कला मानव अनुभव का एक अभिन्न अंग है, जो सृजन, अभिव्यक्ति और सौंदर्य के माध्यम से हमारे जीवन को समृद्ध करती है। इसे परिभाषित करना एक जटिल कार्य रहा है, क्योंकि विभिन्न विद्वानों और संस्कृतियों ने इसे अलग-अलग दृष्टिकोणों से देखा है। फिर भी, यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि कला में कौशल, रचनात्मकता और अभिव्यक्ति शामिल है। जहाँ भी कोई कार्य कुशलतापूर्वक किया जाता है, उसे कला कहा जा सकता है।
कला की परिभाषाएँ: विभिन्न दृष्टिकोण
कला को समझने के लिए विभिन्न विद्वानों ने इसे परिभाषित करने के कई प्रयास किए हैं, लेकिन कोई भी सर्वमान्य परिभाषा स्थापित नहीं हो पाई है। फिर भी, इन परिभाषाओं को मुख्य रूप से पश्चिमी और भारतीय संदर्भों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
पाश्चात्य विद्वानों की कला परिभाषाएँ
पश्चिमी विचारकों ने कला को अक्सर अनुकरण, अभिव्यक्ति, सौंदर्य, या एक दार्शनिक अवधारणा के रूप में देखा है।
प्लेटो (Plato): "कला सत्य की अनुकृति की अनुकृति है।" (यह मानते हुए कि कला मूल सत्य की केवल एक छाया है।)
अरस्तू (Aristotle): "कला अनुकरण है।" (कला वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करती है।)
गेटे (Goethe): "महान सत्य की प्रतिकृति प्रस्तुत करना ही कला की सबसे बड़ी समस्या है। कला प्रकृति की बौद्धिक परख है।"
क्रोचे (Croce): "कला प्रभावों की अभिव्यक्ति है।"
हीगेल (Hegel): "कला अधिभौतिक सत्ता को व्यक्त करने का माध्यम है।" (कला एक उच्चतर वास्तविकता को दर्शाती है।)
टॉलस्टॉय (Tolstoy): "कला भावों का सम्प्रेषण है।" (कला भावनाओं को दूसरों तक पहुँचाने का माध्यम है।)
रस्किन (John Ruskin): "कला आह्लाद की अभिव्यक्ति है।" (कला खुशी या संतोष को व्यक्त करती है।)
शेली (Shelly): "कला कल्पना की अभिव्यक्ति है।"
प्लेटिनस (Plotinus): "कला कृति से उत्पन्न अनुभव आध्यात्मिक रहस्यात्मक अनुभव की भाँति है।"
संत ऑगस्टाइन (St. Augustine): "कला आंतरिक सत्य का उद्घाटन है।"
रेने डेसकार्टेस (Rene Descartes): "कला का अनुभव स्वतंत्र कल्पना से उत्पन्न भावावेश के साथ-साथ बौद्धिक हर्ष का अनुभव है।"
संत थॉमस एक्विनास (St. Thomas Aquinas): "कला कृति पूर्ण होने पर ही सुंदर दिखती है। अतः पूर्णता ही कला है।"
लीबनिज़ (G.W. Leibniz): "कला से नैतिक उत्थान होता है।"
बॉमगार्टन (Baumgarten): "कला प्रकृति की अनुकृति है, जिसे कल्पना द्वारा व्यवस्थित किया जाता है।"
विंकेलमैन (Winckelmann): "कला अपने समय की संस्कृति की अभिव्यक्ति है।"
कांट (Kant): "कला आनंद है। इसमें लाभ-हानि का विचार नहीं होता।" (कला का मूल्य उसके अपने भीतर है, किसी बाहरी उद्देश्य में नहीं।)
लेसिंग (G.E. Lessing): "कला का सर्वोच्च लक्ष्य आनंद की प्राप्ति है।"
शिलर (Schiller): "मानव मन में स्थित क्रीड़ा प्रवृत्ति ही कला है।"
