अवलोकन
स्थान: सिट्टनवसल (तमिल में इसका अर्थ 'जैन सिद्धों का निवास') की गुफाएँ तमिलनाडु के तंजावुर (तंजौर) जिले में, पुदुक्कोट्टै से लगभग 16 किमी उत्तर-पश्चिम में कृष्णा नदी के तट पर स्थित हैं।
समयकाल: ये गुफाएँ मुख्य रूप से 7वीं से 9वीं शताब्दी के बीच की मानी जाती हैं।
खोज: इनकी खोज 1934 में टी.एस. गोपीनाथ ने की थी, हालांकि फ्रांसीसी शोधकर्ता श्री दुर्बील ने भी इस पर कार्य किया।
धर्म: ये गुफाएँ और इनके चित्र जैन धर्म से संबंधित हैं। यहाँ कुल 4 गुफाएँ मिली हैं।
वास्तुकला: इन गुफाओं का निर्माण पल्लव राजा महेंद्रवर्मन प्रथम (जिन्हें 'विचित्र-चित्र', 'चित्रकार-पुली' आदि उपाधियाँ मिली थीं) के समय शुरू हुआ था।
सिट्टनवसल के प्रमुख चित्र और उनकी विशेषताएँ
ये गुफाएँ कभी पूरी तरह से चित्रों से सुसज्जित थीं, लेकिन अब चित्र केवल छत और खंभों के ऊपरी हिस्सों पर ही मिलते हैं।
प्रमुख चित्र:
कमलयुक्त सरोवर: एक प्रसिद्ध चित्र जिसमें कमल के फूलों से भरा एक सरोवर दिखाया गया है।
नृत्य करती अप्सराएँ
जैन तीर्थंकर
अर्धनारीश्वर
राजा-रानी का चित्र
तीन दिव्य पुरुष फूल तोड़ते हुए।
चित्रों की मुख्य विशेषताएँ
चेहरे: यहाँ 'पौने दो चश्म' चेहरों का अंकन मिलता है, जो पल्लवकालीन कला की एक विशेष पहचान है।
विषय-वस्तु: चित्रों के विषय जैन और लौकिक दोनों हैं।
रंग-योजना: चित्रों में मुख्य रूप से पीले, हरे और भूरे रंगों का प्रयोग किया गया है, जो बेहद आकर्षक हैं।
अजंता से तुलना: सिट्टनवसल के चित्रों में अजंता जैसी परिपक्वता, प्रवाहपूर्ण रेखाएँ और भाव सौंदर्य दिखाई देता है, जिससे इनकी तुलना अक्सर अजंता की कला से की जाती है।
नर्तकियाँ: यहाँ की नर्तकियों का अंकन और उनकी हस्त-मुद्राएँ अजंता की याद दिलाती हैं।
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