अवनीन्द्रनाथ ठाकुर (1871)
जन्म: जोड़ासाँकू, कलकत्ता के ठाकुर परिवार में। रवीन्द्रनाथ टैगोर उनके चाचा थे।
शिक्षा: उन्होंने अपनी प्रारंभिक कला शिक्षा इटालियन कलाकार 'गिलहार्डी' से ली।
शैली: उन्हें आधुनिक भारतीय चित्रकला का प्रवर्तक माना जाता है। उन्होंने राजस्थानी और मुगल शैली का गहन अध्ययन किया और अपनी विशिष्ट भारतीय शैली विकसित की, जिसे बंगाल स्कूल के नाम से जाना जाता है।
प्रमुख कृतियाँ: 'भारत माता', 'बुद्ध जन्म', 'गणेश जननी', 'ताजमहल', और 'औरंगजेब और शाहजहाँ की मौत'।
योगदान: उन्होंने अपने भाई गगनेन्द्रनाथ के साथ मिलकर 'इण्डियन सोसायटी ऑफ ओरियण्टल आर्ट' की स्थापना की।
नन्दलाल बसु (1883-1967)
जन्म: मुंगेर जिले के हवेली खड़गपुर में।
शिक्षा: वह अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के प्रमुख शिष्य थे।
शैली: उन्होंने अजंता और बाघ गुफाओं के भित्ति चित्रों की सफल प्रतिकृतियां बनाईं, जिससे उनकी ख्याति और भी बढ़ गई। उन्होंने बंगाल शैली को एक नई ऊँचाई पर पहुँचाया।
प्रमुख कृतियाँ: 'शिव का विषपान', 'उमा की तपस्या', 'वीणावादिनी', और 'युधिष्ठिर की स्वर्ग यात्रा'।
योगदान: 1922 में वे शांति निकेतन के कला विभाग के अध्यक्ष बने। उन्होंने 'रूपावली' और 'शिल्प कला' जैसी कला संबंधी पुस्तकें भी लिखीं। उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
असित कुमार हल्दार (1890-1964)
जन्म: 10 सितंबर 1890 को कलकत्ता में।
शिक्षा: वे अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के शिष्य थे।
कार्य: उन्होंने 1910-11 में नंदलाल बसु के साथ अजंता की, 1914 में जोगीमारा की, और 1921 में बाघ की गुफाओं के चित्रों की प्रतिलिपियाँ तैयार कीं।
पेशेवर जीवन: 1924 में वे जयपुर के महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट्स के प्रधानाचार्य बने, और बाद में लखनऊ के कला एवं हस्तशिल्प विद्यालय के आचार्य।
प्रमुख कृतियाँ: 'मेघदूत', 'ऋतुसंहार', 'उमर खय्याम', 'कुणाल', और 'चौराहे पर'।
देवी प्रसाद राय चौधरी (1899-1975)
जन्म: 1899
शिक्षा: वे अवनीन्द्रनाथ के प्रमुख शिष्यों में से थे और बंगाल शैली के कलाकार थे।
शैली: वह एक प्रसिद्ध मूर्तिकार और यथार्थवादी कलाकार थे। उन्होंने यूरोपीय और भारतीय शैलियों का समन्वय किया। व्यक्ति चित्रण और दृश्य चित्रों में उनकी विशेष महारत थी।
प्रमुख कृतियाँ: 'श्रम की विजय' (मूर्ति), 'कमल सरोवर', 'आँधी के पश्चात्', और 'अभिसारिका'।
राजा रवि वर्मा (1848-1906)
जन्म: 29 अप्रैल 1848 को केरल के 'किलिमन्नूर' गाँव में।
शिक्षा: उन्होंने अपने चाचा राजा वर्मा से कला सीखी।
शैली: उन्होंने धार्मिक और पौराणिक विषयों को यूरोपीय पद्धति की तकनीक का उपयोग कर चित्रित किया। उनके चित्र नैसर्गिकतावादी थे।
योगदान: उन्होंने मुंबई में भारत का पहला लिथोग्राफी प्रेस स्थापित किया, जिससे उनके चित्र जन-जन तक पहुँच सके।
