अजंता के बाद की भारतीय भित्ति-चित्रण परंपराएँ

अजंता के बाद भी भारत के कई पुरातात्विक स्थलों पर भित्ति-चित्रकला की परंपरा जारी रही। यह कला दक्कन और दक्षिण भारत में विकसित हुई, जिसमें धार्मिक और राजनैतिक राजवंशों का गहरा प्रभाव था।

1. बादामी (कर्नाटक)

  • काल: 6वीं शताब्दी ई. (578-579 ई.)।

  • संरक्षण: चालुक्य वंश के राजा मंगलेश

  • विशेषताएँ:

    • यहाँ की गुफा संख्या 3 में भगवान विष्णु को समर्पित एक चित्र है, जिसे 'विष्णु गुफा' भी कहा जाता है।

    • चित्रों में महल के दृश्य और इंद्र के दरबार का चित्रण है।

    • शैली में अजंता की तरह ही लयबद्ध रेखाएँ, धाराप्रवाह रूप और चुस्त संयोजन दिखाई देता है।

    • राजा और रानी के चेहरे पर अजंता की शैली की झलक मिलती है।

    • आकृतियों में उभार और चेहरे की बाहरी रेखाएँ स्पष्ट हैं।


2. पल्लव, पांड्य और चोल काल की चित्रकला

  • पल्लव काल (7वीं शताब्दी):

    • संरक्षण: राजा महेंद्रवर्मन प्रथम

    • स्थल: पनामलाई, मंडपट्टनम, और कांचीपुरम (तमिलनाडु)।

    • विशेषताएँ: यहाँ के चित्रों में आकृतियाँ गोल और भारी हैं, जिनमें अलंकरण अधिक है। कांचीपुरम में भगवान शिव और पार्वती (सोमस्कंद) का चित्रण मिलता है।

  • पांड्य काल:

    • संरक्षण: पांड्य राजा।

    • स्थल: तिरुमलैपुरम और सित्तनवासल (जैन गुफाएँ)।

    • विशेषताएँ:

      • सित्तनवासल में छत और खंभों पर नाचती हुई स्वर्गीय परियों के चित्र हैं।

      • रेखाएँ शक्तिशाली हैं और आकृतियों में लचीलापन और गतिशीलता दिखाई देती है।

      • ये आकृतियाँ बड़ी हैं और कभी-कभी चेहरे का पार्श्व-दृश्य (profile) भी दर्शाया गया है।

  • चोल काल (9वीं-11वीं शताब्दी):

    • संरक्षण: चोल नरेश, जैसे राजराज प्रथम और राजेंद्र चोल।

    • स्थल: तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर

    • विशेषताएँ:

      • चित्रों में भगवान शिव के जीवन से संबंधित कथाओं का चित्रण है।

      • यहाँ लहरदार और सुंदर रेखाओं का प्रवाह, भाव-भंगिमाएँ और अंगों में लचीलापन दिखाई देता है।


3. विजयनगर काल के भित्ति-चित्र (14वीं-16वीं शताब्दी)

  • स्थल: हंपी (विरुपाक्ष मंदिर) और त्रिची के पास तिरुपराकुंद्रम।

  • विशेषताएँ:

    • चित्रों में कथा-पात्रों को पार्श्व-चित्र (side profile) और समतल रूप में दर्शाया गया है।

    • आकृतियाँ बड़ी हैं, जिनमें पतली कमर और भारी वक्ष हैं।

    • रेखाएँ सरल हैं और संयोजन को ज्यामितीय उप-खंडों में विभाजित किया गया है।


4. नायक और केरल के भित्ति-चित्र

  • नायक काल (17वीं-18वीं शताब्दी):

    • स्थल: तिरुपराकुंद्रम, श्रीरंगम और तिरुवरूर (तमिलनाडु)।

    • विशेषताएँ:

      • ये चित्र विजयनगर शैली का ही विस्तार हैं, लेकिन इनमें कुछ क्षेत्रीय भिन्नताएँ हैं।

      • पुरुषों की कमर पतली है, जबकि विजयनगर शैली में पेट भारी होते थे।

      • विषय-वस्तु में रामायण, महाभारत और कृष्ण लीला के दृश्य शामिल हैं।

  • केरल (16वीं-18वीं शताब्दी):

    • शैली: केरल के कलाकारों ने अपनी एक विशिष्ट चित्रकला शैली विकसित की, जिसमें विजयनगर और नायक शैली के तत्वों का समावेश है।

    • विशेषताएँ:

      • यहाँ के चित्रों में काल्पनिक सौंदर्य और चमकीले रंगों का प्रयोग किया गया है।

      • मानव आकृतियों को त्रि-आयामी रूप में दर्शाया गया है।

      • विषय-वस्तु में रामायण और महाभारत के स्थानीय रूपांतरण शामिल हैं।

    • स्थल: पुंडरीकपुरम का कृष्ण मंदिर और त्रिप्रयार का श्रीराम मंदिर।


निष्कर्ष

अजंता के बाद की चित्रकला परंपराएँ भारतीय कला के विकास को दर्शाती हैं, जिसमें धार्मिक, क्षेत्रीय और शैलीगत बदलाव स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में घरों और हवेलियों की दीवारों पर यह परंपरा जीवित है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