रंगीन हो बच्चों का संसार। बबीता वर्मा

सीमेंट से सनी दीवारें मिट्टी की खुशबू छीन लेती हैं। भारतीय दर्शन कहता है 'गंधवती पृथ्वी'। मिट्टी की अपनी एक खुशबू है जो बच्चों को बहुत ही प्यारी री है। । सीमेंट की दीवारें औपचारिक शिक्षा का स्थान सुगम कराने के लिए आवश्यक है परंतु कोरी दीवारें बालमन को मोह नहीं पाती। रंग किसे अच्छे नहीं लगते ? संसार का प्रत्येक प्राणी रंगीन होना चाहता है और परिवेश को रंगीन करना चाहता है। बच्चें इससे दो कदम आगे पाए जाते हैं। उन्हें प्रथम ज्ञान के रूप में अलग-अलग चीजें जब भी अधिगम होती है तब वे उसके रूप, आकार, बनावट के साथ सबसे बड़ी बात पकड़ते हैं उसका रंग। बिना रंग की दीवारों वाले विद्यालय की अपेक्षा रंगीन दीवारों के विद्यालय में कौनसा बालमन ना रमेगा।

कक्षा 1 में प्रवेश पाता हुआ बच्चा विद्यालय में रंग ही ढूंढ़ता है। अगर यह उसे कक्षा-कक्ष में मिल जाए तो सोने पर सुहागा अन्यथा यह पेड़ों के नीचे, पौधों के पास, पानी की टंकी के नजदीक इसके अन्वेषण में लगा रहता है। शिक्षा व्यवस्था की यह जिम्मेदारी बन जाती है कि वो बच्चों को रंगीन परिवेश सुलभ करवाए। रंगों के माध्यम से अधिगम के समुचित अवसर वे स्वतः खोज लेते हैं। कक्षा 1 व 2 के लिए गतिविधि आधारित कक्ष का निर्माण इस दिशा में बहुत अच्छा प्रयास है। उसमें अंकित नीलू और पीलू की कहानी किस बालमन को अपनी और आकर्षित नहीं करती। संख्याएं, अक्षर, चित्र, कथा-चित्र और सब में विविध रंग बच्चों की जिज्ञासा को द्विगुणित कर देते हैं।

आजकल बैनर, स्मार्ट क्लास, टीवी ने अतिरोचकता जनन सम्पादन किया है। उत्प्रेरकों की विविधता प्रतिक्रियाओं में विविधता बनाने में सक्षम है। यह वैविध्य सीखने के सर्वाधिक अवसर निर्माण करता है। विविध रंगीन उपक्रम का प्रयोग इसमें रोचकता बनाए रखता है। ब्लैक बोर्ड और चॉक मात्र के प्रयोग से शिक्षण, अधिगम हेतु छात्रों को तत्पर बनाने में विफल सिद्ध हुए हैं। आवश्यकता अनुभूत की गई है कि वह बात जिस पर बात की जानी है उसका प्रत्यक्ष रूप दिखाया जा सके और समस्त ज्ञानेंद्रियों को समुचित अवसर मिले। प्रायः यह सम्भव नहीं हो पाता अतः रंग व इनका अधिकाधिक प्रयोग इस रिक्ति की पूर्ति करने का सशक्त विकल्प है।

विद्यालयों में प्रवेश द्वार से कक्षा-कक्ष तक यदि रंगीन चित्रकारी हो तो बच्चें न केवल आकर्षित होंगे अपितु वर्णवैविध्य उनमें जिज्ञासा जनन भी करेगा। हर दीवार पर रोचकता पूर्वक पाठ्यक्रम के विविध पक्ष समाहित हों तो वो बालमन को अपनी दिशा में भी आकर्षित करेंगे। भारत गैलेरी, राजस्थान गैलेरी, सांस्कृतिक गैलेरी, विज्ञान विधि, हमारे महापुरुष, कार्टून कैरेक्टर, मानचित्र, शब्द संसार, गणितीय पहेलियाँ आदि का मनोवैज्ञानिक चित्रण अधिगम

की गति निश्चित रूप से बढ़ाता है। फर्श पर अंकित विविध आकृतियों से शारीरिक गतिविधि हेतु स्थान व सुगमता सुनिश्चित होती है। एक दिशा में बढ़ने के साथ-साथ उन्मुक्त उत्थान रंगों के माध्यम से सम्भव है। विद्यालय के शिक्षकों की रंगों से साथ मैत्री आवश्यक है। यह जरूरी हो जाता है कि वे इसका अधिकाधिक प्रयोग करें और छात्रों को भी इनके प्रयोग के अवसर प्रदान करवाएं। प्रायः छोटे बच्चों को सफेद दीवारों पर कोयले से काली रेखा खर्खीचते हुए देखना आम बात है। रोज सुबह विद्यालय आते हैं, फर्श पर रेखाओं का अंकन कर विविध खेल रचना करते हुए सहज देखा जाता है। अवसर पाते ही विद्यालय की दीवारों पर अपना संसार बनाते देखना यत्र-तत्र-सर्वत्र सुलभ है। आवश्यकता है इन्हें स्थान, परिवेश, साधन और सबसे बड़ी बात रंग उपलब्ध करवाने की। आज का बच्चों का रंगीन संसार ही कल समाज को विद्यालय के माध्यम से एक सफल चित्रकार प्रदान करेगा । आइए प्रयास करें कि इनका संसार रंगीन हो और बच्चे यह समझने में सक्षम हो कि यह संसार और जीवन रंगीन है।

अध्यापिका

महात्मा गाँधी राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय मेहरों की ढाणी, कुचामन सिटी,
डीडवाना-कुचामन मो. 7014279180

शिविरा पत्रिका के अंक से संकलन


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