Visual Arts: Important FACT PART - 2

 

भित्ति चित्रकला और इसकी तकनीकें

  • सर्वोत्तम चूना: भित्ति चित्र बनाने के लिए 'राहोली का चूना' सबसे अच्छा माना जाता है, खासकर अरायशी चित्रण के लिए।

  • अरायशी पद्धति:

    • इसका आगमन जहाँगीर के काल में इटली से हुआ।

    • ताजे प्लास्टर पर चित्रण करने की इस तकनीक को 'आला-गीला' या 'फ्रेंस्को बूनो' भी कहते हैं।

    • राजस्थान में इस पद्धति का सबसे पहले उपयोग जयपुर में हुआ, जबकि शेखावाटी क्षेत्र में इसे 'पणा' कहा जाता है।

  • प्रमुख स्थान:

    • बूँदी: इसकी 'चित्रशाला' को भित्ति चित्रों का स्वर्ग कहा जाता है। यहाँ के चित्र जयपुर की आला-गीला शैली में बनाए गए हैं।

    • कोटा: बड़े देवताओं की हवेली और झाला हवेली भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध हैं।

    • शेखावाटी: यहाँ सर्वाधिक भित्ति चित्र मिलते हैं। यह क्षेत्र 'ओपन एयर आर्ट गैलरी' के रूप में विश्व-प्रसिद्ध है, जहाँ लोक जीवन की झलक दिखती है।

    • जयपुर: यहाँ के भित्ति चित्र फ्रेस्को बूनो, फ्रेस्को सेको और टेम्परा तीनों तकनीकों से बने हैं।

    • थप्पा: दीवार पर उँगलियों से थप्पा देकर बनाई गई आकृति।


राजस्थान की लोक कला

  • पाने: कागज पर देवी-देवताओं के चित्र। सबसे कलात्मक श्रीनाथजी का पाना है, जिसमें 24 शृंगार हैं। सांगानेर के लक्ष्मी जी के पाने प्रसिद्ध हैं।

  • मांडणा:

    • शाब्दिक अर्थ: अलंकृत करना। यह अमूर्त और ज्यामितीय शैलियों का मिश्रण है।

    • यह महिलाओं के दिलों की भावनाओं को दर्शाते हैं।

    • सबसे छोटा: स्वस्तिक।

    • सबसे प्रचलित: पदचिह्न।

    • विभिन्न नाम:

      • ब्रज व बुंदेलखंड: सांझ्या

      • महाराष्ट्र: रंगोली

      • बंगाल: अल्पना

      • तमिल: कोलम

      • गुजरात: सातियाँ

      • बिहार: अहपन

      • उत्तर प्रदेश: चोक, पुरणा या सोम

  • सांझी: गोबर से बनाया गया पूजा स्थल।


प्रमुख कलाकार और उनकी कृतियाँ

  • रामगोपाल विजयवर्गीय: राजस्थान में एकल चित्र प्रदर्शनी की परंपरा शुरू की। उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं: चित्र गीतिका, बोधांजलि, और अभिसार निषा

  • देवकी नंदन शर्मा (अलवर): भित्ति और पशु चित्रण में विशेष ख्याति। इन्हें 'मास्टर ऑफ नेचर एंड लिविंग ऑब्जेक्ट' कहा जाता है।

  • सुरजीत कौर चैयल: भारत की पहली चित्रकार जिनके चित्रों को जापान के फुकोका संग्रहालय में स्थान मिला।

  • फूलचंद वर्मा (नरैना-जयपुर):

    • 'बतखों की मुद्राएँ' शीर्षक कृति के लिए 1972 में राजस्थान ललित कला अकादमी से सम्मानित।

    • इन्होंने सर्वप्रथम टेम्परा पद्धति का प्रयोग किया।

  • वीरबाला भावसार: रेत और फेविकॉल से चित्र बनाने के लिए प्रसिद्ध।

  • हमीदुल्ला: राजस्थान के प्रसिद्ध रंगकर्मी।

  • ज्योति स्वरूप शर्मा: उस्ता कला के लिए प्रसिद्ध, इन्होंने रेणुका आर्ट्स हस्तशिल्प शोध संस्थान की स्थापना की। उनका प्रमुख चित्र 'शृंखला' है।

  • प्रदीप मुखर्जी: फड़ के प्रसिद्ध चित्रकार। इन्होंने रामायण पर 108 लघु चित्र बनाए।

  • हीराराम सोनी: चावल पर चित्रकारी के लिए विख्यात।

  • लाल सिंह भाटी: चमड़े की खाल पर सुनहरी नक्काशी हेतु राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित। इन्होंने जोधपुर में 'उम्मेद कला पीठ' की स्थापना की।

  • जगन्नाथ मथोड़िया: श्वानों (कुत्तों) पर सर्वाधिक चित्र बनाने के लिए लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज।

  • गोवर्धन लाल बाबा: प्रसिद्ध ग्रंथ 'बारात'

  • भूरी सिंह शेखावत: शहीद व देशभक्तों के चित्र बनाए।

  • लालचंद मारोठिया: उनकी पुस्तक 'पेड़ बोलते हैं' में 32 रेखाचित्र हैं।

  • बजरंग: बीकानेर के प्रसिद्ध विकलांग चित्रकार (मामोसर गाँव)।


राजस्थान में चित्रकला के स्कूल

  • मेवाड़ स्कूल: उदयपुर, देवगढ़, चावण्ड़, नाथद्वारा उपशैलियाँ।

  • मारवाड़ स्कूल: जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, अजमेर, नागौर, किशनगढ़ उपशैलियाँ।

  • हाड़ौती स्कूल: कोटा, बूँदी, झालावाड़ उपशैलियाँ।

  • ढूँढाड़ स्कूल: आमेर, उणियारा (टोंक), अलवर, करौली, शेखावाटी उपशैलियाँ।

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