मुगलकालीन लघु चित्रकला

 मुगल लघु चित्रकला कोई एक शुद्ध शैली नहीं है; यह भारतीय, फ़ारसी (ईरानी) और यूरोपीय प्रभावों का एक सुंदर मिश्रण है. इस शैली का विकास मुगल दरबार के कलाकारों और संरक्षकों की कलात्मक पसंद और दर्शन के अनुसार हुआ. मुगल दरबार की औपचारिक कार्यशालाओं में भारतीय और विदेशी कलाकारों ने मिलकर काम किया, जिससे यह कला शैली धीरे-धीरे समृद्ध हुई. यह कला एक साथ भारतीय परंपरा और इस्लामिक सौंदर्य को दिखाती है, और इसके विकास में कई शैलियों का आपस में आदान-प्रदान हुआ. यह रातों-रात नहीं बनी, बल्कि यह विभिन्न कला रूपों और संस्कृतियों के मेल का नतीजा है.


प्रारंभिक मुगलकालीन चित्रकला: शासकों का योगदान

हर मुगल शासक ने अपने तरीके से कला को संरक्षण दिया, जिससे मुगल चित्रकला लगातार विकसित होती रही.

  1. बाबर (1526-1530):

    • भारत का पहला मुगल शासक.

    • ईरानी और मध्य एशियाई कला-संस्कृति से बहुत प्रभावित था.

    • उसकी आत्मकथा "बाबरनामा" में कला और प्रकृति के प्रति उसकी गहरी रुचि दिखती है.

    • भारत में शाही चित्रशाला (आर्ट स्टूडियो) की नींव इसी काल में पड़ी.

    • बिहज़ाद और शाह मुज़फ्फर जैसे प्रसिद्ध चित्रकारों ने मुगल चित्रकला की नींव रखी.

  2. हुमायूँ (1530-1556):

    • कला को एक संगठित रूप देने वाला पहला मुगल शासक.

    • निर्वासन के दौरान ईरान में शाह तहमास के दरबार में रहा, जहाँ उसकी चित्रकला की समझ गहरी हुई.

    • ईरान से दो प्रसिद्ध फ़ारसी चित्रकार मीर सैयद अली और अब्द उस समद को भारत लेकर आया.

    • भारत में "निगारख़ाना" नामक एक चित्रशाला की स्थापना की, जो मुगल चित्रकला की औपचारिक शुरुआत थी.

    • 'प्रिंसेज़ ऑफ तैमूर' जैसे ऐतिहासिक विषयों पर चित्रों की परंपरा शुरू हुई.

  3. अकबर (1556-1605):

    • अकबर के शासनकाल को मुगल चित्रकला का स्वर्ण युग माना जाता है.

    • अबुल फ़ज़ल के अनुसार, दरबार में 100 से अधिक चित्रकार थे, जिनमें फ़ारसी और भारतीय कलाकारों का मेल था.

    • प्रमुख उपलब्धियाँ:

      • हम्जानामा: एक विशाल चित्रित पांडुलिपि, जिसे बनाने में लगभग 15 वर्ष लगे.

      • रज़्मनामा (महाभारत का फ़ारसी रूपांतरण), रामायण, और अकबरनामा जैसे ग्रंथों का चित्रात्मक रूप में निर्माण.

      • यूरोपीय प्रभाव: 'मेडोना एंड चाइल्ड' जैसे यूरोपीय शैली के चित्र भी बनाए गए, जो अकबर के खुले विचारों को दर्शाते हैं.

  4. जहाँगीर (1605-1627):

    • कला में वैज्ञानिक सटीकता और यथार्थवादी शैली का प्रबल समर्थक था.

    • अबुल हसन और उस्ताद मंसूर (जिसे 'नादिर उल अस्र' की उपाधि मिली) जैसे प्रसिद्ध चित्रकार उसके दरबार में थे.

    • मुरक्का (एल्बम चित्रों) की परंपरा शुरू हुई, जहाँ सुंदर लघुचित्रों को संग्रहित किया जाता था.

    • प्रतीकात्मक चित्र: 'जहाँगीर का स्वप्न' और 'रेतघड़ी पर विराजमान जहाँगीर' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.

