दक्कनी चित्रकला शैली

दक्कनी चित्रकला का विकास मुख्य रूप से 16वीं शताब्दी के अंत से 17वीं शताब्दी के अंत तक हुआ, जब मुगलों ने दक्कन पर प्रभाव जमाना शुरू किया. यह शैली बाद में असफिया वंश (हैदराबाद के निज़ाम) और अन्य प्रांतीय शासकों की कला में भी दिखाई दी. शुरुआत में इसे केवल इंडो-पर्शियन शैली माना गया, लेकिन यह वास्तव में एक स्वतंत्र और विशिष्ट शैली थी. इसने सफ़ाविद, फ़ारसी, तुर्की और मुगल शैलियों से प्रेरणा ली, लेकिन दक्कनी शासकों ने इसे अपनी राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि के अनुसार विकसित किया. बीजापुर, गोलकुंडा और अहमदनगर जैसे राज्यों में इस शैली ने अपने मधुर रंगों, प्रणय दृश्यों और स्वाभाविक सौंदर्य अभिव्यक्ति से एक अलग पहचान बनाई. यह शैली अपने सशक्त, आकर्षक और भावनात्मक चित्रों के लिए जानी जाती है.


अहमदनगर चित्रकला शैली

  1. आरंभिक उदाहरण:

    • दक्कन की प्रारंभिक चित्रकला के उदाहरण हुसैन निज़ामशाह प्रथम (1553–1565) के कविता संग्रह में मिलते हैं.

    • इस संग्रह में 12 लघु चित्र हैं, जिनमें अधिकांश युद्ध दृश्य दर्शाए गए हैं, जो उस समय चित्रकला की प्रारंभिक अवस्था को दिखाते हैं.

  2. रानी के विवाह का चित्रण:

    • इन चित्रों में रंगों की भव्यता, रेखाओं की मधुरता और संतोषजनक सौंदर्य दिखता है.

    • विषय युद्ध और दरबारी घटनाएँ होने के बावजूद, इनमें एक सहज कलात्मक आकर्षण मिलता है, जो दक्कनी चित्रकला की भविष्य की समृद्धि का संकेत है.

  3. नारी चित्रण की विशेषताएँ:

    • वेशभूषा में उत्तर और दक्षिण भारतीय परंपराओं का मेल है.

    • चोली, लंबी चोटी और फूंदने जैसी वस्तुएँ उत्तर भारतीय प्रभाव दर्शाती हैं.

    • दुपट्टा नितंब तक लटकता हुआ और बालों का जूड़ा गर्दन पर दिखाना दक्षिण भारतीय (लेपाक्षी भित्तिचित्रों) का प्रभाव है.

  4. रंग योजना:

    • यह उत्तर भारतीय पांडुलिपियों से भिन्न है.

    • रंग योजना चटख, समृद्ध और जीवंत होती है, जो मुगल शैली से भी मेल खाती है.

    • रंगों की भव्यता इसकी एक प्रमुख विशेषता है.

  5. फ़ारसी प्रभाव:

    • ऊँचा उठा हुआ गोल क्षितिज और सुनहरा आकाश फ़ारसी चित्रकला से स्पष्ट रूप से प्रभावित हैं.

    • यह परिदृश्य शैली सभी दक्कनी राज्यों के चित्रों में समान रूप से दिखती है.

  6. रागमाला चित्रों में विशेषताएँ:

    • विकसित चरणों में महिलाओं की वेशभूषा और पृष्ठभूमि में बदलाव.

    • क्षितिज की जगह फीकी या एकरंगी पृष्ठभूमि ने ले ली है.

    • चित्रों में छोटे-छोटे पौधे या गुंबदनुमा आकृतियाँ पृष्ठभूमि को सजावटी बनाती हैं.