शॉपेनहॉवर (Arthur Schopenhauer): "कला संसार की दिव्य रचना है और प्रकृति के रहस्यों को समझने में सहायक होती है। इसका आनंद विरक्त और निष्काम होता है।"
फ्रेडरिक नीत्शे (Friedrich Nietzsche): "कला आत्माभिव्यक्ति है, जिसे कलाकार अपने अनुसार गढ़ता है।"
फ्रायड (Sigmund Freud): "कला अचेतन मन की अभिव्यक्ति है, जिसे रंगों और रूपों में कलाकार व्यक्त करता है।" (कला को मनोवैज्ञानिक गहराई से जोड़ना।)
फ्रांसिस बेकन (Francis Bacon): "कलाओं का सम्बन्ध उस अभिव्यक्ति से है जो स्मृति और विवेक द्वारा संचालित होती है।"
हॉब्स (Hobbes): "कला में नैतिकता आवश्यक है।"
कॉलगिंगवुड (R.G. Collingwood): "कला का पुनः प्रस्तुतीकरण नहीं होता।" (कला एक अद्वितीय और आंतरिक अनुभव है।)
हर्बर्ट रीड (Herbert Read): "कला हमारे मानसिक ही नहीं शारीरिक तथा भौतिक सृष्टि के पक्षों से भी जुड़ी है।"
बेनेडिक्ट स्पिनोज़ा (Benedict Spinoza): "समस्त जगत् ईश्वर है तथा ईश्वर समस्त जगत है। यही सम्पूर्णता सौंदर्य है। कला में हम इच्छित वस्तुओं को एक निश्चित मूल्य देते हैं। इसीलिए वे सुंदर होती हैं।"
जॉन लॉक (John Locke): "कला मिथ्या रंग, आभास, सादृश्य इत्यादि के माध्यम से वास्तविकता को ढंक देती है। अतः कला सुंदर भ्रम है।"
जॉर्ज बर्कले (George Berkeley): "कला ईश्वरीय है जिसके कारण हमें संवेदनाओं का ज्ञान होता है।"
लॉर्ड केम्स (Lord Kames): "कला दृष्टि का आकर्षण है इसीलिए सुंदर है।"
विलियम होगार्थ (William Hogarth): "कला का आनंद विविधता में है।"
डेविड ह्यूम (David Hume): "कला संवेग है जो हमें सौंदर्य की वास्तविक अनुभूति कराती है।"
एडमंड बर्क (Edmund Burke): "कला-सौंदर्य वस्तु के गुण में होता है जो देखने वाले के मन में सुंदर भावों को जन्म देता है।"
डब्ल्यू.वी. हम्बोल्ट (W.V. Humbolt): "कला कल्पना के माध्यम से प्रकृति का निरूपण करती है। कला प्रकृति की वास्तविकताओं को नष्ट करती है, फिर कल्पना शक्ति के माध्यम से उसका पुनः निर्माण करती है।"
जॉन गोटलिब फिक्टे (John Gottlieb Fichte): "कला दर्शक की सुंदर आत्मा की अभिव्यक्ति है। उसका सौंदर्य कलाकार और दर्शक के भीतर होता है।"
शेलिंग (Friedrich Wilhelm Joseph Schelling): "कला पूर्णतः प्रतीकावादी है और सौंदर्य प्राप्ति का सर्वोत्तम माध्यम है।"
विलियम वर्ड्सवर्थ (William Wordsworth): "कला बलवती अथवा प्रभावशाली भावनाओं का सहज उच्छलन है। मन की प्रशांत अवस्था में मनोभावों के अनुस्मरण से यह उत्पन्न होती है।"
सैमुअल टेलर कॉलरिज (Samuel T. Colridge): "कला कल्पना संबंधी परिकल्पना के आधार पर प्रकृति को विचारों या विचारों की प्रकृति के रूप में प्रस्तुत करने का महत्त्वपूर्ण माध्यम है। अतः उनके अनुसार सृजनात्मक अनुकरण कल्पना के बिना संभव नहीं।"
रोजर एलियट फ्रॉय (Roger Eliot Fry): "कला मनुष्य के काल्पनिक जीवन की अभिव्यक्ति है। इसमें मनुष्य के नैतिक दायित्व की आवश्यकता नहीं है। कला से प्राप्त आनंद अधिक मौलिक तथा पूर्णतः भिन्न होता है तथा यह भौतिक या क्षणिक नहीं होता।"