    • यूरोपीय कला का प्रभाव: पादरियों, अंग्रेज़ों और ईसाई विषयों पर आधारित चित्र बनवाए, जिससे अंतरराष्ट्रीय प्रभावों का समावेश हुआ.

  5. शाहजहाँ (1628-1658):

    • मुगल चित्रकला में भव्यता और आदर्शीकरण को प्राथमिकता दी गई.

    • चित्रों में हीरे-जवाहरात, शाही वस्त्रों और दरबारी वैभव के माध्यम से समृद्धि दिखाई गई.

    • महत्वपूर्ण कृति: 'पदशाहनामा', एक भव्य रूप में चित्रित ऐतिहासिक ग्रंथ.

    • रंगों का सुंदर संयोजन और शाही छवियों की उत्कृष्टता इस काल में चरम पर थी.

  6. दारा शिकोह:

    • शाहजहाँ का पुत्र, जो कला, दर्शन और धार्मिक समन्वय में रुचि रखता था.

    • 'दारा शिकोह विद सेजेज इन गार्डन' जैसे चित्रों में उसकी विद्वता और आध्यात्मिक झुकाव दिखता है.

    • उसे संस्कृत ग्रंथों और सूफी विचारधारा में गहरी रुचि थी.

  7. औरंगज़ेब (1658-1707):

    • यह काल मुगल चित्रकला के लिए पतनशील चरण माना जाता है.

    • उसने कला में विशेष रुचि नहीं दिखाई और चित्रशालाओं को पूरी तरह प्रोत्साहन नहीं दिया, हालांकि उन्हें बंद भी नहीं किया.

    • इसके बावजूद, इस काल में भी कुछ सुंदर चित्र बनते रहे, जो कला परंपरा के जारी रहने का संकेत देते हैं.


उत्तरकालीन मुगल चित्रकला

मुगल साम्राज्य के अंत में जब कला संरक्षण कम होने लगा, तो कई कुशल कलाकारों ने मुगल दरबार छोड़कर प्रांतीय शासकों की शरण ली. ये शासक भी मुगलों की तरह शाही जीवन और दरबारी घटनाओं को चित्रों में पसंद करते थे. मोहम्मद शाह रंगीला, शाह आलम द्वितीय और बहादुर शाह ज़फर के समय कुछ अच्छे चित्र बने, लेकिन वे मुगल चित्रकला की आखिरी झलक थे. 1838 में बना बहादुर शाह ज़फर का चित्र इसका एक उदाहरण है. 1857 की क्रांति के बाद मुगल शासन समाप्त हो गया, और ज़फर आखिरी मुगल शासक बने. इसके बाद बदलते राजनीतिक माहौल और नए संरक्षकों के प्रभाव में चित्रकला की दिशा बदली और मुगल चित्रकला धीरे-धीरे प्रांतीय और कंपनी शैली में विलीन हो गई.


मुगल चित्रकला की प्रक्रिया, रंग और तकनीक

मुगल लघु चित्रकला के अधिकतर चित्र पांडुलिपियों या शाही एल्बमों का हिस्सा होते थे, जहाँ चित्र और लेखन एक साथ बनाए जाते थे.

  • निर्माण प्रक्रिया:

    1. हाथ से कागज़ बनाकर पांडुलिपि के आकार में काटा जाता था.

    2. उस पर लेखन होता और चित्र के लिए जगह खाली छोड़ी जाती थी.

    3. कलाकार पहले खाका (रेखाचित्र) बनाता था.

    4. फिर चित्र (चिहारनामा) तैयार करता था.

    5. अंत में उसमें रंग भरता (रंगमिज़ी) था.

  • रंग और तकनीक:

    • सामग्री: चित्र आमतौर पर हस्तनिर्मित कागज़ पर बनते थे.

    • प्राकृतिक रंग: हिंगुल से सिंदूरी (लाल), लाजवर्त से नीला, हरताल से पीला, सीप से सफेद और लकड़ी के कोयले से काला रंग बनता था.

    • तूलिकाएँ (ब्रश): गिलहरी या बिल्ली के बच्चों के बालों से बनी बारीक तूलिकाओं का उपयोग होता था.