  7. पुरुष चित्रण:

    • पुरुष अक्सर लंबा, नुकीला जामा और छोटी पगड़ी पहनते हैं, जो प्रारंभिक अकबरी चित्रों (जैसे 1567 की गुलिस्तान) और प्राक-अकबरी लघु चित्रकला से प्रभावित लगते हैं.

  8. बुखारा शैली का प्रभाव:

    • गुलिस्तान चित्र बुखारा के कुशल चित्रकारों द्वारा बनाए गए थे, जिनमें फ़ारसी परंपरा की छाप थी.

    • संभावना है कि ये चित्रकार या उनके शिष्य दक्कन में आए, जिससे दक्कनी चित्रकला में फ़ारसी-बुखारी प्रभाव आया.

  9. महत्वपूर्ण पांडुलिपि:

    • बांकीपुर लाइब्रेरी, पटना में चित्रकार युसुफ द्वारा 1569 में इब्राहीम आदिलशाह को समर्पित एक पांडुलिपि है.

    • इसमें 7 लघु चित्र हैं, जो पूरी तरह से बुखारा शैली में हैं, यह विदेशी चित्रकारों की भागीदारी का प्रमाण है.


बीजापुर चित्रकला शैली

  1. नुजूम-अल-उलूम (1570 ई.):

    • यह एक चित्रित विश्वकोश (एनसाइक्लोपीडिया) है, जिसमें 876 लघु चित्र हैं.

    • विषयों में बरतन, अस्त्र-शस्त्र और नक्षत्र संबंधी चित्र शामिल हैं.

    • नारी चित्रण में महिलाओं को लंबी, पतली आकृति में दक्षिण भारतीय पोशाक में दर्शाया गया है.

  2. संरक्षक शासक:

    • इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय (1580–1627) कला, साहित्य और संगीत प्रेमी शासक थे.

    • उन्होंने भारतीय संगीत पर आधारित ग्रंथ "नौरस-नामा" की रचना की.

    • उन्हें "नुजूम-अल-उलूम" का संभावित लेखक भी माना जाता है.

  3. रागमाला श्रृंखला (लगभग 1590 ई.):

    • इन चित्रों में आध्यात्मिक और भावनात्मक स्वरूप है, जो भारतीय शैली से प्रभावित है.

    • तुर्की प्रभाव मुख्य रूप से अंतरिक्ष संबंधी चित्रण (नक्षत्र, ग्रह) में दिखता है.

    • आकृतियों, पोशाक और सजावट में लेपाक्षी शैली की झलक मिलती है, जो बहुसांस्कृतिक प्रकृति दर्शाती है.

  4. चित्रण की विशेषताएँ:

    • तीखे और समृद्ध रंगों का प्रभावशाली प्रयोग.

    • रेखाएँ वेगपूर्ण होती हैं, जो गति और जीवन का आभास देती हैं.

    • एक विशेष चित्र "समृद्धि का सिंहासन" प्रतीकात्मक रूप से 7 खंडों में विभाजित है, जिसमें हाथी, शेर, खजूर के वृक्ष, तोते और जनजातीय लोग चित्रित हैं.

  5. चित्रों की शैली:

    • कुछ चित्र गुजरात के घरों के काष्ठ पैनलों और दक्कन के मंदिरों की सजावट की याद दिलाते हैं.

    • पेड़-पौधों का चित्रण फ़ारसी शैली में है, जहाँ उन्हें नीली पृष्ठभूमि पर सजावटी रूप में दर्शाया गया है.

    • यह शैली गुजराती पांडुलिपियों के हाशियों से मिलती-जुलती है.

  6. महत्वपूर्ण चित्र – "योगिनी":

    • एक अज्ञात चित्रकार द्वारा बनाई गई.

    • लंबी आकृति और लंबवत संयोजन है.

    • सिर पर ऊँचा जूड़ा, पक्षियों के साथ क्रीड़ा, वृत्ताकार उड़ता दुपट्टा और सुंदर फूल-पौधे इसकी पहचान हैं.