आर्थर क्लाइव हेवर्ड बेल (Arthur Clive Heward Bell): "कला हमें मनुष्य के क्रियाकलाप से ऊपर उठा कर सौंदर्यात्मक आनंद के संसार में मग्न कर देती है। कला कृति से जागृत भाव देशकाल से परे होते हैं। इसी कारण प्रत्येक युग की कला कृति का शाश्वत और स्थायी मूल्य बना रहता है।"
कार्ल मार्क्स (Karl Marx): "कला का सौंदर्य सामाजिक श्रम का परिणाम है। मानव-समाज के प्रारंभिक काल में श्रम की प्रक्रिया द्वारा ही कला का जन्म हुआ। कला का प्राथमिक कर्तव्य जीवन में सौंदर्य की खोज रहा है।" (कला को सामाजिक-आर्थिक संदर्भ में देखा गया।)
थियोडोर लिप्स (Theodor Lipps): "कला अनैच्छिक सहसंवेदन हैं जिसके माध्यम से वस्तु तथा आत्मा में कोई भेद नहीं रह जाता और हम अभूतपूर्व सौंदर्यानुभूति प्राप्त करते हैं।"
आर.जी. कॉलिंगवुड (R.G. Collingwood): "शुद्ध कला अभिव्यंजना होती है जिससे भावों को विशिष्ट स्वरूप मिलता है। कला व्यक्तिगत वस्तु भी नहीं है।"
जॉर्ज संतायना (J. Santayana): "कला संवेगों की अभिव्यंजना है जिसमें सौंदर्य भावना शुद्ध रूप में प्रकट होती है।"
सूजन के. लैंगर (Susanne Katherina Langer): "कला प्रतीकात्मक रूप की सृष्टि करती है।"
बर्नन ली (Wernon Lee): "कला स्वरूप तभी सुंदर कहे जा सकते हैं जब हम उनमें अपनी क्रियाएं प्रक्षेपित कर लेते हैं। कला प्रक्षेपण से प्राप्त आनंद है।"
विल्हेम वॉरिंजर (Wilhelm Worringer): "कलात्मक अनुभूति का सामान्य मूल, आत्म-मुक्ति है।"
भारतीय संदर्भ में कला की परिभाषा
भारतीय परंपरा में, कला को अक्सर आध्यात्मिक, भावनात्मक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति से जोड़ा जाता है, जिसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को समाहित किया जाता है।
शतपथ ब्राह्मण: "जो कुछ भी देवशिल्पों का प्रतिरूप है वह शिल्प अर्थात् कला है।" (कला को ईश्वरीय सृजन के प्रतिबिंब के रूप में देखना।)
भरत मुनि: "कला रस की अभिव्यंजना है। सहृदय व्यक्ति इसका आस्वादन करता है। कला भावों की अभिव्यक्ति है।" (कला में भावनाओं और उनके आस्वादन पर जोर।)
अभिनव गुप्त: "कला में कलात्मक साधन की सहायता से अभिव्यक्त काल्पनिक रूप में स्वयं अनुभव होता है।"
रवींद्रनाथ टैगोर: "कला में मानव स्वयं अपनी अभिव्यक्ति करता है।"
जयशंकर प्रसाद: "ईश्वर की कृतित्व शक्ति का संकुचित रूप जो हमें भावबोध के लिए मिलता है वही कला है।"
डॉ. जैनेंद्र कुमार: "अनुभूति की अभिव्यक्ति कला है।"
मैथिली शरण गुप्त: "कला शिवत्व की उपलब्धि के लिए सत्य की सौंदर्यमयी अभिव्यक्ति है।"
श्री श्यामसुंदर दास: "जिस अभिव्यंजना में आंतरिक भावों का प्रकाशन तथा कल्पना योग रहता है वही कला है।"
वाचस्पति गैरोला: "विश्वात्मा की सर्जना शक्ति होने के कारण सृष्टि के समस्त पदार्थों में उसी का आधान है। वह अनंत रूपा है।"