प्रमुख कृतियाँ: 'शकुंतला के प्रेम-पत्र', 'विश्वामित्र और मेनका', 'इंद्रजीत विजय', और 'मत्स्यगंधी'।
क्षितीन्द्रनाथ मजूमदार (1891-1975)
जन्म: 1891
शैली: वह बंगाल शैली के 'वैष्णव' चित्रकार थे, जिन्होंने राधा-कृष्ण और चैतन्य महाप्रभु के जीवन पर आधारित चित्र बनाए। उनकी कला की प्रमुख विशेषता लयात्मक संयोजन, प्रवाहपूर्ण रेखाएँ और भक्ति विषयक रचनाएँ हैं।
पेशेवर जीवन: 1942 में वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कला विभाग के अध्यक्ष बने।
प्रमुख कृतियाँ: 'यमुना', 'अभिसारिका', 'गीतगोविन्द', और 'पुण्य-प्रचायिका'।
अब्दुर्रहमान चगताई (1897-1975)
जन्म: 1897
शैली: वे अवनीन्द्रनाथ के शिष्य थे। उन्होंने फारसी और भारतीय शैलियों के मिश्रण से एक नई और मौलिक शैली का निर्माण किया। उन्हें 'रंगों का सम्राट' कहा जाता है।
प्रमुख कृतियाँ: 'सहारा की राजकुमारी', 'प्रिंस सलीम', 'जंगल में लैला', और 'राधा-कृष्ण'।
रवीन्द्रनाथ टैगोर (1861-1941)
जन्म: 1861, जोड़ासाँकू, कलकत्ता।
शैली: उन्होंने 65 वर्ष की उम्र में चित्रकला शुरू की। उनकी प्रारंभिक कृतियों में केवल काली स्याही का प्रयोग होता था, बाद में उन्होंने रंगों का उपयोग किया। उनकी कला में बनावट का अभाव और भावनात्मक अभिव्यक्ति थी।
प्रमुख कृतियाँ: 'थके हुए यात्री', 'माँ व बच्चा', और 'प्राचीन कानाफूसी'।
गगनेन्द्रनाथ ठाकुर (1867-1938)
जन्म: 1867, कलकत्ता।
शैली: वे बंगाल स्कूल की लीक से हटकर चलने वाले पहले प्रयोगवादी कलाकार थे। उन्होंने घनवाद (Cubism) और स्वप्निल शैली (Surrealism) में चित्र बनाए।
प्रमुख कृतियाँ: 'अर्जुन व चित्रांगदा', 'नव लोहार', और 'दुर्गा पूजन समारोह'।
यामिनी राय (1887-1972)
जन्म: 1887, बाँकुड़ा जिले के 'बेलिया तोड़ा' गाँव में।
शैली: वे बंगाल के 'पटचित्रों' से अत्यधिक प्रभावित थे। उन्होंने बंगाल की लोक कला से प्रेरणा लेकर एक मौलिक शैली विकसित की। उनके चित्रों की तुलना अक्सर 'चाइल्ड आर्ट' से की जाती है।
प्रमुख कृतियाँ: 'राधा-कृष्ण और बलराम', 'गणेश और पार्वती', 'तीन स्त्रियाँ', और जानवरों के चित्र जैसे 'बिल्ली', 'केकड़ा'।
अमृता शेरगिल (1913-1941)
जन्म: 30 जनवरी 1913, हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में।
पृष्ठभूमि: उनके पिता भारतीय सिख और माता हंगेरियन थीं।
शैली: उनकी कला में पूर्व और पश्चिम की शैलियों का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। वे सेजाँ, गोगिन और वान गॉग से भी प्रभावित थीं। उन्होंने भारतीय विषयों को पश्चिमी तकनीक से चित्रित किया।
प्रमुख कृतियाँ: 'पहाड़ी पुरुष', 'पहाड़ी स्त्रियाँ', 'भारतीय माँ', 'बाल वधू', और 'हल्दी पीसती औरतें'।
एन. एस. बेन्द्रे (1910-1992)
जन्म: 1910, इन्दौर।
शैली: वे बिंदुवादी (Pointillist) चित्रकार थे, जिन्होंने अपने चित्रों में बिंदुओं का बहुलता से प्रयोग किया। उनकी कला में वास्तुकला, प्रकृति और लोक जीवन का चित्रण मिलता है।
