पिकासो की मूर्त से अमूर्त की यात्रा

 

पाब्लो पिकासो (1881-1973) का कार्य मूर्त (फ़िगरेटिव) से अमूर्त (एब्सट्रैक्ट) की ओर उनकी कला की यात्रा का एक प्रमुख उदाहरण है। उनके चित्रों में यह बदलाव उनकी लगातार बदलती शैली, प्रयोगधर्मिता और कला के प्रति नई दृष्टि के कारण हुआ। उन्होंने कई कला आंदोलनों को जन्म दिया और कई शैलियों में काम किया, जिसमें उन्होंने यथार्थवादी चित्रण से लेकर पूर्ण अमूर्तता तक की ओर प्रगति की।

1. शुरुआती यथार्थवादी चरण

पिकासो का आरंभिक कार्य अत्यधिक यथार्थवादी था। किशोरावस्था में ही वे एक प्रतिभाशाली कलाकार माने गए, और उनके प्रारंभिक चित्रों में परंपरागत तकनीक का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। ये चित्र मुख्य रूप से मूर्त रूप में थे, जिसमें व्यक्ति, वस्त्र और चेहरे की बारीकियों पर ध्यान दिया गया था।

2. ब्लू पीरियड (1901-1904) और रोज़ पीरियड (1904-1906)

उनके "ब्लू पीरियड" के चित्र उदासीनता और अकेलेपन की भावना के साथ मूर्त थे। इन चित्रों में मानवीय पीड़ा और संवेदना को उभारने के लिए उन्होंने नीले रंग की गहरी छाया का उपयोग किया।

इसके बाद "रोज़ पीरियड" में उन्होंने हल्के गुलाबी और नारंगी रंगों का प्रयोग किया। हालांकि ये चित्र मूर्त रूप में ही थे, लेकिन इनकी रंग योजना और आकृतियों में थोड़ी अमूर्तता का संकेत मिलने लगा, जिससे उनकी नई शैली के बीज दिखने लगे।

3. प्रारंभिक क्यूबिज़्म (1907-1909)

पिकासो ने जॉर्ज ब्राक के साथ मिलकर क्यूबिज़्म की शुरुआत की, जिससे उन्होंने मूर्त रूपों को ज्यामितीय आकारों में तोड़ना शुरू किया। उनकी क्यूबिज़्म कृतियों में, विशेषकर "लेस देमोइसेल्स डी'एविग्नन" में, मानव आकृतियाँ टूटे हुए, असंगत रूप में दिखाई देती हैं। इस शैली में उन्होंने वास्तविकता का विश्लेषण कर उसे विभिन्न दृष्टिकोणों से प्रस्तुत किया, जिससे मूर्त से अमूर्तता की दिशा में उनका पहला कदम देखा जा सकता है।

4. एनालिटिकल क्यूबिज़्म (1909-1912)

एनालिटिकल क्यूबिज़्म में, पिकासो ने वस्तुओं और आकृतियों को पूरी तरह से छोटे-छोटे ज्यामितीय टुकड़ों में विभाजित कर दिया। उनके चित्रों में चेहरे और वस्तुएँ इस तरह बिखरी हुई दिखती हैं कि उन्हें पूरी तरह से पहचानना मुश्किल हो जाता है। इस चरण में उनका चित्रण लगभग अमूर्त हो गया, क्योंकि आकृतियाँ स्पष्ट पहचान से परे हो गईं और रंगों की जगह मोनोक्रोम या भूरे रंग के शेड्स का अधिक उपयोग होने लगा।

5. सिंथेटिक क्यूबिज़्म (1912-1919)

सिंथेटिक क्यूबिज़्म में पिकासो ने अधिक रंगीन और सरल ज्यामितीय आकृतियों का उपयोग किया। इस शैली में उन्होंने कोलाज की तकनीक अपनाई, जिसमें अखबार के टुकड़े, वस्त्र आदि को कागज़ पर चिपकाया गया। यह शैली मूर्तता और अमूर्तता के बीच संतुलन बनाए रखती है, जिसमें आकृतियाँ तो बनी रहती हैं, पर वे पारंपरिक अर्थों में स्पष्ट नहीं होतीं।

6. सुर्रियलिज़्म और अमूर्तता (1930-1940)

1930 के दशक में पिकासो ने सुर्रियलिज़्म की ओर झुकाव दिखाया, जिसमें उनके चित्रों में आकृतियाँ और चेहरे अत्यधिक विकृत होने लगे। उनकी प्रसिद्ध कृति "गुएर्निका" (1937) इसी समय की है, जिसमें उन्होंने युद्ध के भय और पीड़ा को अर्ध-अमूर्त और विकृत रूपों के माध्यम से प्रस्तुत किया। इसमें आकृतियाँ मूर्त रूप में तो हैं, लेकिन उनका विखंडित और असंगत रूप उन्हें पूरी तरह से समझना कठिन बना देता है।

7. पूरी अमूर्तता की ओर प्रयोग (1950 के बाद)

पिकासो के बाद के कार्य में अमूर्तता का गहरा प्रभाव देखा जाता है। उन्होंने कई आकृतियों और रूपों को इतने सरलीकृत और असंगत रूप में प्रस्तुत किया कि वे अमूर्तता की पराकाष्ठा पर पहुँच गए। उनकी चित्रकला में रंगों, आकारों और प्रतीकों का स्वतंत्र प्रयोग होता है, जो कला को विशुद्ध भावनात्मक और प्रतीकात्मक बनाता है।

निष्कर्ष

पिकासो की कला मूर्त से अमूर्तता की ओर एक यात्रा है, जो न केवल उनकी व्यक्तिगत रचनात्मक खोज को दर्शाती है, बल्कि आधुनिक कला में नवाचार और प्रयोगों की दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान भी है। पिकासो का यह परिवर्तन उनके नए दृष्टिकोणों और विचारों का प्रतीक है, जिससे उन्होंने कला को नई परिभाषा दी और कला की सीमाओं को और भी विस्तारित किया।

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