प्रो. रामचंद्र शुक्ल: "सभी कलाएँ हमारी भावनाओं को व्यक्त करने का साधन हैं।" और "जीवन में प्रेम की तरह है कला।"
डॉ. हरद्वारी लाल शर्मा: "कला कलाकार की तृप्ति का वही रूप है जो ऋषि को समाधि अवस्था में धर्म का साक्षात्कार करने में होता है।" और "रचना की सहज प्रवृत्ति से कला का जन्म होता है। अतः कला मनुष्य के लिए जन्मजात और आदिम प्रवृत्ति है।"
रमेश कुन्तल मेघ: "कला कौशल और क्रिया व्यापार है। इसमें रचना और कार्य दोनों शामिल हैं।"
रूपनारायण बॉथम: "ललित कला का सम्बन्ध सौंदर्य बोध, सांस्कृतिक विकास और आध्यात्मिक चेतना से है।"
गिरिराजकिशोर अग्रवाल: "मानवीय भावों की अभिव्यक्ति अथवा प्रकाशन कला है।"
र.वि. सारवलकर: "ऐसी प्रभावी या सौंदर्यपूर्ण कृति जिसके निर्माण के पीछे मानवीय प्रयास दृष्टिगोचर हो, कला है।"
अविनाश बहादुर वर्मा: "सृष्टि में सर्वस्व कला है और जीवन की प्रत्येक क्रिया कला है।"
भोलानाथ तिवारी: "कला मानव की कर्तव्य शक्ति का किसी भी मानसिक तथा शारीरिक उपयोगी या आनंददायी या दोनों से युक्त वस्तु के निर्माण के लिए किया गया कौशलपूर्ण प्रयोग है।"
एस.के. शर्मा - आर.ए. अग्रवाल: "कला मानव मस्तिष्क की वह क्रिया है जहाँ वह अपने अनुभवों को किन्हीं, निश्चित कला-तत्त्वों एवं सौंदर्य सिद्धांतों के आधार पर अभिव्यक्त करता है।"
प्रभाकर श्रोत्रिय: "कवि मनुष्य की उज्ज्वल चेतना में उसके हृदय की व्यापकता में सौंदर्य खोजते हैं।"
श्याम शर्मा: "चाक्षुष कला के क्षेत्र में छापा-कला का अलग आनंद है। यह अपनी तकनीकी सीमाओं में रहकर मानव के बाह्य और अंतर्मन को उजागर कर सकती है।"
आनंद कुमार स्वामी: "कला आदर्श सौंदर्य का वक्तव्य है।"
टैगोर (Tagore): "कला में मनुष्य अपनी अभिव्यक्ति करता है।"
वामन: "सौंदर्य अलंकार है।"
ऐतरेय ब्राह्मण: "दिव्य कलाएँ भी कला के रूप में प्रशंसित हुई हैं।"
प्राणनाथ मागो: "चाक्षुष कलाएँ किसी सभ्यता का अनिवार्य हिस्सा होती हैं। वे उस गुण की अभिव्यक्ति होती हैं जिसके आधार पर किसी राष्ट्र को आंका जाता है।"
ममता चतुर्वेदी: "कला जीवन का अनुकरण मात्र ही नहीं है बल्कि वह मौलिक सृजन है, पुनर्निर्माण है, सृष्टि है।"
वासुदेव शरण अग्रवाल: "भारतीय कला में यहाँ के हस्त-कौशल और मस्तिष्क का सर्वोत्तम प्रमाण पाया जाता है। भारतीय कला की सामग्री वैसी ही समृद्ध है जैसी भारतीय साहित्य, धर्म और दर्शन की।"
गणपति चंद्र गुप्त: "कला का सम्बन्ध मूलतः सामूहिक अचेतन मन में विद्यमान वंश परम्परागत सर्जनात्मक वृत्ति से है।"
प्रयाग शुक्ल: "कलाएँ हमारे देखने को व्यवस्थित करती हैं।"
डॉ. जूही शुक्ला: "'कला जीवन को सुंदर ढंग से जीने का सर्वोत्तम विकल्प है, जिसमें मुक्त होने का भाव भी समाहित है।'"
कला की परिभाषा की व्यापक श्रेणियाँ
आज, कला की कोई एक सार्वभौमिक परिभाषा नहीं है, लेकिन एक आम सहमति उभरी है कि कला कौशल और कल्पना का उपयोग करके कुछ सुंदर या सार्थक का सचेत निर्माण है। कला की परिभाषा और उसके कथित मूल्य इतिहास और विभिन्न संस्कृतियों में बदलते रहे हैं।
