भित्ति चित्रकला और इसकी तकनीकें
सर्वोत्तम चूना: भित्ति चित्र बनाने के लिए 'राहोली का चूना' सबसे अच्छा माना जाता है, खासकर अरायशी चित्रण के लिए।
अरायशी पद्धति:
इसका आगमन जहाँगीर के काल में इटली से हुआ।
ताजे प्लास्टर पर चित्रण करने की इस तकनीक को 'आला-गीला' या 'फ्रेंस्को बूनो' भी कहते हैं।
राजस्थान में इस पद्धति का सबसे पहले उपयोग जयपुर में हुआ, जबकि शेखावाटी क्षेत्र में इसे 'पणा' कहा जाता है।
प्रमुख स्थान:
बूँदी: इसकी 'चित्रशाला' को भित्ति चित्रों का स्वर्ग कहा जाता है। यहाँ के चित्र जयपुर की आला-गीला शैली में बनाए गए हैं।
कोटा: बड़े देवताओं की हवेली और झाला हवेली भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध हैं।
शेखावाटी: यहाँ सर्वाधिक भित्ति चित्र मिलते हैं। यह क्षेत्र 'ओपन एयर आर्ट गैलरी' के रूप में विश्व-प्रसिद्ध है, जहाँ लोक जीवन की झलक दिखती है।
जयपुर: यहाँ के भित्ति चित्र फ्रेस्को बूनो, फ्रेस्को सेको और टेम्परा तीनों तकनीकों से बने हैं।
थप्पा: दीवार पर उँगलियों से थप्पा देकर बनाई गई आकृति।
राजस्थान की लोक कला
पाने: कागज पर देवी-देवताओं के चित्र। सबसे कलात्मक श्रीनाथजी का पाना है, जिसमें 24 शृंगार हैं। सांगानेर के लक्ष्मी जी के पाने प्रसिद्ध हैं।
मांडणा:
शाब्दिक अर्थ: अलंकृत करना। यह अमूर्त और ज्यामितीय शैलियों का मिश्रण है।
यह महिलाओं के दिलों की भावनाओं को दर्शाते हैं।
सबसे छोटा: स्वस्तिक।
सबसे प्रचलित: पदचिह्न।
विभिन्न नाम:
ब्रज व बुंदेलखंड: सांझ्या
महाराष्ट्र: रंगोली
बंगाल: अल्पना
तमिल: कोलम
गुजरात: सातियाँ
बिहार: अहपन
उत्तर प्रदेश: चोक, पुरणा या सोम
सांझी: गोबर से बनाया गया पूजा स्थल।
प्रमुख कलाकार और उनकी कृतियाँ
रामगोपाल विजयवर्गीय: राजस्थान में एकल चित्र प्रदर्शनी की परंपरा शुरू की। उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं: चित्र गीतिका, बोधांजलि, और अभिसार निषा।
देवकी नंदन शर्मा (अलवर): भित्ति और पशु चित्रण में विशेष ख्याति। इन्हें 'मास्टर ऑफ नेचर एंड लिविंग ऑब्जेक्ट' कहा जाता है।
सुरजीत कौर चैयल: भारत की पहली चित्रकार जिनके चित्रों को जापान के फुकोका संग्रहालय में स्थान मिला।
फूलचंद वर्मा (नरैना-जयपुर):
'बतखों की मुद्राएँ' शीर्षक कृति के लिए 1972 में राजस्थान ललित कला अकादमी से सम्मानित।
इन्होंने सर्वप्रथम टेम्परा पद्धति का प्रयोग किया।
वीरबाला भावसार: रेत और फेविकॉल से चित्र बनाने के लिए प्रसिद्ध।
हमीदुल्ला: राजस्थान के प्रसिद्ध रंगकर्मी।
ज्योति स्वरूप शर्मा: उस्ता कला के लिए प्रसिद्ध, इन्होंने रेणुका आर्ट्स हस्तशिल्प शोध संस्थान की स्थापना की। उनका प्रमुख चित्र 'शृंखला' है।
प्रदीप मुखर्जी: फड़ के प्रसिद्ध चित्रकार। इन्होंने रामायण पर 108 लघु चित्र बनाए।
हीराराम सोनी: चावल पर चित्रकारी के लिए विख्यात।
लाल सिंह भाटी: चमड़े की खाल पर सुनहरी नक्काशी हेतु राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित। इन्होंने जोधपुर में 'उम्मेद कला पीठ' की स्थापना की।
जगन्नाथ मथोड़िया: श्वानों (कुत्तों) पर सर्वाधिक चित्र बनाने के लिए लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज।
गोवर्धन लाल बाबा: प्रसिद्ध ग्रंथ 'बारात'।
भूरी सिंह शेखावत: शहीद व देशभक्तों के चित्र बनाए।
लालचंद मारोठिया: उनकी पुस्तक 'पेड़ बोलते हैं' में 32 रेखाचित्र हैं।
बजरंग: बीकानेर के प्रसिद्ध विकलांग चित्रकार (मामोसर गाँव)।
राजस्थान में चित्रकला के स्कूल
मेवाड़ स्कूल: उदयपुर, देवगढ़, चावण्ड़, नाथद्वारा उपशैलियाँ।
मारवाड़ स्कूल: जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, अजमेर, नागौर, किशनगढ़ उपशैलियाँ।
हाड़ौती स्कूल: कोटा, बूँदी, झालावाड़ उपशैलियाँ।
ढूँढाड़ स्कूल: आमेर, उणियारा (टोंक), अलवर, करौली, शेखावाटी उपशैलियाँ।
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