गोलकुंडा चित्रकला शैली

  1. गोलकुंडा राज्य की पृष्ठभूमि:

    • 1512 से स्वतंत्र राज्य, 16वीं सदी के अंत तक दक्कन का सबसे समृद्ध राज्य.

    • समृद्धि के कारण: समुद्री व्यापार (लोहा, सूती वस्त्र का निर्यात) और हीरों की खोज (17वीं सदी की शुरुआत में).

  2. गोलकुंडा दरबार का वैभव:

    • नर्तक-नर्तकियों और दरबारियों के आभूषणों से राज्य की समृद्धि झलकती थी.

    • 17वीं सदी में डच व्यापारियों ने सुल्तानों की छवियाँ यूरोप भेजीं, जिससे कला की ख्याति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैली.

  3. चित्रों की विशेषताएँ:

    • चित्रों का उपयोग दीवारों पर लटकाने के लिए होता था, जिनमें कई बार 8 फ़ुट लंबे पट होते थे.

    • राजदरबार के दृश्य, वास्तु संरचनाएँ और आकृतियों का संयोजन प्रमुख था.

    • सुनहरे, बैंगनी और नीले रंगों का भरपूर प्रयोग.

    • संयोजन में एक ही वास्तु तत्व (जैसे पट्टियाँ) को बार-बार दोहराया जाता था, जिससे भव्यता आती थी.

  4. प्रारंभिक चित्रकला स्रोत:

    • सबसे पुराने चित्र 1463 ई. के हाफ़िज़ के दीवान में मिले हैं.

    • एक उल्लेखनीय चित्र में एक युवा शासक सिंहासन पर है, हाथ में दक्कनी तलवार, मलमल का कोट और लंबवत कढ़ाई है.

    • नर्तकियों की कलाबाजियाँ और भव्य कालीन भी शामिल हैं.

  5. प्रमुख उदाहरण:

    • मोहम्मद कुतुब शाह (1611–1620) का चित्र उन्हें दीवान पर बैठे हुए दर्शाता है.

    • टोपी और पोशाक में ठेठ गोलकुंडा शैली की विशेषताएँ (सजावटी डिज़ाइन, क्षेत्रीय वस्त्र).

    • संयोजन में अधिक तकनीकी कुशलता और पॉलिशिंग दिखती है.

  6. सूफ़ी काव्य की चित्रित पांडुलिपि:

    • लगभग 20 लघु चित्र हैं, जो गोलकुंडा शैली की परिपक्वता दर्शाते हैं.

    • रंग योजना में विशेष रूप से नीला और सुनहरा रंग प्रमुख हैं.

    • बादलों का दो परतों में चित्रण (ऊपरी नीली, निचली सुनहरी) एक विशिष्ट विशेषता है.

  7. चित्रकला की शैलीगत विशेषताएँ:

    • वेशभूषा अक्सर बीजापुर की शैली से मिलती-जुलती है.

    • पेड़-पौधों का चित्रण दक्कनी शैली में है, जिनमें घनी पत्तियां और सजावटी स्वरूप होता है.

    • एक स्त्री को चिड़िया से बातचीत करते हुए दिखाया जाना दक्कनी चित्रकला की एक विशिष्ट और लोकप्रिय शैलीगत विशेषता है.


दक्कनी चित्रकला के महत्वपूर्ण उदाहरण

  • संयोजित घोड़ा (17वीं शताब्दी):

    • विषय: मानव, पशु-पक्षी और प्रकृति के तत्वों का अद्भुत और कल्पनाशील मिश्रण.

    • मुख्य आकृति: सरपट दौड़ता हुआ संयोजित घोड़ा.

    • पृष्ठभूमि: उड़ते पक्षी, सिंह, चीनी शैली के बादल, वृक्ष और पौधे.

    • रंग: नीले और भूरे रंगों की सीमित रंग योजना.

