परिचय
जन्म: 25 फरवरी 1916 को संथाल परगना, बिहार में।
निधन: 28 अगस्त 2006 को नई दिल्ली में।
शिक्षा:
कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातक।
शांतिनिकेतन से ललित कला में डिप्लोमा (1939)।
रामकिंकर बैज के शिष्य थे।
कला यात्रा:
1945 में रामकिंकर बैज के साथ नेपाल जाकर युद्ध स्मारक प्रतिमा के लिए काम किया और धातु की ढलाई (casting) का अध्ययन किया।
बाद में यूरोप जाकर पेरिस और इंग्लैंड में भी काम किया।
कलात्मक योगदान और शैली
माध्यम: वे पत्थर, लकड़ी, धातु पत्र (sheet metal), कास्ट मेटल, सीमेंट और टेराकोटा जैसे विभिन्न माध्यमों का उपयोग करते थे।
शैली:
कला समीक्षक कार्ल खंडालवाला के अनुसार, वे एक साथ ही प्रयोगधर्मी, परंपरावादी और आधुनिक कलाकार थे।
उनकी कला में ज्यामितीय प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
प्रमुख विषय:
उनकी कला में जीवन का सच्चा अनुभव और गहरी दृष्टि होती थी।
उन्होंने पक्षियों (जैसे पिजन, पीकॉक) और मानव आकृतियों को सरल और सरलीकृत रूप में प्रस्तुत किया।
प्रमुख पद और सम्मान
पद:
1949 से 1970 तक बड़ौदा विश्वविद्यालय में मूर्तिकला विभाग के अध्यक्ष रहे।
1980 के दशक के अंत में ललित कला अकादमी, नई दिल्ली के अध्यक्ष रहे।
1980 में तंजानिया के दारेस्सलाम विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हुए।
भारतीय मूर्तिकार संघ, मुंबई के प्रथम मानद संयुक्त सचिव भी थे।
पुरस्कार:
पद्म श्री: 1971 में।
ललित कला रत्न: 2004 में ललित कला अकादमी द्वारा सम्मानित।
डी. लिट (ऑनोरिस कौसा): 1974 में फिलीपींस के सेंट्रल एस्कोलर यूनिवर्सिटी और 1981 में विश्व भारती विश्वविद्यालय द्वारा।
1948 में लंदन में एक अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी पुरस्कृत हुए।
प्रमुख कृतियाँ
'सेल' (Sail): 1971 में संगमरमर से बनी यह मूर्ति गवर्नमेंट म्यूजियम एंड आर्ट गैलरी, चंडीगढ़ में सुरक्षित है।
'टॉयलेट': इस मूर्ति में एक नारी आकृति को बैठी हुई मुद्रा में सरलीकृत रूप में दिखाया गया है, जिसमें ज्यामितीय प्रभाव स्पष्ट है।
'पक्षी': स्टेनलेस स्टील से बनी यह मूर्ति छाया-प्रकाश के प्रभाव के कारण अत्यंत आकर्षक है।
अन्य मूर्तिशिल्प:
पिजन
पीकॉक
कोक
बर्ड
हैंड ऑफ गर्ल (1958)
फिगर (लकड़ी)
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