अवलोकन
स्थान: बादामी की गुफाएँ कर्नाटक राज्य के बागलकोट जिले में स्थित हैं। इसका प्राचीन नाम वातापिपुरम था।
समयकाल: इनका निर्माण 6वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास हुआ था।
राजवंश: ये गुफाएँ चालुक्य वंश के शासकों, विशेषकर मंगलेश और पुलकेशिन द्वितीय के शासनकाल में निर्मित हुईं।
खोज: आधुनिक समय में इनकी खोज 1935 में इतिहासकार स्टेला क्रेमरिश ने की थी।
वास्तुकला: ये गुफाएँ लाल बलुआ पत्थर की चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं, जो 'रॉक-कट' वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
प्रमुख गुफाएँ और उनका महत्व
बादामी में कुल 4 गुफाएँ हैं, जो अलग-अलग धर्मों को समर्पित हैं:
गुफा संख्या 1: यह शैव धर्म को समर्पित है। इसमें नटराज शिव की 18 भुजाओं वाली एक प्रसिद्ध प्रतिमा है।
गुफा संख्या 2 & 3: ये दोनों गुफाएँ वैष्णव धर्म को समर्पित हैं।
गुफा 2 में वराह (विष्णु का अवतार) की प्रतिमा है।
गुफा 3 में भगवान विष्णु की एक बड़ी बैठी हुई प्रतिमा स्थापित है। यह सबसे अधिक चित्रित और सबसे बड़ी गुफा है।
गुफा संख्या 4: यह जैन धर्म को समर्पित है। इसमें जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ और चित्र हैं।
चित्रों और मूर्तियों की विशेषताएँ
विषय-वस्तु: चित्रों में शिव विवाह, राजाओं और देवताओं के साथ राजसी युगल, तथा उड़ते हुए विद्याधर जैसे विषय प्रमुख हैं।
अद्वितीय चित्रण: विरहिणी रमणी का चित्र अपने भावनात्मक अंकन के लिए प्रसिद्ध है।
राजसी चित्रण: बादामी गुफाओं में राजाओं को उनके इष्टदेवों के साथ चित्रित करने की परंपरा शुरू हुई।
प्रतिलिपि: इन गुफाओं के चित्रों की प्रतिलिपि जे.एल. अहिवासी ने तैयार की थी।
प्रकाशन: कार्ल खंडेलवाल ने 1938 में अपनी पुस्तक 'इंडियन स्कल्पचर एंड पेंटिंग' में इन चित्रों को प्रकाशित किया।
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