प्रमुख कृतियाँ: 'प्यास', 'फल बेचने वाली', 'लकड़ी काटने वाली', और 'दार्जिलिंग के चाय बागान की युवती'।
के. के. हेब्बर (1912-1996)
जन्म: 1912, दक्षिण कन्नड़।
शैली: उनके चित्रों में मुगल और राजपूत कला के साथ-साथ यथार्थवाद और पाश्चात्य आधुनिक अंकन पद्धतियों का समन्वय है। उन्होंने ग्रामीण जीवन और साधारण लोगों के कार्यकलापों का चित्रण किया।
प्रमुख कृतियाँ: 'मुर्गे की लड़ाई', 'ब्रज', और 'टाइल फैक्ट्री'।
रामकिंकर बैज
जन्म: बांकुड़ा के पास 'जुग्गी पाड़ा'।
शैली: वे मुख्य रूप से मूर्तिकार थे, लेकिन उन्होंने चित्र भी बनाए। उनके कार्य में संथाल लोगों के जीवन और वीरभूमि की प्राकृतिक सुंदरता का चित्रण मिलता है।
प्रमुख कृतियाँ: 'संथाल परिवार' (मूर्ति), 'सुजाता', और 'अनाज की ओसाई'।
के. सी. एस. पणिक्कर (1911-1977)
जन्म: 1911, कोयम्बटूर।
शैली: उनकी कला में शब्द, प्रतीक और आधुनिकता के साथ-साथ परंपरा का भी अद्भुत संगम है। उनका कुछ काम तांत्रिक कला से मिलता-जुलता है।
योगदान: 1944 में उन्होंने 'प्रोग्रेसिव पेंटर्स एसोसिएशन' की शुरुआत की।
प्रमुख कृतियाँ: 'आदम और हव्वा', 'ईसा-बसंत', और 'पीला चित्र'।
एम. एफ. हुसैन (1915-2011)
जन्म: 1915, शोलापुर, महाराष्ट्र।
शैली: उन्हें आधुनिक भारतीय चित्रकला का स्तंभ माना जाता है। वे प्रतीकवादी चित्रकार थे और उनकी मानव आकृतियों में एक विशेष प्रकार की विकृति दिखाई देती है। उन्होंने श्रृंखलाओं में चित्र बनाए।
योगदान: उन्होंने सिनेमा होर्डिंग्स के पेंटर के रूप में काम शुरू किया और बाद में 'गजगामिनी' और 'मीनाक्षी' जैसी फिल्में भी बनाईं। उनकी डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'थ्रू द आइज़ ऑफ ए पेंटर' को बर्लिन में पुरस्कृत किया गया था।
प्रमुख कृतियाँ: 'स्वास्तिक', 'ढुलकिया', 'घोड़े', 'मदर टेरेसा', और 'फूलन देवी'।
के. एच. आरा
शैली: उन्होंने प्रकृति से संबंधित विषयों को बड़ी मौलिकता से बनाया। उनकी कला में मातिस का प्रभाव स्पष्ट झलकता है। उनकी कला की सरलता इतनी थी कि कोई भी साधारण दर्शक उसका आनंद ले सकता था।
प्रमुख कृति: 'मराठा बैटिल'।
सैयद हैदर रज़ा (1922-2016)
जन्म: 1922, मध्य प्रदेश के ककैया गाँव में।
शैली: वे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप के संस्थापकों में से एक थे। प्रारंभिक दौर में वे बाह्य अलंकरणों का प्रयोग करते थे, लेकिन बाद में उनकी कला अधिक परिपक्व हो गई और वे बिंदु को अपनी कला का केंद्र बनाने लगे।
प्रमुख कृतियाँ: 'सौराष्ट्र', 'ला टेरे', और 'बिंदु' श्रृंखला।
फ्रांसिस न्यूटन सूजा (1924-2002)
जन्म: 1924, गोवा।
शैली: वह प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप के जनक थे। उनके चित्र अक्सर एक्रेलिक रंगों में होते थे। वे अपने प्रभावशाली रेखांकनों के लिए जाने जाते थे, जिनमें धार्मिक और सामाजिक विषयों का मिश्रण होता था।
प्रमुख विषय: मसीह, सलीब, औरत, चेहरे।
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