कला की परिभाषाओं को व्यापक रूप से कई श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:
प्रतिनिधित्व या अनुकरण (Representation or Mimesis): प्लेटो ने कला को "नकल" के रूप में देखा। सदियों तक, कला को किसी सुंदर या सार्थक चीज़ की faithfully replication (विश्वसनीय प्रतिकृति) के रूप में परिभाषित किया गया था।
भावनात्मक सामग्री की अभिव्यक्ति (Expression of Emotional Content): रोमांटिक आंदोलन के दौरान अभिव्यक्ति महत्त्वपूर्ण हो गई, जहाँ कलाकृति का उद्देश्य एक निश्चित भावना (जैसे उदात्त या नाटकीय) को व्यक्त करना था। दर्शकों की भावनात्मक प्रतिक्रिया को महत्त्वपूर्ण माना गया।
रूप (Form): इमैनुएल कांट का मानना था कि कला को अवधारणा के बिना केवल उसके औपचारिक गुणों में योग्यता प्राप्त करनी चाहिए। 20वीं सदी में अमूर्त कला के उदय के साथ औपचारिक गुण (जैसे संतुलन, लय, सामंजस्य, एकता) विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हो गए।
आज, कला की परिभाषा और मूल्य निर्धारित करने में ये तीनों श्रेणियाँ भूमिका निभाती हैं।
कला की परिभाषा का इतिहास
प्राचीन काल से 17वीं सदी तक: पश्चिमी संस्कृति में, कला को ज्ञान और अभ्यास के परिणामस्वरूप कौशल के साथ किए गए किसी भी कार्य के रूप में परिभाषित किया गया था। कलाकारों ने अपने शिल्प को निखारा, अपने विषयों को कुशलता से दोहराना सीखा।
18वीं सदी (रोमांटिक काल): कला को केवल कौशल से किया गया कार्य नहीं, बल्कि सौंदर्य की खोज और कलाकार की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए भी बनाया गया माना जाने लगा। प्रकृति को महिमामंडित किया गया, और आध्यात्मिकता तथा स्वतंत्र अभिव्यक्ति का सम्मान किया गया।
19वीं सदी के मध्य (अवांत-गार्द आंदोलन) और 20वीं सदी: कला ने विचारों और रचनात्मकता की सीमाओं को आगे बढ़ाया। घनवाद (Cubism), भविष्यवाद (Futurism), और अतियथार्थवाद (Surrealism) जैसे आधुनिक कला आंदोलनों ने कला-निर्माण के लिए अभिनव दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व किया। परिभाषा में दृष्टि की मौलिकता का विचार भी शामिल हो गया।
आज: कला में मौलिकता का विचार बना हुआ है, जिससे कला की और अधिक शैलियाँ और अभिव्यक्तियाँ सामने आई हैं, जैसे डिजिटल कला, प्रदर्शन कला, वैचारिक कला, पर्यावरणीय कला, इलेक्ट्रॉनिक कला आदि।
निष्कर्ष
आज हम मानवजाति के शुरुआती प्रतीकात्मक चित्रणों को भी कला मानते हैं। कला हमें मानव होने का अर्थ समझने में मदद करती है, जिसे दूसरों द्वारा देखने और व्याख्या करने के लिए भौतिक रूप से प्रकट किया जाता है। कला किसी मूर्त वस्तु, या किसी विचार, भावना, या अवधारणा का प्रतीक हो सकती है। यह शांतिपूर्ण माध्यम से मानव अनुभव के पूरे स्पेक्ट्रम को व्यक्त कर सकती है, और शायद यही कारण है कि यह इतनी महत्त्वपूर्ण है।
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