    • कलात्मकता: यथार्थवाद और कल्पना का सुंदर संतुलन.

  • सुल्तान इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय हॉकिंग:

    • विषय: सुल्तान इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय को दर्शाया गया है.

    • कलात्मकता: ऊर्जा, गति और संवेदना का अद्भुत समावेश. घोड़े के पैरों और पूँछ पर लाल रंग, सुल्तान के लहराते वस्त्र, तराशा हुआ चेहरा चित्र को विशेष बनाते हैं.

    • पृष्ठभूमि: हरे जंगल, नीला आकाश, सुनहरी धूप, और संभोगरत पक्षियों का जोड़ा.

    • शैलीगत प्रभाव: घोड़ा और चट्टानें फ़ारसी प्रभाव दर्शाते हैं, जबकि पेड़-पौधे और घना परिदृश्य देसी शैली को उजागर करते हैं.

    • संग्रह: इंस्टिट्यूट ऑफ़ द पीपल्स ऑफ एशिया, लेनिनग्राद (रूस).

  • राग हिंडोल की रागिनी पथमासिका (लगभग 1590–95):

    • संबंधित राज्य: कुछ विद्वान इसे दक्कन के बीजापुर राज्य से संबंधित मानते हैं.

    • विषय: रागमाला संगीत परंपरा का हिस्सा. एक मंडप में दो महिलाएँ, केंद्र में बैठी महिला वीणा जैसा वाद्य बजा रही है.

    • फ़ारसी प्रभाव: दो सजे हुए गुंबदों व बेलबूटों की सजावट में स्पष्ट.

    • रंग और रेखांकन: लाल और हरे रंगों का सुंदर संयोजन. आकृतियाँ अजंता चित्रों की तरह सूत्रात्मक रेखांकन पर आधारित हैं.

    • प्रतीकात्मकता: बाएँ कोने में सूँड उठाए एक छोटा हाथी स्वागत का संकेत देता है.

    • संग्रह: राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली.

  • सुल्तान अब्दुल्ला कुतुब शाह:

    • विषय: बीजापुर के सुल्तान अब्दुल्ला का छवि चित्र.

    • पहचान: चित्र के ऊपरी भाग में फ़ारसी अभिलेख है.

    • महत्व: सुल्तान सिंहासन पर बैठे हैं, हाथ में तलवार (राजनीतिक शक्ति का प्रतीक), और सिर के चारों ओर प्रभामंडल (देवत्व और सम्मान का संकेत).

    • संग्रह: राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली.

  • हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया और अमीर खुसरो:

    • संबंधित क्षेत्र: प्रांतीय दक्कनी चित्र, हैदराबाद से संबंधित.

    • विषय: तेरहवीं शताब्दी के सूफी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया को उनके शिष्य अमीर खुसरो का संगीत सुनते हुए दर्शाया गया है.

    • कलात्मकता: सरल शैली में बिना तकनीकी परिष्करण के बना है, फिर भी भारतीय संस्कृति और लोकप्रिय सूफी विषय का आकर्षक चित्रण है.

    • सांस्कृतिक महत्व: आज भी हज़रत निज़ामुद्दीन की दरगाह पर अमीर खुसरो की कव्वालियाँ गाई जाती हैं.

    • संग्रह: राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली.

  • पोलो खेलते हुए चाँद बीबी:

    • विषय: दक्कन के समृद्ध बीजापुर राज्य की रानी चाँद बीबी को दर्शाता है, जो एक निपुण शासक और कुशल खिलाड़ी थीं. उन्होंने अकबर के राजनीतिक हस्तक्षेप का विरोध किया था.

    • खेल: उन्हें चौगान (पोलो) खेलते हुए दिखाया गया है, जो उस समय का लोकप्रिय शाही खेल था.

    • शैली: बाद की अवधि की प्रांतीय शैली में बना है.

    • संग्रह: राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली.

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