परिचय
जन्म: 1904 में कोलकाता के बेहाला नगर में।
निधन: 1980 में।
शिक्षा: शांतिनिकेतन, कलकत्ता से कला की शिक्षा ली।
प्रभाव: उन पर अवनींद्रनाथ टैगोर, नंदलाल बोस, और गगेंद्रनाथ ठाकुर का गहरा प्रभाव था। वे कालीघाट की पट शैली और ग्रामीण खिलौनों से भी बहुत प्रभावित थे।
पत्नी: मूर्तिकार लीला मुखर्जी।
पुत्री: प्रसिद्ध मूर्तिकार मृणालिनी मुखर्जी।
उपाधि: जया अप्पास्वामी ने उन्हें 'आधुनिक कला का सेतुबंध' कहा।
कलात्मक जीवन और शैली
माध्यम और तकनीकें:
टेम्परा और भित्ति चित्रण उनका मुख्य माध्यम था।
उन्होंने कोलाज पद्धति, काष्ठ (लकड़ी) और एचिंग से भी चित्र बनाए।
1936 में जापानी कलाकार सोसात्सु से वस्तु निरपेक्ष रेखांकन सीखा।
भित्ति चित्रण:
वे अपने भित्ति चित्रों के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं, जो उन्होंने शांतिनिकेतन के कला भवन, चीन भवन और हिंदी भवन में बनाए।
इन चित्रों में ग्रामीण जीवन, मध्यकालीन संत कवि और ऐतिहासिक प्रसंगों को दर्शाया गया है।
दृष्टिबाधित कलाकार:
1957 में आँखों की सर्जरी के बाद वे नेत्रहीन हो गए। इसके बावजूद उन्होंने चित्रण कार्य जारी रखा।
उनके जीवन पर सत्यजीत रे ने 'द इनर आई' नामक एक वृत्तचित्र (फिल्म) बनाई।
अन्य कार्य:
1925 में शांतिनिकेतन में अध्यापन कार्य शुरू किया।
1949-50 में नेपाल संग्रहालय के अध्यक्ष रहे, जहाँ उन्होंने भारतीय कलाकृतियों और ग्रंथों पर महत्वपूर्ण कार्य किया।
उन्होंने कला के विविध पक्षों पर लेख भी लिखे।
प्रमुख कृतियाँ और पुरस्कार
आत्मकथा: 'चित्रकार' नामक आत्मकथा लिखी।
पुस्तक: 'आधुनिक शिल्प शिक्षा' नामक पुस्तक की रचना की।
पुरस्कार:
पद्म विभूषण: 1974 में।
देशिकोत्तम: 1977 में विश्व भारती विश्वविद्यालय द्वारा।
रवींद्र पुरस्कार: 1980 में।
प्रमुख चित्र:
टी लवर (Tree Lover)
गली में चलते-फिरते
सामान्य व्यक्ति
औरतें, बालक, वृद्ध
केश विन्यास
बाग में चहलकदमी
नेपाली दृश्यांकन
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