नीले, सफेद और हीरोंजी (गेरुआ) रंगों का प्रयोग हुआ है।
विषय-वस्तु: यहाँ के चित्र लौकिक जीवन पर आधारित हैं और इनमें बहुत अधिक उल्लास और गतिशीलता दिखाई देती है।
प्रमुख चित्र: वियोग, मंत्रणा, देवपुरुषों का आकाश में विचरण, नृत्यांगनाएँ, गायिकाएँ और एक शोभा यात्रा।
प्रतिलिपियाँ: असित कुमार हलदर, नंदलाल बसु और अन्य कलाकारों ने 1921 में इन चित्रों की प्रतिलिपियाँ तैयार कीं, जो वर्तमान में गुजरी महल संग्रहालय, ग्वालियर में रखी हैं।
यह सारांश बाघ गुफाओं के ऐतिहासिक और कलात्मक महत्व को संक्षेप में प्रस्तुत करता है।
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