    • सामूहिक कार्य: अक्सर एक चित्र को बनाने में कई कलाकारों की सामूहिक मेहनत होती थी (खाका बनाने वाला, रंग पीसने वाला, रंग भरने वाला, बारीकियाँ जोड़ने वाला). कुछ चित्र एक ही कलाकार भी बनाते थे.

    • चमक: चित्र पूर्ण होने पर उसे एगेट नामक पत्थर से घिसकर चमकाया जाता था ताकि रंग टिकाऊ बनें और उनमें चमक आए.

    • मूल्यवान सामग्री: खास चित्रों में सोने-चाँदी का चूरा मिलाकर उन्हें और भी कीमती बनाया जाता था.

    • कलाकारों की स्थिति: कलाकारों को उनके काम के अनुसार वेतन और पद भी दिए जाते थे.


मुगल चित्रकला के महत्वपूर्ण उदाहरण

  • नोआस् आर्क (1590) - मिस्किन द्वारा:

    • विषय: पैगंबर नूह को उनके जहाज़ में जानवरों के जोड़ों के साथ दिखाया गया है, जो दुनिया को बाढ़ के बाद फिर से बसाने के लिए हैं.

    • कलात्मकता: सफेद, लाल, नीले और पीले रंगों का सुंदर व सूक्ष्म उपयोग. ऊर्ध्वाधर परिप्रेक्ष्य में जल का चित्रण नाटकीय ऊर्जा देता है.

    • संग्रह: फ्रीयर गैलरी ऑफ आर्ट, वाशिंगटन डी.सी.

  • गोवर्धन पर्वत को उठाते हुए कृष्ण (1585–90) - मिस्किन द्वारा:

    • स्रोत: हरिवंश पुराण पर आधारित.

    • विषय: भगवान कृष्ण को गोवर्धन पर्वत को एक विशाल छतरी की तरह उठाकर अपने अनुयायियों और पशुओं को इंद्र की बारिश से बचाते हुए दर्शाया गया है.

    • संग्रह: मेट्रोपोलिटन म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट, न्यूयॉर्क.

  • पक्षी-विश्राम पर बाज़ (1615) - उस्ताद मंसूर द्वारा:

    • कलाकार: सम्राट जहाँगीर ने उस्ताद मंसूर को 'नादिर उल अस्र' की उपाधि दी थी.

    • विषय: जहाँगीर के बाज़ों के शौक को दर्शाता है; एक बाज़ को पक्षी-विश्राम पर दिखाया गया है. एक किस्सा यह भी है कि शाह अब्बास द्वारा भेंट किए गए बाज़ की बिल्ली द्वारा मृत्यु होने पर जहाँगीर ने उसकी स्मृति में यह चित्र बनवाया.

    • संग्रह: क्लीवलैंड संग्रहालय, ओहायो (अमेरिका).

  • ज़ेबरा (1621) - उस्ताद मंसूर द्वारा:

    • विषय: तुर्कों द्वारा इथियोपिया से लाया गया ज़ेबरा, जिसे जहाँगीर को भेंट किया गया था. जहाँगीर ने इसका ध्यानपूर्वक अवलोकन किया क्योंकि कुछ को संदेह था कि यह एक धारियाँ पेंट किया गया घोड़ा है.

    • महत्व: प्राकृतिक इतिहास और कला के प्रति मुगल शासकों की रुचि को दर्शाता है.

    • विशेषता: जहाँगीरनामा में वर्णित, और शाहजहाँ के काल में इसके किनारों पर अलंकरण किया गया.

  • दारा शिकोह की बारात - हाजी मदनी द्वारा:

    • काल: शाहजहाँ के शासनकाल में बना.

    • विषय: दारा शिकोह के विवाह का भव्य दृश्य, जिसमें दारा शिकोह सेहरे के साथ घोड़े पर सवार है, और पीछे शाहजहाँ प्रभामंडल के साथ सफेद घोड़े पर बैठे हैं.

    • कलात्मकता: राजसी आयोजन को अत्यंत जीवंत और रंगीन ढंग से चित्रित किया गया है.

    • संग्रह: राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